पालिका की निर्माण शाखा में लगी दीमकें,पैसों के लालच में जेईएन साहब नें शुरू की नई परम्परा, सरकार के पट्टा अभियान को भी लगाया पलीता

CURRUPTION

सूरतगढ़। दीमक के बारे में कहा जाता है कि वह ज़ब किसी लकड़ी में लग जाती है तो उसे खोखला बना देती है। सूरतगढ़ नगरपालिका कार्यालय में ऐसी कई दीमके हैं जो पूरी व्यवस्था को खोखला बनानें में जुटी है। वैसे तो ये दीमकें पालिका की प्रत्येक शाखा में मौजूद है लेकिन आज हम बात करेंगे नगरपालिका की निर्माण शाखा की।

शहर में निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार के जो कीर्तिमान पिछले कुछ समय से बने है उसमें निर्माण शाखा के दो जेईएन का बड़ा योगदान रहा है। निर्माण शाखा में पिछले लम्बे समय से कब्ज़ा जमाये बैठे इन जेईएन में से एक को चेयरमैन ओम कालवा को प्रताड़ित करने की सुपारी देकर खास तौर पर अपॉइंट करवाया गया था। अपने पूरे कार्यकाल में जेईएन साहब नें बखूबी इस काम को अंजाम दिया। वहीं दूसरे श्रीमान भी कोई कम नहीं है। वह कहावत तो आपने सुनी ही होगी ‘बड़े मियां तो बड़े मियां छोटे मियां भी सुभानल्लाह’। कांग्रेस सरकार के दौरान सिंडिकेट के सदस्य के रूप में इन दूसरे श्रीमानजी ने भी कम गदर नहीं मचाया। कमीशन के लालच में दोनों अधिकारीयों नें ठेकेदारों के घटिया निर्माण पर आंखें मुंदे ली। जिसकी वजह से निर्माण कार्यों पर करोड़ों रुपए खर्च होने के बाद भी शहर के हालात बद से बदत्तर हो गये। हालात यह है कि शहर में पिछले एक-डेढ़ साल में हुआ एक भी निर्माण कार्य ऐसा नहीं है जिसको लेकर कहा जा सके कि उसमे निर्धारित मापदंडों का पालन हुआ है।

वैसे निर्धारित मापदंडो का पालन हो भी तो कैसे ज़ब भूमि शाखा में बैठे इन अभियंताओं का मन तय कमीशन से नहीं भर रहा हो। नगरपालिका के ठेकेदारों की माने तो ज्यादा काली कमाई की चाहत में इनमें से एक अधिकारी नें तो पिछले कुछ समय से ठेकेदारों से ‘बिल बनाने के बदले अवैध वसूली’ की नई परंपरा शुरू कर दी है। सूरतगढ़ नगरपालिका के इतिहास में यह संभवत पहली बार है जब ठेकेदारों को बिल बनाने के लिए भी लगान चुकाना पड़ रहा है। बेचारे ठेकेदार भी करे तो क्या करें मजबूरी में उन्हें जेईएन साहब को नजराना चुकाना पड़ रहा हैं।

वैसे इसमें साहब का भी कोई दोष नहीं है। सूत्रों के मुताबिक साहब काफी शौकीन मिजाज वाले है। क्यूंकि शौक कैसा भी हो उसकी कीमत चुकानी पड़ती हैं। इसलिये जेईएन साहब भी क्या करें ? साहब का जोर तो बस ठेकेदारों पर चल सकता है सो उन्होंने बिल बनाने के बदले अवैध वसूली की नई परंपरा शुरू कर दी। वैसे अपने शौक के चलते साहब की पहले भी कई बार काफ़ी छिछालेदार हो चुकी है। कुछ समय पहले साहब की किसी कॉलोनाइजर के कारिंदे के साथ बातचीत की एक ऑडियो भी काफ़ी वायरल हुई थी। जिसमे सामने वाला साहब को बासी भोजन से काम चलाने का कह रहा था। बताया जा रहा है कि साहब के शौक का ख्याल रखने वाले इस कारिंदे नें ही लेनदेन के चलते ऑडियो वायरल करवा दिया था। बाद में इस मामले में एक बड़े नेताजी नें पंचायत भी की थी।

वहीं दूसरे साहब की बात करें तो उनका शौक कुछ अलग है और शौक पूरा करने का उनका तरीका भी कुछ अलग है। शौक का खर्च निकालनें के लिए ये साहब अपने रौब का इस्तेमाल कर स्टोर और दूसरी शाखाओं के बड़े टेंडरों की मेजरमेंट बुक भरकर दूसरे अभियंताओं का कमीशन डकार जाते हैं।

वैसे अगर आप सोच रहे हो कि पैसों के लालच में इन दोनों जेईएन नें नगरपालिका में केवल निर्माण कार्यों की लंका जलाई है तो आपको यह जान लेना चाहिए कि राज्य सरकार द्वारा आम आदमी को और खासकर कमजोर वर्ग को पट्टा देने के लिए जो अभियान चलाया गया उसको फेल करने में सबसे बड़ा योगदान इन्हीं दोनों अधिकारीयों का है। सूरतगढ़ नगरपालिका द्वारा कई बार सबसे ज्यादा पट्टे बांटने का जो ढोल बजाया गया उसकी हकीकत यह है कि शहर में सबसे ज्यादा पट्टे बड़े धन्नासेठों की कॉलोनीयों के बनाए गए। क्यूंकि धन्नासेठों नें प्रत्येक पट्टे के लिए कमीशन तय कर रखा था। इसी कमीशन के लालच में ये दोनों जेईएन अपने पूरे कार्यकाल में धन्नासेठों के हरकारे बनकर रिपोर्ट करते रहे है। जबकि आम आदमी जेईइन रिपोर्ट के लिए नगरपालिका में चक्कर काटते रहा है ।

पूर्व में परसराम भाटिया के चेयरमैन रहने के दौरान उन्होंने पट्टों पर रिपोर्ट करने के लिए दोनों अभियंताओं को बार बार कहा लेकिन गंदगी खाने के शौक के चलते दोनों अभियंताओं नें भाटिया की तमाम कोशिशों पर पानी फेर दिया। नगरपालिका में कच्ची या पक्की बस्ती में जो थोड़े बहुत पट्टे बने है वह भी दोनों जेईएन की दलालों के साथ सेटिंग से बने है। इन अभियंताओं की पट्टा अभियान में कारगुजारी का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि कच्ची बस्ती के 16 वार्डों में अभियान के दौरान महज 310 के करीब ही पट्टे बने हैं। यानि की इन वार्डों में प्रत्येक वार्ड में पट्टे बनने की औसत 20 से भी कम है। पट्टा  बनाने के किसी भी अभियान की सफलता कच्ची बस्ती के पट्टों की संख्या से ही मापी जाती है। शहर के 16 वार्डों में 310 पट्टों से आप इस अभियान की हकीकत को समझ सकते है। सही मायनो में नगरपालिका में प्रशासन शहरों के संग अभियान के असफल होने को कोई वास्तविक दोषी है तो निर्माण शाखा में लगी यही दीमके है।

                      हालांकि नगरपालिका में सत्ता परिवर्तन के बाद एक दीमक नें सूरतगढ़ नगरपालिका से नोहर की और रुखसत कर ली है। लेकिन अभी भी दूसरी दीमक निर्माण शाखा को चट करने में लगी हुई है। नगरपालिका चेयरमैन ओमप्रकाश कालवा और पूर्व विधायक रामप्रताप कासनिया यदि वास्तव में सूरतगढ़ नगरपालिका में सत्ता परिवर्तन के साथ व्यवस्था परिवर्तन भी चाहते हैं तो सबसे पहले उन्हें पालिका की निर्माण शाखा में लगी इन दीमकों को हटाना चाहिए। अच्छी बात यह है कि अभी भी तबादलों का समय बाकी है। देखना होगा कि नये हुकूमरान कांग्रेस सरकार के सरंक्षण में पली दीमकों को साफ करेंगे या फिर इनको लूट की छूट जारी रहेगी ।

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