सूरतगढ़। यूं तो मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल उन बड़े हॉस्पिटल्स को कहा जाता है जिनमे विभिन्न मेडिकल कंडीशन यानि की रोगों का विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा इलाज किया जाता है। लेकिन मल्टीस्पेशलिटी नाम देने से कोई हॉस्पिटल बेहतर हो ऐसा भी नहीं होता। सूरतगढ़ के एपेक्स मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल की ही बात करें तो कहने को यह मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल है, लेकिन जब बात इलाज की आती है तो यह हॉस्पिटल चिकित्सकीय लापरवाही के लिए कुख्यात होता जा रहा है।
बुधवार को हॉस्पिटल में एक गर्भवती महिला के मिसकैरेज होने के मामले में परिजनों ने इस मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल के चिकित्सकों पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए हंगामा किया। किसान नेता राकेश बिश्नोई और कॉमरेड मदन औझा सहित कई नेताओं के साथ जब परिजनों ने चिकित्सालय प्रबंधन से जवाब तलब किया तो चिकित्सकों ने ना नुकर के बाद अपनी गलती को स्वीकार कर लिया। हालांकि यह पहली घटना नहीं है जब हॉस्पिटल के चिकित्सकों की लापरवाही सामने आई है। इससे पहले अनेक मौकों पर हॉस्पिटल के चिकित्सकों की लापरवाही मरीजों की जान पर भारी पड़ चुकी है। हॉस्पिटल प्रबंधन पर ज्यादा बिल वसूली के लिए मरीज की मौत के बावजूद वेंटिलेटर पर रखकर लाखों रुपए वसूलने के आरोप लग चुके हैं तो ऐसे भी मामले सामने आए हैं जब भामाशाह/चिरंजीवी योजना के तहत ज्यादा बिल बनाकर सरकार को चूना लगाने की कोशिश में भी हॉस्पिटल प्रबंधन ने मरीजों की जान से खेलने में गुरेज नहीं किया।
ऐसे ही एक मामले में तो हॉस्पिटल के चिकित्सकों ने 55 वर्षीय महिला मरीज का चिकित्सक नहीं होने का बहाना बनाकर 3 दिन तक ऑपरेशन नहीं किया। देरी से ऑपरेशन होने के चलते जब महिला मरीज की तबीयत बिगड़ गई तो हॉस्पिटल प्रबंधन में हाथ खड़े कर दिए। जिसके चलते रेफर करने के दौरान महिला की मौत हो गई। ये मामले हॉस्पिटल प्रबंधन की पैसों की उस भूख की ओर इशारा करते हैं जहां आम आदमी की जान की कीमत धरती के भगवान माने जाने वाले डिग्री धारकों के लिए कुछ नहीं है।
बहरहाल ताजा मामले के बाद यह मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल और उसके विशेषज्ञ चिकित्सक एक बार फिर से विवादों में हैं। हर बार की तरह इस बार भी हॉस्पिटल प्रबंधन अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर मामले को रफा-दफा करने में कामयाब हो जाएगा। लेकिन सवाल यह है कि हॉस्पिटल प्रबंधन के लालच और लापरवाही से कब तक मरीजों की जान से खिलवाड़ होता रहेगा ?
इलाज के लिए आते रहे परिजन, टालते रहे डॉक्टर

बुधवार को हॉस्पिटल के चिकित्सकों की लापरवाही के चलते प्रसूता महिला के मिसकैरेज के मामले में जो जानकारी निकल कर सामने आई है उसके अनुसार फुलेजी निवासी सुमन पत्नी राजेंद्र शर्मा का गर्भवती होने के बाद से पिछले 4-5 महीनो से एपेक्स मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल में इलाज चल रहा था। डिलीवरी का समय बीतने पर 22 मई को परिजन सुमन को लेकर हॉस्पिटल पहुंचे। परिजनों के अनुसार हॉस्पिटल की डॉ स्वर्णलता बंसल ने सुमन का चिकित्सकीय परीक्षा करने के बाद शुक्रवार यानी की 26 मई को आने को कहा। लेकिन घर पहुंचने पर रात्रि के समय सुमन की फिर तबीयत बिगड़ने लगी। जिसके बाद परिजन अगले दिन यानी 23 मई को सुबह सुमन को लेकर हॉस्पिटल पहुंचे। बकौल सुमन के परिजनो के हॉस्पिटल प्रबंधन नें चिकित्सक छुट्टी पर होने का हवाला देते हुए सुमन को भर्ती नहीं किया।
इसके बाद परिजन सुमन को लेकर एक दूसरे निजी हॉस्पिटल पहुंचे। जहाँ पर डॉक्टरों ने जब सुमन का अल्ट्रासाउंड करवाया तो अल्ट्रासाउंड को देखकर निजी हॉस्पिटल के डॉक्टर नें सुमन के परिजनों को बताया कि सुमन का बच्चे में कोई हरकत नहीं हो रही यानि की बच्चा मर चूका है। डॉक्टर ने जब परिजनों को बताया कि बच्चे को मरे हुए 18 -20 घंटे हो गए हैं तो एपैक्स हॉस्पिटल के चिकित्सकों की लापरवाही सामने आ गई। बच्चे को खोने के बाद परिजनों का गुस्सा बढ़ गया और उन्होंने अपेक्स हॉस्पिटल में जाकर चिकित्सकों को उलाहना दिया। लेकिन चोरी और सीनाजोरी की तर्ज पर हॉस्पिटल के चिकित्सकों ने उलटे परिजनों पर ही भर्ती होने नहीं होने का आरोप मढ़ दिया।
सोचने वाली बात यह है कि गर्भवती महिला और उसके परिजन जो पिछले कई महीनो से अपना इलाज चिकित्सकों से करवा रहे हो क्या वे एकाएक इलाज नहीं करवानें का कह सकतें है ! वह भी तब जबकि महिला और उसके बच्चे की जान पर बनी हो। मतलब साफ है कि हॉस्पिटल प्रबंधन बहाना बनाकर अपनी लापरवाही से बचना चाह रहा था।
लेकिन हॉस्पिटल का यह सफेद झूठ भी बुधवार को बाहर आ गया जब परिजन राकेश बिश्नोई, कॉमरेड मदन ओझा सहित जागरूक लोगों को लेकर प्रबंधन से मिले। मामले को बढ़ते देख हॉस्पिटल चिकित्सकों ने आखिर अपनी गलती स्वीकार कर ली।
मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल की साख पर खड़े हो रहे सवाल
इस पूरे घटनाक्रम के बाद इस कथित मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल की साख पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। क्योंकि जब हॉस्पिटल के पास आपातकालीन सेवा के रूप में गायनी विशेषज्ञ और सर्जन की सुविधा उपलब्ध नहीं हो तो फिर काहे का मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल। इस मामले में भी गायनी विशेषज्ञ और सर्जन की सुविधा समय पर उपलब्ध होती तो सम्भवतः सुमन के पेट में पल रहे मासूम को बिना जन्म लिए दुनिया ए फ़ानी से रुखसत नहीं होना पड़ता।
-राजेन्द्र पटावरी, उपाध्यक्ष -प्रैस क्लब, सूरतगढ़।