दूसरे कार्यकाल में भी फिस्सडी साबित हो रहे चेयरमैन कालवा, पट्टा अभियान ने खोली पोल !

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मामला चाहे शहर की सफाई व्यवस्था का हो या फिर शहर के विकास से जुड़े निर्माण कार्यों का, कालवा ने अपने दूसरे कार्यकाल में अब तक निराश ही किया हैं। प्रशासन शहरों के संग अभियान के तहत पट्टा वितरण की बात करें तो कहना गलत नहीं होगा कि इस मामले में तो चेयरमैन कालवा बुरी तरह फिस्सडी साबित हुए हैं। आचार संहिता लगने से ठीक पहले चेयरमैन कालवा ने भले ही 300 पट्टे बांटने का दावा किया। लेकिन हकीकत यह है कि अभी भी लोग पट्टों के लिए  चक्कर काट रहे हैं लेकिन उन्हें पट्टे नहीं मिले हैं। चेयरमैन कालवा का यह दावा कितना खोखला है इस बात का अंदाजा आप इस बात से लगाए कि इन कथित 300 पट्टों में से 150 से अधिक पट्टे कृषि भूमि पर बनी कॉलोनीयों के थे। शेष पट्टों में भी अधिकांश पट्टे स्टेट ग्रांट और 69A श्रेणी के फ्री होल्ड पट्टे शामिल है जिन्हे सही मायनों में पट्टे नहीं कहा जा सकता।

सही मायनों में कच्ची बस्ती और पक्की बस्ती में कब्ज़े के पट्टों को ही वास्तविक पट्टा कहा जा सकता है। चेयरमैन कालवा के दावों के मुताबिक ऐसे पट्टों की संख्या महज 50 थी। एक माह के कार्यकाल में महज 50 पट्टे यह बताने के लिए काफी है कि अध्यक्ष कालवा ने शहर के गरीब लोगों को पट्टे देने के लिए किस कदर गंभीरता दिखाई है।

पट्टों के लिए अब भी चक्कर काट रहा है आम आदमी

नगरपालिका कार्यालय में पट्टा वितरित करते अध्यक्ष कालवा

चेयरमैन ओमप्रकाश कालवा के नेतृत्व में पट्टा वितरण अभियान की एक तल्ख हकीकत यह भी है कि आचार संहिता के चक्कर में भले ही 300 पट्टे बनाने की घोषणा कर गाल बजाने की कोशिश की गई हो लेकिन अभी भी ये पट्टे लोगों को मिल नहीं पाए हैं।

पट्टा वितरण कार्यक्रम में फोटो खिंचवाने के लिए एक बार की 20-30 लोगों को पट्टे बांटे गए थे। लेकिन बाद में पट्टों पर अधिशासी अधिकारी के साइन नहीं होने की बात कहते हुए यह पट्टे भी वापस ले लिए गए। अब पिछले तीन-चार दिनों से लोग पट्टों के लिए नगरपालिका के चक्कर काट रहे हैं लेकिन अधिशासी अधिकारी और अध्यक्ष के साइन नहीं होने के चलते इन पट्टों का भी वितरण भी अटका हुआ है। समझ में नहीं आता कि आखिर जब पट्टों की सारी प्रक्रिया हो चुकी है तो ईओ और चेयरमैन आखिर पट्टों पर साइन क्यों नहीं कर रहे? क्यों आम आदमी से पट्टों के लिए नगरपालिका के चक्कर लगवाए जा रहे हैं ?

चेयरमैन कालवा यदि वास्तव में आम आदमी को राहत देना चाहते हैं तो उन्हें चाहिए कि जिन 300 पट्टों को देने की घोषणा उन्होंने की है उन पट्टों पर स्वयं व संबंधित अधिकारियों के हस्ताक्षर व अन्य खानापूर्ति करवाकर  जल्द से जल्द वितरित करवाए जिससे कि उन लोगों को तो कम से कम राहत मिले जिनके पट्टे बन चुके हैं।

पट्टा बनाने के लिए लाखों की जीएसटी लेने की रही चर्चा

नगरपालिका चेयरमैन ओमप्रकाश कालवा के दोबारा पदभार ग्रहण करते समय भाजपा नेता रामप्रताप कासनिया और खुद कालवा ने पट्टा बनाने में किसी को पैसे नहीं देने की अपील की थी। लेकिन मजेदार बात ये है कि अभियान के दौरान ही अध्यक्ष कालवा के खुद के वार्ड नंबर-26 और वार्ड नंबर-3 में लाखों रुपए लेकर खाली प्लॉट के पट्टे बनाने की चर्चा शहर भर में हो गई थी। नगरपालिका का प्रशासनिक अमला जिस तरह से दूसरे सभी वार्ड छोड़कर वार्ड नंबर-3 और 26 में जिस तरह से लगाया गया उससे पट्टों में भ्रष्टाचार की चर्चाओं को बल मिला। इसके अलावा यह भी कहा जा रहा है कि कालवा से जुड़े पार्षदों को भी अपने-अपने वार्डों के पट्टे बनाकर भ्रष्टाचार की गंगा में डुबकी लगवाने का झांसा भी दिया गया था। लेकिन जहाँ वार्ड -3 और 26 में कोर्ट के स्टे के चलते पट्टे नहीं बनने से चेयरमैन कालवा को झटका लगा वहीं दूसरी और कच्ची-पक्की बस्ती के वार्डों में भी पट्टे नहीं बनने से पार्षदों को भी निराशा हाथ लगी।

कुल मिलाकर चेयरमैन कालवा के पहले कार्यकाल की तरह दूसरे कार्यकाल में पट्टा वितरण अभियान भ्रष्टाचार की चर्चाओं के बीच आम आदमी को वो राहत नहीं दे सका जिसकी उम्मीद कालवा जैसे उच्च शिक्षित नेता से की जा रही थी।

पट्टे नहीं बनने से पार्षदों में भी निराशा

क्योंकि प्रशासन शहरों के संग अभियान 31 मार्च 2024 को समाप्त होने को है और उसे पर आचार संहिता लगने का डर भी था ऐसे में सभी पार्षदों  खासकर भाजपा के पार्षदों को कालवा के अध्यक्ष बनने के बाद यह उम्मीद जगी थी कि अब उनके वार्ड के ज्यादा से ज्यादा लंबित पट्टे बन पाएंगे। कालवा के अध्यक्ष बनने के बाद जिस तरह से भाजपा के भाजपा के कुछ पार्षदों की ड्यूटी पट्टा बनाने में लगाई गई थी उससे एक बारगी लग रहा था कि भाजपा पार्षदों के साथ हुई पिछली नाइंसाफी की भरपाई अब ज्यादा से ज्यादा पट्टे बनाकर की जाएगी। लेकिन अब जब आचार संहिता लग चुकी है भाजपा पार्षद पट्टे नहीं बनने से खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। हालत यह है कि अब पार्षदों के लिए लोगों को जवाब देना मुश्किल हो गया है।

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