शाहीन बाग इस समय देश की सबसे बड़ी जरूरत PART-3 PUBLIC ISSUE February 2, 2020April 22, 2020rajendrajain588Leave a Comment on शाहीन बाग इस समय देश की सबसे बड़ी जरूरत PART-3 सीएए को नागरिकता देने का कानून मानने और सरकार द्वारा एनआरसी को लागू नहीं की करने की बात को सच मान भी लिया जाये तब भी भी शाहीन बाग इस वक्त देश की सबसे बड़ी जरूरत है । शाहीन बाग को केवल मुसलमानों का आंदोलन कह कर खारिज करना हमारी बहुत बड़ी भूल साबित हो सकती हैं । जिसके लिए आने वाली नस्लें शायद हमें माफ न करें। शाहीन बाग ने देश को इस बिना दिमाग और संवेदनाओं वाली सरकार को यह बता देने का अवसर दिया है कि आप इस देश के लोकतंत्र से खिलवाड़ नहीं कर सकते ? आप हिंदू -मुस्लिम का खेल खेलकर इस देश को बांट नहीं सकते ? आप देश के मीडिया संस्थानों और सोशल मीडिया सहित किसी भी तरीके के भ्रामक प्रचार से इस देश को गुमराह नहीं कर सकते ? आप पूरे सिस्टम को अपने कब्जे में लेने के बाद भी इस देश की जनता को हरा नहीं सकते ? क्यों कि शाहीन बाग उस समय सरकार से नज़रें मिला रहा है जब सरकार जनता के मूल सवालों से आंखे चुरा रही है। इस वक़्त जब देश के बहुसंख्यक लोग सरकार से रोजी- रोटी और रोजगार के सवाल पर विमर्श चाह रहे हैं तो यह सरकार हमें हिंदू मुस्लिम में बांट देना चाहती हैं । ऐसे में सरकार को इस विमर्श पर लाने का एक मात्र रास्ता शाहीन बाग से होकर निकलता है। इसका मतलब है कि मूल मुद्दों से भटकी सरकार को सही रास्ते पर लाने के लिए हमे शाहीन बाग पर बैठे देश के बहुसंख्यक वर्ग के साथ चलना होगा । आप सोच रहे होंगे की सड़क पर आंदोलन करने वाले कुछ हजार लोग बहुसंख्यक कैसे हो गए ? तो आप भी ये जान लें कि क्रांति करने के लिए बस इतने ही लोगों की जरूरत होती है । इतिहास में जितनी भी क्रांतियां हुई है उनमें ऐसे ही कुछ हजार लोग सड़कों पर बाहर निकल कर आए हैं और सत्ताधारियों के दमन चक्र को तोड़ते हुए उसके अभिमान को मिट्टी में मिलाया है। क्रांति का कोई भी दौर हो ,इन कुछ हजार लोगों को छोड़कर बाकी बचे लोगों में तमाम बातों को समझते हुए भी सत्ता से लड़ने का मादा नहीं होता या कहे कि प्रत्येक व्यक्ति भगत सिंह को पड़ोसी के घर ही पैदा होते देखना चाहता है। ऐसे लोग इतिहास में कीड़े मकोड़ों की तरह जीते हैं और इस दुनिया से रुखसत कर जाते हैं । अगर आपने कभी इतिहास को पढ़ा है और वर्तमान हालात को समझ रहे हैं तो आपको शाहीन बाग का संघर्ष 1957 की क्रांति जैसा ही लगेगा । संविधान और मानवता विरोधी सीएए को मानने से इंकार करना कुछ कुछ 1957 की क्रांति में मंगल पांडे की तरह चर्बी से बने कारतूस चलाने से मना करना ही है । 1957 को हम चूके तो हमें 1947 तक इंतजार करना पड़ा था । ठीक उसी तरह अगर हम यह मौका खो देंगे तो हमे मुुसिबतों का लंबा सफर तय करना पड़ सकता है । क्योंकि कपड़ों की पहचान से बांटने वाली यह सरकार फिर शायद हमें एक होने का मौका ही ना दें । यह सफर कितना दुश्वार रहेगा उसका अंदाजा शायद आप नहीं लगा पा रहे । इसलिए लगता है कि शाहीन बाग इस वक्त देश की सबसे बड़ी जरूरत है । शाहीन बाग ने देश को एक ऐसा मुद्दा दे दिया है जब पूरा देश सीएए और एनआरसी को संविधान की आत्मा पर हमला मान रहा है । यह एक ऐसा मुद्दा है जिसे भारत का कोई भी जिम्मेदार नागरिक सही नहीं ठहरा रहा है । हालांकि यह सरकार पहले भी रिजर्व बैंक, सीबीआई, मीडिया और सविधान की रक्षा करने वाली सुप्रीम कोर्ट जैसी संस्थाओं पर हमला कर उन्हें ध्वस्त करती रही ओर हम निहित स्वार्थों ओर डर के चलते बुझे मन से इन संस्थाओं की बर्बादी का तमाशा देखते रहे । यही वजह है कि देश में ऐसी कोई भी संवैधानिक संस्था अब बची नहीं है जिससे इस देश का नागरिक कोई उम्मीद कर पाए । लेकिन सीएए के रूप में सरकार ने संविधान पर अब तक का सबसे बड़ा हमला कर दिया है । अगर इस हमले को हम विफल नहीं कर पाए तो यक़ीन मानिए कि आप ओर हम विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का नागरिक होने का भरम खो देंगे । संविधान को बचाने के लिए हमें 1957 की तरह इस अहंकारी सत्ता को उसकी औकात बतानी पड़ेगी और इसका एकमात्र रास्ता शाहीन बाग से जाता है । मुझे विश्वास है कि अगर हम शाहीन बाग को अपना समर्थन देंगे तो यह सत्ता चाहे कितनी भी मगरूर हो जनता के सामने नतमस्तक होगी। आप शाहीन बाग में जा नहीं सकते तो आप सोशल मीडिया के किसी भी मंच से शाहीन बाग के पक्ष में अपनी आवाज बुलंद कर करें। एक बात और मुसलमानों को अपना दुश्मन मानने वाले लोग यह भी याद रखें कि 1957 में भी क्रांति का झंडा मुसलमान बादशाह बहादुर शाह जफर नेेे उठाया था। 1957 में भले ही अंग्रेजो के खिलाफ एक रानी लक्ष्मीबाई लड़ी थी लेकिन शाहीन बाग की हर औरत अब रानी लक्ष्मी बाई बन चुकी हैं । इंकलाब जिंदाबाद । – राजेन्द्र पटावरी Follow us on Social Media x facebookwhatsappShare this:FacebookX Related