सूरतगढ़। कहते हैं कि ‘कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती’। कांग्रेस प्रत्याशी डूंगरराम गेदर नें इस बात को फिर साबित कर दिया है। छठी बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे गेदर ने खुद भी कभी ऐसी बम्पर जीत का अंदाजा नहीं लगाया होगा।
मतगणना शुरू होने के बाद गेदर ने पहले राऊंड में जो बढ़त बनाई वो लगातार बढ़ती ही गई। 19 राउंड की काउंटिंग में एक बार भी ऐसा मौका नहीं आया जब कासनिया की वापसी के संकेत मिलते। दोपहर 2 बजे के करीब जब नतीजा आया तो गेदर 116000 से ज्यादा वोट हासिल कर उसे चोटी पर खड़े थे जहाँ कासनिया सहित दूसरे प्रतिद्वंदी बौने दिखाई देने लगे थे। 50459 वोट की करारी हार से भाजपा प्रत्याशी राम प्रताप कासनिया और उनके समर्थकों के अलावा मील खेमे में भी निराशा छाई हुई है। वहीं सूरतगढ़ विधानसभा की सबसे बड़ी जीत दर्ज कर डूंगरराम गेदर और उनके समर्थक जश्न मनाने में व्यस्त है।
गेदर नहीं जनता लड़ रही थी चुनाव !
सूरतगढ़ विधानसभा का मुकाबला प्रारम्भ से कासनिया बनाम गेदर का था। लेकिन टिकट कटने के बाद मील परिवार के नेताओं का कासनिया के समर्थन में आना चुनाव का टर्निंग पॉइंट बन गया। कासनिया के समर्थन स्वीकार करने के निर्णय से क्षेत्र की जनता को बहुत बड़ा झटका लगा। क्यूंकि गत 5 सालों में शहर में अव्यवस्था, भ्रष्टाचार और भय के माहौल से जनता आजिज आ चुकी थी। जनता इसके लिए कहीं ना कहीं मील परिवार के नेताओं को जिम्मेदार मान रही थी। इसी वजह से जब कांग्रेस ने मील परिवार की टिकट काटकर गेदर को थमाई तो जनता बेहद खुश नज़र आई। गेदर जो कल तक इलाके की राजनीति में जीरो थे वे अब जनता के लिए हीरो बन चुके थे।
दूसरी और मील परिवार का समर्थन लेने के बाद कासनिया आम जनता की नजर में खलनायक बन गए। इसके बाद कासनिया और मील ने इस गठबंधन को जाट अस्मिता से जोड़ कर प्रचारित करना शुरू कर दिया। ऐसे में क्षेत्र की जनता जो पिछले कुछ सालों से जाट प्रत्याशी के विरोध में गैर जाट को टिकट देने की मांग कर रही थी को जाट अस्मिता के नाम पर मील-कासनिया गठबंधन अखरने लगा।
इस बीच इन नेताओं के समर्थकों ने विभिन्न मंचो पर गेदर के विरोध के नाम पर धमाचौकड़ी मचाना शुरू कर दिया। जनता जो दूर से इस तमाशे को देख रही थी उसे लगने लगा कि जिन लोगों को वह सत्ता से दूर करना चाहती है वे लोग तो बैक डोर से वापसी करने जा रहे हैं। बस फिर क्या था ऐसे लोगों की सत्ता में संभावित वापसी के डर नें आमजन को गेदर के पक्ष में लामबध करना शुरू कर दिया। नतीजा ये रहा कि कासनिया-मील गठबंधन के मुकाबले के लिए गेदर की जगह क्षेत्र की जनता ने खुद मोर्चा संभाल लिया। इसके बाद जो कुछ हुआ है वह इतिहास है। जनता जो लोकतंत्र में निर्णायक की भूमिका में होती हैं उसने अपना फैसला गेदर के पक्ष में सुना दिया।
मील और कासनिया समर्थकों के नेगेटिव कैंपेन ने डुबोई लुटिया
सूरतगढ़ विधानसभा का इस बार का चुनाव अपने नेगेटिव कैंपेन के लिए भी याद रखा जाएगा। मील परिवार के समर्थन की घोषणा के बाद उनके समर्थकों ने सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर गेदर के खिलाफ अभियान छैड़ दिया। सत्ता के संरक्षण में अतीत में अनीति का पर्याय बन चुके हाज़रीयों ने गेदर को बदनाम करने के लिए सोशल मीडिया से लेकर विभिन्न फ़्रंटों पर मोर्चे खोल दिये। देखते ही देखते खुद को वफादार साबित करने की कवायद में कासनिया के सिपाहसालार कहे जाने वाले लोग भी बिना सोचे समझे इस नेगेटिव कैंपेन कूद पड़े।
गेदर पर जातिवाद फैलाने, जिला परिषद में वोट का 25 लाख रूपये में सौदा करने, बसपा विधायकों को बेचने, जिला नही बनाने का अकेला जिम्मेदार साबित करने और राजियासर की जगह बीरमाना में कॉलेज और एक्सईएन कार्यालय ले जाने के आरोप जड़े गये। बसपा में रहते हुए उनके द्वारा दिए गए भाषणों और रिश्तेदारों के गेदर के विरोध के वीडियो भी चुनाव के मौके पर प्रसारित किए गए।
विरोधी यही नहीं रुके उन्होंने गेदर के जाति-समुदाय के लोगों के ब्राह्मण-बनिया-राजपूत समाज को कौसने के वीडियो भी जमकर वायरल किए गए ताकि किसी ने किसी तरह से वोटों का ध्रुवीकरण किया जा सके। लेकिन गेदर सधे हुए राजनीतिज्ञ की तरह न केवल खुद चुप्पी साधे रहे बल्कि समर्थकों को किसी भी तरह की प्रतिक्रिया देने से रोके रखा। गेदर और उनके समर्थकों के चुप रहने का नतीजा यह हुआ कि जनता ने गेदर के पक्ष में जमकर मतदान कर तमाम आरोपों को खारिज कर दिया।
मील गठबंधन से कासनिया को नफा या नुकसान ?
चुनाव से पहले कासनिया द्वारा मील परिवार के समर्थन को मास्टर स्ट्रोक के रूप में प्रचारित किया गया था। हालांकि तब भी कई लोगों ने इस गठबंधन का विरोध किया था लेकिन कासनिया और मिल के समर्थक इसे जस्टिफाई करने में लग रहे। लेकिन चुनाव परिणाम कासनिया के मील परिवार के समर्थन के निर्णय को सेल्फ गोल बता रहे है। मील परिवार की कोशिशें से कासनिया के कितने वोट बढ़े इसका तो कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। लेकिन मील कासनिया गठबंधन के रिएक्शन में कितने वोट गेदर के बढ़े यह अंदाजा लगाया जा सकता है।
चुनाव की शुरुवात में गेदर को करीब 85 से 90 हज़ार वोट मिलने की उम्मीद हर कोई कर रहा था। ऐसे में कासनिया जो पिछले चुनाव में करीब 70000 वोट लेकर जीते थे उनके लिए यह मुकाबला मुश्किल दिख रहा था। लेकिन चापलूसों की सलाह पर मील परिवार के समर्थन लेने के कासनिया के निर्णय ने मुकाबले को एक तरफ कर दिया। कासनिया मील गठबंधन की नाराजगी ने गेदर के वोटों का आंकड़ा जो 90 हज़ार के करीब था को बढ़ाकर एक लाख 16 हज़ार के पार पहुंचा दिया। वहीं कासनिया 69 हज़ार के पिछले आंकड़े से घटकर 66 हज़ार पर सिमट गये।
कुल मिलाकर जनता के आक्रोश की अनदेखी मील परिवार के साथ साथ कासनिया को भारी भारी पड़ गई। वहीं सलाहकारो ने अपने निजी स्वार्थ सिद्ध करने के लिए मील नेताओं का समर्थन दिलाकर कासनिया के जीवन की सबसे बड़ी हार की पटकथा लिख दी।
शब्दों के जयन में माहिर, निर्भीक सरल और स्पष्ट लेखनी के धनी राजुभाई, आपको उज्ज्वल भविष्य की मंगलकामनाऐं