दो खेमों में बंटता दिख रहा जिला बनाओ अभियान
सूरतगढ़। सूरतगढ़ को जिला बनाने को लेकर उपखंड कार्यालय पर हुई सभा में पूजा छाबड़ा द्वारा अन्न त्यागने की घोषणा के बाद राजनीति गर्मा गई है। सूत्रों के मुताबिक मंगलवार को जनसभा में समिति द्वारा पूजा छाबड़ा को अनशनकारी के रूप में ही आमंत्रित किया गया था। समिति द्वारा निर्धारित वक्ताओं की सूची में भी पूजा छाबड़ा का नाम शामिल नहीं था। लेकिन ऐन वक्त पर कांग्रेस के एक व्यापारी नेता नें समिति सदस्यों को पूजा छाबड़ा को बोलने देने के लिए कहा। बताया जा रहा है कि कांग्रेस के इस नेता ने पूजा छाबड़ा को नहीं बोलने देने पर कमेटी से इस्तीफा देने की धमकी दे डाली।
नतीजा यह रहा कि सभा खत्म होने से कुछ समय पहले समिति सदस्यों ने पूजा छाबड़ा को बोलने का अवसर दे दिया। जिसके बाद छाबड़ा ने अन्न त्याग करने का कार्ड खेलकर समिति से जुड़े धुरंधर नेताओं को स्तब्ध कर दिया। समिति से जुड़े नेताओं को यह उम्मीद नहीं थी कि छाबड़ा इस तरह की घोषणा कर उनके करे कराए पर पानी फेर देगी। सूत्रों के मुताबिक समिति के कुछ नेताओं नें छाबड़ा के इस कदम को लेकर खासी नाराजगी दर्ज़ कराई है।
सूत्रों के मुताबिक समिति से जुड़े नेताओं द्वारा आपत्ति जताने के बाद समिति के अध्यक्ष और कुछ सदस्यों ने पूजा छाबड़ा से मिलकर उनसे अपनी घोषणा वापस लेने की मांग रखी थी। हालांकि छाबड़ा नें अन्न त्यागने के निर्णय को स्वयं से जुड़ा हुआ बताते हुए समिति को साफ इंकार कर दिया।
वैसे आपको बता दें समिति से जुड़े नेता पहले भी पूजा छाबड़ा पर आमरण अनशन की घोषणा सहित विभिन्न निर्णय बिना समिति की राय से करने का इल्जाम लगाते रहे हैं। गत दिनों हुई सेन मंदिर में हुई बैठक में भी समिति से जुड़े कई नेताओं ने पूजा छाबड़ा और उनके एक समर्थक को आंदोलन से अलग करने के बात रखी थी। हालांकि उस समय इस बात पर समिति के कुछ सदस्यों द्वारा यह कहकर विरोध जताया गया कि ऐसा करने से गलत मैसेज जाने के साथ ही आंदोलन खेमों में बट जाएगा। जिस पर सदस्यों की राय को देखते हुए एकबारगी छाबड़ा और उनके समर्थकों को समिति से हटाने का निर्णय पेंडिंग रख दिया गया।
लेकिन कुछ दिनों बाद ही छाबड़ा के समर्थक बताए जाने वाले और जिला बनाओ आंदोलन के लम्बे समय से सचिव आकाशदीप बंसल ने आख़िरकार इस्तीफा दे दिया। बंसल ने सोशल मीडिया पर जारी पोस्ट में समिति सदस्यों पर अनदेखी करने और राजनीति करने का आरोप लगाया।
बहरहाल पूजा छाबड़ा की समिति के मंच से अन्न त्याग की घोषणा नेताओं को रास नहीं आ रही है। जिसके चलते आंदोलन दो खेमों में बटता दिख रहा है। वहीं छाबड़ा के फेवर करने वाले कांग्रेसी नेता से कांग्रेस के बड़े नेता खुश नही हैं। क्यूंकि खुद कांग्रेस के बड़े नेता समिति की बैठकों में छाबड़ा के बिना समिति से चर्चा किए निर्णय लेने के प्रति नाराजगी व्यक्त कर चुके हैं। ऐसे में कांग्रेस के व्यापारी नेता का छाबड़ा को तवज्जो देना कांग्रेस के बड़े नेताओं को अखरना लाजमी ही है। फिलहाल देखने वाली बात यह है कि जिला बनाओ समिति में चल रही राजनीति इस आंदोलन को कौन सी दिशा देती है ?
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