सूरतगढ़। विधानसभा चुनावों के नतीजे यूं तो 3 दिसंबर को आयेंगे। लेकिन पूर्व विधायक राजेंद्र भादू के बागी तेवर फिलहाल भाजपा प्रत्याशी को दौड़ से बाहर करते नजर आ रहे हैं। गुरुवार को नामांकन वापस लेने के अंतिम दिन भाजपा खेमे द्वारा भादू को मनाने के तमाम प्रयास किए गए लेकिन पूर्व विधायक टस से मस नहीं हुए। जिलाध्यक्ष शरणपाल सिंह सहित भाजपा के तमाम नेता दोपहर 3:00 तक भादू निवास पर डेरा डाले रहे लेकिन भादू ने इन नेताओं को घास तक नहीं डाली।
प्रेस वार्ता में कासनिया पर सवाल, कहा : व्यवस्था परिवर्तन के लिए लड़ रहा चुनाव
शुक्रवार शाम 4:00 बजे भादू ने अपने निवास पर प्रेस वार्ता कर चुनाव प्रचार अभियान आगाज कर दिया। भादू ने कहा कि वे शहर में पिछले 5 साल से चल रही बेलगाम व्यवस्था में परिवर्तन चाहते हैं। पूर्व विधायक मील पर भूमाफियाओं को शय देने और भ्रष्टाचार को बढ़ाने का आरोप लगाया। भादू ने कहा कि पिछले 5 साल से जब शहर जल रहा था तब विधायक और उनका नगरमंडल हाथ पैर हाथ धरे बैठा रहा। किसान और आम जनता पिस्ती रही लेकिन मेरी तो चलती नहीं, मेरी तो सरकार नहीं है जैसे बहाने बनाकर विधायक कासनिया अपनी जिम्मेदारियां से बचते रहे। भादू ने पहले भ्रष्टाचार के आरोपी पालिकाध्यक्ष ओम कालवा और अब शहर में सरकारी भूमि की लूट और अव्यवस्था के जिम्मेदार मील परिवार के नेताओं को पार्टी में शामिल करने के निर्णय पर कासनिया को आड़े हाथ लिया। भादू ने कहा कि इस तरह के लोगों की पार्टी में मौजूदगी से भाजपा में बरसों से विश्वास करने वाले लोगों की भावनाओं को गहरा धक्का लगा है ?
पूर्व विधायक ने कासनिया की भाषा शैली पर सवाल खड़ा किया ? भादू ने कहा कि जब भी कोई पीड़ित मदद की उम्मीद लिए कासनिया के पास पहुंचा तो उन्होंने लोगों से किस तरह का व्यवहार किया यह बात किसी से छुपी नहीं है। प्रेस कांफ्रेंस के दौरान भादू खुद भी कासनिया के व्यवहार से आहत दिखे।
इस अवसर पर भादू नें कहा कि उन्होंने और उनके परिवार के लोगों ने कभी भी जाति के नाम पर वोट नहीं माँगा। उन्हें समाज के हर वर्ग का वोट और समर्थन मिला। उन्होंने कहा कि सूरतगढ़ की जनता को जाति पांति का भेद भुलाकर वोट करना चाहिये। भादू ने कहा कि उनका परिवार पिछले 70 सालों से राजनीति में है। उन्हें उम्मीद है कि लोग व्यवस्था परिवर्तन की इस मुहीम में उनके साथ देंगे।
भादू के लड़ने से कासनिया हुए दौड़ से बाहर ?
राजेंद्र भादू का नाम सूरतगढ़ के सबसे कददावर नेताओं में शामिल है। भादू की हर हाल में चुनाव लड़ने की घोषणा मुकाबला त्रिकोणीय होता दिख रहा है। भादू भले ही निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन आज भी वे एटा सिंगरासर नहर आंदोलन और विधायक कार्यकाल में दिलाए गए हजारों कृषि कनेक्शन की बदलते भादू आज भी टिब्बा क्षेत्र में अच्छा खासा वोट बैंक रखते है।
विधायक रामप्रताप कासनिया इस समय गेदर के मुकाबले में सबसे मजबूत कहीं दिखाई देते हैं तो वह यही टिब्बा क्षेत्र है। ऐसे में भादू की मौजूदगी के चलते कासनिया को सबसे बड़ा झटका यहीं से लगेगा। इसके अलावा जैतसर और शहरी क्षेत्र में भी पूर्व भादू अपने लंबे समय के व्यक्तिगत रिलेशनों के चलते बड़ी संख्या में वोट जुटाएंगे। शहरी क्षेत्र के लोग वैसे भी कासनिया की भाषा शैली और व्यहवार से पहले ही नाराज है। कासनिया के रवैये और 5 साल के ऐसे निर्णयों के चलते आम जनता और भाजपा कार्यकर्ताओं में पहले ही साख खो चुके थे। अब राजेंद्र भादू के चुनाव लड़ने के चलते शहरी जनता को विकल्प मिलने से कासनिया को नुकसान होना तय हो चुका है।
भादू को चुनाव लड़ने पर बिश्नोई समुदाय का भी अच्छा खासा वोट भी भादू को मिलता दिख रहा है। क्योंकि बिश्नोई समाज के कई बड़े नेताओं ने पिछले दिनों की सभा में मंच से समर्थन देने की घोषणा की है। बिश्नोई समाज को दिए गए पट्टे का कर्ज बिश्नोई समाज भादू को बड़ी संख्या में वोट देकर उतरने की कोशिश करेगा इसमें कोई संशय नहीं है। ऐसे में कासनिया को बिश्नोई वोट बैंक के रूप में भी बड़ा नुकसान होगा। इसके अलावा राजपूत और जाट समाज के वोट बैंक में भी भादू घुसपैठ करेंगे जिसका सीधा खामियाजा कासनिया को भुगतना होगा।
भादू मुस्लिम वोट बैंक के रूप में गेदर को भी नुकसान पहुंचाएंगे लेकिन यह नुकसान कासनिया को होने वाले नुकसान से तो कम ही होगा।
कुल मिलाकर राजेंद्र भादू का चुनाव लड़ना कासनिया के लिए खतरे की घंटी है। भादू द्वारा लगाए गए वोटो की सेंध के बाद कासनिया के मुकाबले में पिछड़ने के हालात बन गए हैं। हमें लगता है कि पूर्व विधायक को नहीं मना पानें की क़ीमत कासनिया के विधायक बनने के सपने पर भारी पड़ेगी।
पूर्व विधायक भादू के नहीं मानने की इनसाइड स्टोरी !
पूर्व विधायक राजेंद्र भादू के नामांकन दाखिल करने के बाद उम्मीद की जा रही थी कि भाजपा उन्हें मना लेगी और वे अपना नामांकन वापस ले लेंगे। लेकिन गुरुवार को नामांकन वापस लेने के अंतिम समय तक भाजपा के नेता और कार्यकर्ता भादू को मनाने की कोशिश करते रहे। लेकिन भादू अपने फैसले पर अडिग रहे। इस बीच भादू के पर्चा वापस नहीं लेने के कर्म को लेकर चर्चाओं का दौर जारी है।
कहा जा रहा है कि वसुंधरा खेमे के माने जाने वाले भादू को ऊपर से चुनाव लड़ने का इशारा है। ऐसे में क्या वसुंधरा खेमा भादू को चुनाव लड़वाकर टिकट काटने का हिसाब टिकट को बैरंग भेजकर करना चाहता है ! हमें लगता है कि बात इससे कुछ बड़ी है। क्यूंकि भादू लाखों रुपए खर्च करने के बाद हार को गले लगाने का आत्मघाती कदम उठाने वाले नेताओं में नहीं है।
इसलिये भादू के चुनाव लड़ने के पीछे एक संभावना यह बनती है कि फिलहाल सुबे में भाजपा की सरकार बनती दिख रही हैं और वसुंधरा राजे अभी भी मुख्यमंत्री की दौड़ में दूसरे सभी नेताओं से बहुत आगे हैं। इसलिये भादू चुनाव लड़कर भले ही जीत न पाये परन्तु कासनिया हार जाते हैं तो सूरतगढ़ में भादू को वसुंधरा खेमे का होनें का प्रसाद मिलेगा। भविष्य में डिज़ायर से लेकर तमाम प्रशासन की डोर भादू के हाथ में होगी। ऐसे हालातो में हार कर भी सत्ता का मजा चखने की उम्मीद कर रहे कासनिया और उनके समर्थकों के सपनों पर तुषारापात होगा, वहीं भादू और उनके समर्थकों की बल्ले बल्ले होगी । इसके अलावा भादू परिवार की राजनीतिक विरासत को बचाए रखने में सफल होंगे। शायद यही वो वजह है जिसके चलते भादू तमाम संभावित नकारात्मक परिणामों की अनदेखी कर चुनाव लड़ने पर अड़े हुए हैं।