पूरे मामले में एसडीएम संदीप काकड़ की भूमिका भी संदिग्ध !
सूरतगढ़। ‘जब रोम जल रहा था तब नीरो बांसुरी बजा रहा था’। शहर के वार्ड नंबर-26 में इन दिनों खसरा नंबर 315/2 की आड़ में जिस तरह से करोड़ों रुपए की सरकारी भूमि की लूट का खुला खेल चल रहा है। उस दौर में शहर के जिम्मेदार राजनेताओं की चुप्पी को देखकर यह कहावत पर बरबस याद आ रही है।
इस मामले में फर्जी तथ्यों के आधार पर हासिल खातेदारी की आड़ में प्रभावशाली लोग खुलेआम पालिका की आवासीय योजना को हड़पने जा रहे हैं परन्तु शहर के राजनेताओं के मुंह पर ताला जड़ा हुआ है। किसान नेता राकेश बिश्नोई ने जरूर फेसबुक पोस्ट शेयर कर अपनी प्रतिक्रिया जरूर दी है। लेकिन मामला चर्चित होने के बाद भी अब तक किसी भी नेता ने प्रशासन से मिलकर इस मामले की जांच की मांग नहीं की है। उस शहर में जिसकी हर एक ईंट और पत्थर के नीचे एक-एक नेता छुपा हो, अफ़सोस जनक है कि कोई ऐसा नेता नहीं है जो प्रभावशाली लोगों की इस खुली लूट के खिलाफ चूँ भी करने की हिम्मत रखता हूं।
सत्ताधारी भाजपा हो या फिर विपक्ष में बैठी कांग्रेस या फिर कोई और दल से जुड़ा नेता, सब शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सर दबाकर खतरे के कम होने का इंतजार कर रहे हैं। दरअसल सच्चाई यह है कि दोनों ही दलों के नेताओं लिए राजनीति सत्ता पाने का औजार मात्र है। इस प्रकरण में नेताओं का जिस तरह का रवैइया रहा है उससे लगता है कहीं ना कहीं इन नेताओं का राजनीति का उद्देश्य भी सत्ता की ताकत हासिल कर भ्रष्टाचार करना ही है। वरना दूसरे शहरों से आकर जमीनों की लूट में शामिल किरदारों से क्यों शहर के राजनेता खौफ खाये हुए है यह समझ में नहीं आता। इतिहास में मोहम्मद गजनी को कोसने वाले यह नेता इन गजनवींयों को आखिर क्यों पहचान नहीं पा रहे है ?
हालांकि सत्ताधारी नेताओं की चुप्पी को लेकर एक चर्चा यह भी आ रही है कि इस भ्रष्टाचार को भाजपा के एक बड़े नेता के रिश्तेदार का आशीर्वाद मिल गया है, वरना जिस जमीन पर चारदिवारी निर्माण को लेकर प्रशासन से हुए जबरदस्त विवाद के बाद किसी की इतनी हिम्मत नहीं थी कि वो यूँ धड़ल्ले से निर्माण कर ले। इसके अलावा सूत्रों की माने तो ज़ब पिछली बार नगरपालिका ने इस जमीन से अतिक्रमण हटाया था तब एक राजनितिक परिस्थियों के चलते शहर में सरदारी घोट रहे एक नेताजी ने भी पालिका अधिकारीयों पर पुन इस प्लॉट की चारदीवारी के पूनरनिर्माण करवाने का भी दबाब बनाया था। बताया जा रहा है संघ से जुड़े 1-2 नेताओं ने इस विवादित खसरा नंबर -315/2 की जमीन में प्लॉट खरीद रखे है, जिसकी वजह से नेताजी को पालिका अधिकारीयों की क्लास लगानी पड़ी थी।
दूसरी और इस मामले में कांग्रेस विधायक डूंगरराम गेदर अपनी छवि के अनुरूप इस लड़ाई को राजनीतिक मंच से इतर खुले मैदान में आकर लड़ना नहीं चाहते है। विधानसभा में मामला उठाना सिंबॉलिक रूप से तो ठीक है। लेकिन सच्चाई यही है लॉन्ग टर्म राजनीति का रास्ता सड़क से निकलता है। कुल मिलाकर कौरवों की सभा में द्रोपदी के चीरहरण की तरह इस जमीन का बचना किसी राजनितिक गोविन्द के आगे आने पर ही टिका है।
क्या है ये पूरा मामला
खसरा नंबर 315/2 की सनसिटी के पीछे स्थित होने की कब्जा रिपोर्ट खसरा नंबर 315/2 पर काटी गई गोल्डन सिटी कॉलोनीसनसिटी रिसोर्ट के पीछे खसरा नंबर 315/2 के स्थान पर खसरा नंबर 320 बात कर कटे गई वृंदावन विहार कॉलोनी खसरा नंबर 315/2 की निरंकारी भवन के पीछे खसरा नंबर 315/1 के नगर पालिका की आवासीय योजना के हिस्से को शामिल करते हुए की गई तरमीम (लाल लाइन वाला रकबा)
दरअसल आज जो खसरा नंबर 315/2 जो निरंकारी भवन के पीछे बताया जा रहा है सन 2015 में सनसिटी रिसोर्ट के पीछे था। इस खसरे की बागअली के नाम से खातेदारी में पटवारी की मौका नक्शा रिपोर्ट में यह जमीन सनसिटी रिसोर्ट के दक्षिण दिशा में स्थित थी। इसी जमीन पर पहले खसरा नंबर 315/2 बताकर गोल्डन सिटी कालोनी काटी गई और सन 2021 में इस जमीन को खसरा नंबर-320 बताकर वृंदावन विहार कॉलोनी काटी गई।
राजस्व विभाग जो अब निरंकारी भवन के पीछे की जमीन को खसरा नंबर 315/2 बता रहा है उसी विभाग ने सन 2021 में निरंकारी भवन के पीछे इसी जगह खसरा नंबर 315/1 की तरमीम की थी। जिसके आधार पर पूर्व चेयरमैन ओम कालवा के कार्यकाल में नगरपालिका ने इस जगह पर टाउन प्लानर से आवासीय योजना भी स्वीकृत करवाई । सवाल ये है कि पूर्व में की गई तरमीम अब अचानक गलत कैसे हो गई है ? अगर उस तरमीम को गलत मान भी ले तो तरमीम करने वाले दोषी कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही ?
खसरा नंबर 312/2 की तरमीम पर भी उठ रहे सवाल
एसडीएम संदीप काकड़ का तरमीम नहीं करने का आदेश315/2 की राजस्व जमाबंदी में खातेदार के रूप में दर्ज़ गिरदावर वरुण सहारण और उसकी पत्नि का नाम
राजस्व विभाग ने खसरा नंबर-315/2 की तरमीम भले ही निरंकारी भवन के पीछे खसरा नंबर 315/1 पर कर दी हो लेकिन राजस्व अधिकारियों द्वारा की गई तरमीम संदेह के घेरे में है। क्यूंकि सबसे पहली बात ये है कि सूरतगढ़ कस्बा का राजस्व नक्शा पूरी तरह से अपठनीय और कटा फटा हुआ है। ऐसे में इस नक्शे से किसी तरह की तरमीम की ही नहीं जा सकती। खुद एसडीएम संदीप 3 फरवरी 2023 को सूरतगढ़ कस्बा में बिना अनुमति तरमीम पर रोक लगा चुके हैं।
लेकिन खसरा नंबर 315/2 के मामले में खुद एसडीएम साहब एक नहीं बल्कि दो-दो पर तरमीम करवा चुके हैं। जबकि खुद नगरपालिका द्वारा खसरा नंबर 315/2 सहित शहर के एक दर्जन से अधिक खसरों के सीमा ज्ञान के पत्र एसडीएम साहब रद्दी की टोकरी में डालते रहे।खसरा नंबर-315/2 के मामले में एसडीएम साहब की इस विशेष मेहरबानी की वजह सम्भवतः कोई बड़ी डील है ?
इसके अलावा खसरा नंबर 315/2 की सीमा ज्ञान कमेटी में दोनों बार गिरदावर वरुण सहारण को शामिल करना भी इस सीमा ज्ञान को संदिग्ध करता है। क्योंकि वरुण सहारन और उनकी पत्नी अमरजीत कौर का नाम इस खसरे की राजस्व जमाबंदी में खातेदार के रूप में दर्ज रहा है। साफ है कि जिस प्रकरण में किसी कर्मचारी का हित जुड़ा हो उसे उसे प्रकरण की जांच या उसमे किसी भी तरह की कार्यवाही मैं शामिल नहीं किया जा सकता। लेकिन इस मामले में उपखंड व तहसील प्रशासन के समक्ष आपत्ति आने के बावजूद कमेटी में गिरदावर वरुण सहारन को शामिल रखा गया। जो कि खसरा नंबर -315/2 के सीमा ज्ञान की पूरी रिपोर्ट को ही संदिग्ध बनाता है
भूमि घोटाले में पर्दे के पीछे है कुछ बड़े चेहरे शामिल
दरअसल इस पूरे मामले में पर्दे के पीछे जो लोग हैं वे बेहद ताकतवर है। एक भूतपूर्व विधायक और न्याय व्यवस्था से जुड़े एक अधिकारी अप्रत्यक्ष रूप से इस मामले को लीड करते रहे हैं। ये लोग साम, दाम, दंड और भेद की नीति से इस जमीन को हड़पने का कोई भी प्रयास बाकि नहीं छोड़ रहे है। यही वजह है कि पूरा का पूरा सूरतगढ़ प्रशासन इन प्रभावशाली लोगों दबाब में काम कर रहा है। कहा जा रहा है कि उपखंड के बड़े अधिकारी इस मामले में गलत फीडबैक देकर जिला प्रशासन तक को गुमराह कर रहे हैं। जिसकी वजह से विवादित भूखंड पर पिछले चार दिनों से निर्माण जारी है।