सूरतगढ़। मोहब्बत और राजनीति दोनों की राहें फिसलन से भरी होती है। दोनों में ही असफलता आदमी को निराशा के गहरे समंदर में धकेल देती है। इश्क की नाकामयाबी अगर दिमाग में घर कर ले तो आशिक खुद को बर्बाद कर लेता है। ऐसी हालत में आशिक को अच्छे दोस्तों और शुभचिंतकों की जरूरत होती है जो बेहतर मशवरा देकर उसकी मदद करे। राजनीति का मामला भी कुछ ऐसा ही है अहंकार के घोड़े पर सवार राजनीतिज्ञ कई बार असफलता को बर्दाश्त नहीं कर पाते। वे ऐसा कदम उठा बैठते हैं कि उनकी राजनीति की रेल पटरी से ऐसा उतरती है कि फिर वापस पटरी पर लौट कर नहीं आती।
सूरतगढ़ में कांग्रेस से टिकट कटने के बाद मील परिवार भी राजनीति के ऐसे ही भंवर में फंसा है। इस परिवार का अगला कदम यह तय करेगा कि राजनीति के जंगल में मील परिवार फिर से शेर की मानिंद गर्जना करेंगा या फिर विशाल डायनासोर की तरह विलुप्त होकर इतिहास बन जायेगा। यही वजह है कि राजनीति में रुचि रखने वाले हर एक व्यक्ति की नजर मील परिवार के अगले कदम पर है !
मील परिवार के लिए क्या है आगे का रास्ता ?
कांग्रेस से टिकट कटने के बाद मील परिवार राजनीति के ऐसे ही अँधेरे चौराहे पर खड़ा है जहाँ से रास्ते तो 4 निकलते है लेकिन कौनसा रास्ता बेहतर रहेगा यह बात मील परिवार तय नहीं कर पा रहा है। चौराहे पर खड़े कांग्रेस नेता प्रत्येक विकल्प पर गहराई से चिंतन में लगे हुए है।
गेदर की राह में कांटे बिछानें का लक्ष्य ?
राजनीतिक रूप से अगर बात करें तो मील परिवार के लिए एक रास्ता ये है कि वे गेदर की राह में इतने कांटे बिछा दें कि गेदर मंजिल तक नहीं पहुंच पाए ! फिलहाल मील परिवार इसी राह पर चलता दिखाई दे रहा है। सोशल मीडिया पर मील समर्थकों द्वारा वायरल तरह तरह के वीडियो और आरोपों को ऐसे ही प्रयासों से जोड़कर देखा जा सकता है।
इसके साथ ही पिछले दिनों हुई बैठक में पूर्व विधायक सहित मील परिवार का जोइनिंग के 3 साल बाद गेदर को कांग्रेसी नहीं मानना, कांग्रेस पार्टी को हराने की धमकी के अलावा एक कांग्रेसी नेता पर बसपा से चुनाव लड़ने का दबाब बनाना और गेदर के सजातीय नेता से मुलाक़ात की खबरें ये सब यह बताने के लिए काफ़ी है कि फिलहाल मील परिवार इस पहले रास्ते पर बढ रहा है।
वैसे इस राह के कई खतरे भी है। सबसे पहले खतरा तो यह है कि जनता अब इतनी बेवकूफ नहीं रही कि वो ये नहीं समझ सकें कि आखिर चुनाव के वक्त ही ऐसे वीडियो और आरोप क्यों लगाए जाते हैं ? सच तो ये है कि मील परिवार के ऐसे प्रयास विरोधियों को गेदर के पक्ष में सहानुभूति का पात्र बनाकर लामबंद कर रहे हैं।
इसके अलावा आने वाले दिनों में पार्टी अनुशासन के चलते मील परिवार के समर्थक कहे जाने वाले कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए इस विरोध को सार्वजनिक रूप से लम्बा चलाना मुश्किल हो जाएगा। वहीं ज्यादा अति होने पर देर सवेर पार्टी अनुशासन के नाम पर होने वाली कारवाई मील परिवार के नेताओं और समर्थक पदाधिकारीयों के लिए बड़ी शर्मिंदगी का कारण बन सकती है।
दूसरी और अगर यह प्लान कामयाब नहीं होता है तो भविष्य में मील परिवार की पंचायत समिति की सरकार पर ऐसे ही षड्यंत्रों के चलते गिरने का खतरा भी पैदा हो जायेगा । इन सब के अलावा इस रास्ते का एक खतरा यह है कि मंजिल पर पहुंचने के लिए जब भविष्य में आप इस रास्ते से गुजरते हैं तो आपके बिछाये हुए कांटे आप ही के लिए परेशानी का सबब बन जाते हैं। ऐसी परिस्थितियों में अजीम ओ शान शायर बशीर बद्र का एक शेर याद आ रहा है।
दुश्मनी करो तो जमकर करो, पर गुंजाइश रहे। जब कभी हम मिले शर्मिंदगी ना हो।।
हनुमान मील चुनाव लड़कर रोकेंगे गेदर का रथ !
मील परिवार के लिए दूसरा रास्ता यह है कि वे गेदर के विजय रथ को रोकने के लिए हनुमान मील को मैदान में उतारे। राजनीति के देवताओं के आशीर्वाद (टिकट) के बिना यह लड़ाई मील परिवार के लिए आसान नहीं है। लेकिन चार्ल्स डार्विन का ‘योग्यतम की उत्तरजीविता‘ का सिद्धांत यहां भी लागू होता है। बिना देवताओं के आशीर्वाद के दिखाया गया दमख़म इतिहास में दर्ज़ होकर भविष्य की राह दिखाता है।
सूरतगढ़ से ही 2008 में निर्दलीय चुनाव लड़कर 2013 में भाजपा का टिकट पाने वाले राजेन्द्र भादू, 2013 और 2018 में बसपा (निर्दलीय समान) से लड़कर 2023 में कांग्रेस से टिकट पाने वाले डूंगरराम गेदर, श्रीगंगानगर में 2018 में निर्दलीय लड़कर 2023 में भाजपा का टिकट लाने वाले जयदीप बिहानी और करणपुर विधानसभा में 2018 में निर्दलीय लड़कर 2023 में भाजपा से टिकट के प्रबल दावेदार बने पृथ्वीपाल संधू इतिहास के ऐसे ही कुछ उदाहरण है जिनसे युवा नेता संघर्ष की राह चुनने का सबक ले सकता है।
जैसा कि हमने पहले ही कहा टिकट के बिना ऐसे युद्ध जितना मुश्किल है। लेकिन आप अगर अपने दुश्मन को रोकने में कामयाब हो जाते हैं तो आप अपने वजूद को बचा लेते है। वैसे युवा नेता के पक्ष में एक समीकरण यह भी है कि फिलहाल सत्ता और संघठन पर मील परिवार की पकड़ है। इस बात का फायदा एक और जहाँ युवा नेता को मिलेगा वहीं कांग्रेस पदाधिकारियों और जनप्रतिनिधियों का समर्थन नहीं मिलने से भी गेदर की मुश्किलें बढ़ेगी।
पिछले 3 सालों से फील्ड में सक्रिय मील परिवार के युवा नेता इस चुनौती को स्वीकार कर अपनी लोकप्रियता और तैयारी को हक़ीक़त की कसौटी पर परख कर भविष्य के लिए खुद को तैयार कर सकते है। लेकिन निराशा के समंदर से उबरकर हौसले की यह उड़ान भरने से पहले युवा नेता के लिए यह जरूरी है कि वे लश्कर में छुपे मौका परस्त दरबारियों और वफादार सिपहसलारों में पहचान कर अपनी ताकत का अंदाजा लगा ले।
भाजपा में शामिल होकर देंगे समर्थन !
मील परिवार के लिए तीसरी राह दुश्मन के खेमे में शामिल होने की भी है। वे भाजपा में शामिल होकर या बाहर से खुलकर समर्थन कर एक तरह से दुश्मन की मदद करनें का विकल्प भी चुन सकते हैं। पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर मील परिवार के नेताओं की भाजपा के दिग्गजों के साथ मुलाकात के बाद ऐसी चर्चाएं चल भी रही थी। मगर कांग्रेस नेता सचिन पायलट के साथ राजाराम मील की मुलाकात के बाद इस बात की उम्मीद भी कम ही है ।
हालांकि मील परिवार के लिए मुश्किलें यहां भी है। कड़वा मगर सच ये है कि भाजपा में शामिल होने के बाद मील परिवार के लिए टिकट की राह ज्यादा कठिन होगी । वजह है सूरतगढ़ भाजपा में टिकट के दावेदारी कर रहे योद्धाओं की संख्या। जो कांग्रेस से न केवल ज्यादा है बल्कि जमीनी स्तर पर भी भाजपा के कई नेता मील परिवार से ज्यादा मजबूत है। इसलिये कांग्रेस में अकेले गेदर की बादशाहत को चुनौती देना मील परिवार के लिए ज्यादा श्रेयसकर रहने वाला है।
चुप रहकर करेंगे अच्छे दिनों का इंतजार !
मील परिवार के लिए जो चौथा और आखिरी रास्ता है वह है अँधेरे के खत्म होने या फिर सुबह होने तक का इंतजार करना। क्योंकि जब आपका बुरा वक्त चल रहा हो उसमें अच्छे समय का इंतजार करना ही लड़ाई का सबसे बेहतर विकल्प माना जाता है।
सत्ता में रहते हुए मील परिवार के नेताओं की गलतियों नें इस दिग्गज परिवार को एक बारगी विधायकी की दौड़ से बाहर जरूर कर दिया है। लेकिन अभी भी पंचायत समिति के माध्यम से वे विकासोन्मुख और न्यायप्रिय शासन कर अपनी छवि पर लगे दागों को हल्का कर सकते हैं और इन कार्यों के बल पर 5 साल बाद आने वाले चुनावों में परिवार के युवा नेता फिर टिकट की दावेदारी कर सकेंगे। भगवान की तरह जनता भी देर सवेर माफ कर देती है, यह बात मील परिवार और युवा नेता ध्यान में रखनी चाहिए।
कुल मिलाकर चापलूसों और नकारात्मक छवि के लोगों नें राजनीति के दिग्गज इस परिवार की टिकट कटाकर अपना काम कर दिया है। बार-बार आगाह करने के बावजूद गलतियों से सबक नहीं लेने वाले मील परिवार के नेता अब कौनसी राह चुनते है इसको लेकर जल्द ही पर्दा उठने वाला है ! परन्तु हमें लगता है कि इस बुरे वक़्त में युवा नेता को अच्छे समय का इंतजार करना चाहिए या फिर गेदर की चुनौती को स्वीकार कर अपने भविष्य की इबारत को लिखने के लिए चुनावी रण में उतरना चाहिए ? इस निर्णय को लेते समय वे किसी शायर की इन पंक्तियों को भी याद कर सकते है।
गिरते हैं शह सवार ही मैदान ए जंग में, वो तिफ़्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चले।।
–राजेन्द्र पटावरी, उपाध्यक्ष, प्रैस क्लब, सूरतगढ़।
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