सूरतगढ़। क्या भाजपा प्रत्याशी प्रियंका बैलान को अब केवल प्रधानमंत्री मोदी का ही सहारा है ? जिस तरह से बैलान के समर्थन में आयोजित सभाओं में भीड़ नहीं जुट रही है उससे तो यही लग रहा है। प्रमुख नेताओं की सभाओं में भीड़ नहीं जुटने से बैलान के साथ भीतरघात की गुंजाइश भी नजर आने लगी है। सूरतगढ़ में सीएम भजनलाल शर्मा की सभा में भीड़ का आंकड़ा ढाई हजार भी नहीं पहुंच पाया। आठ विधानसभा क्षेत्र वाली लोकसभा में प्रदेश के मुखिया की सभा में ढाई हजार से कम भीड़ का आंकड़ा यह बताने के लिए काफी है कि पार्टी में सब ठीक नहीं है।
विधानसभा चुनाव से पहले सूरतगढ़ भाजपा के कई नेता अपने खुद के दम पर इससे ज्यादा भीड़ जुटा रहे थे। लेकिन अब ज़ब बात प्रियंका के लिए भीड़ जुटाने की आई तो न जाने ये सुरमा कहां चले गए। यहां ये भी जान ले कि शहर में भाजपा के करीब 20 पार्षद और 5 मंडल भी है। सभी पार्षद 50-50 का टारगेट भी दिया होता तो भी करीब 1000 लोगों की भीड़ जुट जाती। पांच मंडल अगर 500 की भीड़ भी जुटाते तो आंकड़ा सम्मानजनक हो सकता था।
वैसे यहां बात अकेले सूरतगढ़ के नेताओं की भी नहीं है,आस पास के विधानसभा क्षेत्रों के नेता भी अगर 5-5 सौ लोगों की भीड़ लाते तो भी मुख्यमंत्री की सभा की शान बचने लायक लायक भीड़ तो हो जाती।
कुल मिलाकर मुख्यमंत्री की विजय शंखनाद रैली में उम्मीद से कम भीड़ आयी जो इस बात का साफ-साफ इशारा है कि भाजपा के स्थानीय बड़े नेता और भाजपा का संगठन कहीं ना कहीं इन चुनावों में पूरी ताकत नहीं लगा रहा है। जिसका सीधा सा मतलब है कि इन नेताओं की रुचि भाजपा प्रत्याशी को जिताने में नहीं है। शायद इन नेताओं को यह लगता है कि वोट तो मोदी के नाम पर मिलने हैं हमारे मेहनत करने से क्या होगा ?
एक संभावना यह भी है कि भाजपा की टिकट क्यूंकि अप्रत्याशित रूप से प्रियंका बैलान के रूप में बिल्कुल नए चेहरे को मिली है। जिसकी वजह से दशकों से लोकसभा की राजनीति में जमें हुए लोगों को प्रियंका के उदय में अपनी राजनीति का सूर्यास्त होता दिख रहा है। इसलिये इन लोगों ने अपने संबंधों का इस्तेमाल कर स्थानीय राजनेताओं को चुप रहने का इशारा कर दिया हो। जिसकी वजह से स्थानीय नेता प्रियंका के प्रचार में रूचि नहीं दिखा रहे हो।
भीड़ में नहीं दिखा अरोड़ा और मेघवाल समाज का प्रतिनिधित्व
भाजपा प्रत्याशी समर्थन में हुई सीएम की शुक्रवार की सभा ने बैलान की एक और चिंता को बढा दिया है। बैलान के समर्थन में सीएम की सभा में आम भाजपा कार्यकर्ता तो मौजूद था लेकिन सभा में अरोड़ा और मेघवाल कम्युनिटी के लोगों की संख्या कुछ खास नज़र नहीं आई। क्यूंकि बैलान को प्रत्याशी बनाने के पीछे भाजपा का यह मानना था कि बैलान क्यूंकि दोनों समुदायों से बिलोंग करती है तो बैलान को अरोड़ा समुदाय जिसकी संख्या लोकसभा क्षेत्र में अच्छी खासी है उसका झुकाव भी प्रियंका की तरफ होगा। लेकिन सूरतगढ़ में सीएम की सभा में दोनों वर्गों के लोगों का ठंडा रेस्पॉन्स रहा। जिसके चलते लगता यही है कि कहीं ना कहीं बैलान इन दोनों वर्गो को अब तक साध पाने में सफल नहीं हो पाई है।
पीएम के करिश्मे पर टिका प्रियंका का भविष्य !
बहरहाल मुख्यमंत्री की सभा में भीड़ नहीं आने की वजह कुछ भी रही हो। यह बात लगभग तय हो चुकी है कि जिस तरह से डूबते को तिनके का सहारा होता है। भाजपा प्रत्याशी प्रियंका बैलान को भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चमत्कार का सहारा है। वरना ज्यादातर नेताओं के असहयोगात्मक रवैये को देखते तो भाजपा प्रत्याशी की लुटिया डूब जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा। हालांकि कांग्रेस प्रत्याशी के मामले में भी सभाओं में भीड़ और स्थानीय नेताओं का समर्थन कोई बहुत ज्यादा मिल रहा हो ऐसा भी नहीं है।
परंतु इस चुनाव में एक और प्रधानमंत्री मोदी का जादू 2014 और 2019 के मुकाबले में कम हुआ है तो दूसरी और सिख और मुस्लिम समुदाय के वोटर का पूरी तरह से मोदी के विरोध में लामबध हो चुका है। इसके अलावा बहुसंख्यक दलित वर्ग का कांग्रेस की ओर झुकाव नज़र आ रहा है जो यह बताने के लिए काफी है कि प्रियंका की चुनौती आसान नहीं है। उस पर भाजपा के दिग्गज नेताओं का असहयोगात्मक रवैया बैलान के लिए कोढ़ में खाज का काम कर रहा है। कुल मिलाकर डूबते को तिनके का सहारा होता है उसी तरह इस मुकाबले में प्रियंका को सिर्फ प्रधानमंत्री के करिश्मे का ही सहारा दिख रहा है।
– राजेंद्र पटावरी,अध्यक्ष-प्रेस क्लब, सूरतगढ़ |