
सूरतगढ़ । खबर के शीर्षक से आप सब हैरान हो रहे होंगे। लेकिन यह सच है 145 करोड़ के वार्षिक बजट का दम्भ भरने वाली सूरतगढ़ नगरपालिका आमदनी के लिए जूझ रही है। यही वजह है कि नगरपालिका आमदनी बढ़ाने के लिए जो तरीके अपना रही हैं उनका सीधा-सीधा खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है। उदाहरण के लिए आमदनी बढ़ाने के नाम पर नगरपालिका प्रशासन द्वारा पिछले लंबे समय से विवाह प्रमाण पत्र सहित विभिन्न प्रमाण पत्रों के लिए 1000 रुपये शुल्क के रूप में वसूले जा रहे हैं। नगरपालिका की गत दिनों हुई बैठक मे कुछ पार्षदों ने यह फीस कम करने की मांग भी की थी। इस पर फीस बढ़ाने के समर्थन में कार्यवाहक अधिशासी अधिकारी लालचंद सांखला ने जो तर्क दिये वे बेहद खोखले हैं। सांखला ने इसे नगरपालिका की आय बढ़ाने के लिए उठाया गया कदम बताया। परंतु क्या आपको नहीं लगता है कि 145 करोड रुपए के भारी-भरकम बजट वाली नगरपालिका के लिए प्रमाण पत्रों को जारी करने के एवज में ली जाने वाली फीस ऊंट के मुंह मे जीरे से ज्यादा कुछ नहीं है ? जबकि प्रमाण पत्र के लिए आवेदन कर रहे अधिकांश लोगों के लिए आर्थिक मंदी के इस दौर में 1000 रुपए बहुत बड़ी रकम है। इसके अलावा अधिशासी अधिकारी सांखला ने पदमपुर, गजसिंहपुर और करणपुर नगरपालिकाओं में इतना ही शुल्क वसूले जाने का उदाहरण दिया। अधिशासी अधिकारी शायद ये भूल गए की इन नगरपालिकाओं की तुलना सूरतगढ़ नगर पालिका की आय से नहीं की जा सकती है। इसके अलावा सब जानते हैं कि लालचंद सांखला सूरतगढ़़ आने से पूर्व इन तीनों नगरपालिकाओं में कार्यवाहक ईओ का पद संभाल रहे थे। ऐसे में क्या यह सवाल नहीं उठता हैै कि ईओ सांखला ने जो मनमाने कानून इन नगरपालिकाओं में लागू किए। वही मनमाने कानून वे अब सूरतगढ़ नगरपालिका में लागू कर रहे है ? कुल मिलाकर मामला उठने के बाद केवल बीपीएल परिवारों के लिए शुल्क में 50 प्रतिशत शुल्क की छूट देने की बात करते हुए इतने महत्वपूर्ण मुद्दे को दबा दिया गया। परन्तुु नगरपालिका मे शहर की जनता का प्रतिनिधित्व करने वाले शहर के सभी 45 वार्डों के पार्षदों एवं नगरपालिका के चेयरमैन से हम यह पूछना चाहते हैं कि डिजिटलाइजेशन के इस दौर में जब जनता को विभिन्न प्रकार के प्रमाण पत्र E-mitra व कॉमन सर्विस सेंटर के माध्यम से लगभग फ्री में उपलब्ध कराए जा रहे हैं। उसी दौर में नगरपालिका द्वारा प्रमाण पत्रों के लिए ₹1000 वसूला जाना क्या किसी भी तरह से सही है ? उस दौर में जबकि लोग आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं ! लोगों की आय लगातार कम हो रही है ,उस समय में शुल्क के नाम पर 1000 वसूलना क्या राजतंत्र में जबरन वसूलेेे जाने वाले लगान जैसा नहीं है ? इसके अलावा जब सूरतगढ़ के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में यह प्रमाण पत्र लगभग बिना किसी शुल्क के जारी किए जा रहे हैं । ऐसे में नगरपालिका के कथित विकास की कीमत आम लोगों पर बहुत भारी पड़ रही है। बीपीएल कार्ड को गरीबी का पैमाना समझने वाले जनप्रतिनिधियों (पार्षदों) से कहना चाहूंगा कि वे अपने वार्डों का दौरा कर देख ले कितने गरीबों के बीपीएल कार्ड बने हुए हैं ? अगर उन्हें बिना कार्ड वालेे गरीबों से किसी तरह की सहानुभूति है तो सूरतगढ़ नगरपालिका द्वारा मचाई जा रही इस लूट को बंद करने के लिए आगे आए।