नगरपालिका ने 2021 में काटी थी आवासीय योजना
सूरतगढ़। क्या आपने सुना है कि राजस्व विभाग किसी को बिना जमीन अन्य खसरे में फ़र्ज़ी कब्जे की रिपोर्ट पर खातेदारी दे दे और बाद में इस फ़र्ज़ी खातेदारी की आड़ में तीसरे खसरे की खाली पड़ी जमीन पर कब्ज़ा करवा दे। शायद नहीं! परन्तु आप अगर रसूखदार है तो सूरतगढ़ में भ्रष्टाचार में डूबे अधिकारी आपके लिए कुछ भी कर सकते हैं।
कुछ ऐसा ही मामला शहर के सबसे विवादित खसरा नंबर 315/2 का है। 2015 में खातेदारी देते समय इस खसरे को सनसिटी रिसोर्ट के पीछे बताया गया था। लेकिन अब इस खसरे को वार्ड नंबर-26 में निरंकारी भवन के पीछे खाली पड़े बेशकीमती भूखंड पर फिट करने की तैयारी की जा रही है। जबकि खसरा नंबर-315/1 में स्थित इस भूखंड पर वर्ष 2021 में नगरपालिका आवासीय योजना काट चुकी है।
हालांकि पिछले विधानसभा चुनावों में भी इस भूखंड पर चारदिवारी कर कब्ज़ा करने का प्रयास किया गया था। लेकिन सत्ता के मद्द में चूर बदमाशों द्वारा पालिका कर्मचारियों पर जानलेवा हमला करने के बाद ईओ पूजा शर्मा ने हौसला दिखाते हुए इस भूखंड से अतिक्रमण को हटा दिया था ।
लेकिन अब एक बार फिर इस जमीन को हड़पने के लिए प्रभावशाली लोगों ने राजस्व अधिकारियों से मिलीभगत कर खसरों की पेमाईश के बहाने एक कमेटी का गठन करवाया है। इस कमेटी में विभाग के कुछ महाभ्रष्ट राजस्व कार्मिकों को शामिल किया गया है। जिनमे से कुछ एक तो खुद भी इस जमीन में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष हिस्सेदार रहे है। ऐसे मे आप अंदाजा लगा सकते है कमेटी की रिपोर्ट क्या रहेगी ! इस पुरे मामले का खुलासा खबर पॉलिटिक्स की इस रिपोर्ट में आज हम करेंगे।
क्या है पूरी साज़िश ?


दरअसल निरंकारी भवन के पीछे खसरा नंबर-315/1 के इस बेशकीमती भूखंड को हड़पने का षड्यंत्र वर्ष 2021 से चल रहा है, जब तात्कालिक कार्यवाहक एडीएम हरीतिमा ने सनसिटी रिसोर्ट के पीछे खसरा नंबर-315/2 की जगह खसरा नंबर-320 की बहाली का निर्णय दिया था। उसके बाद से खसरा नंबर-315/2 के प्रभावशाली खातेदारों की नज़र इस बेशकीमती खाली भूमि पर थी। इसी के चलते इन लोगों ने सत्ता पक्ष के एक प्रभावशाली नेता जिनकी भी इस भूमि में अप्रत्यक्ष हिस्सेदारी थी, की मदद से इस जमीन पर नगरपालिका द्वारा काटी गई आवासीय योजना की नीलामी को रुकवा दिया। इसके साथ ही उन्होंने राजस्व विभाग से सेटिंग कर मार्च 2023 में खसरा नंबर 315/2 के सीमा ज्ञान के लिए एक कमेटी गठित करवा ली। भ्रष्ट राजस्व कर्मचारियों की इस कमेटी ने कुछ दिनों बाद ही अपने राजनितिक आकाओं के इशारों पर गूगल मैप में खसरा नंबर-315/1 की खाली पड़ी जगह को खसरा नंबर -315/2 का हिस्सा बता दिया। साथ दैनिक पटवारी डायरी में खसरा नंबर-315/2 का सीमा ज्ञान कराने की रिपोर्ट कर दी।


इस रिपोर्ट के आने के बाद कुछ महीनो तक इस रिपोर्ट को दबाए रखा ताकि मामला हाईलाइट ना हो। लेकिन जैसे ही विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लगी इन लोगों ने प्रशासन की व्यस्तता का फायदा उठाते हुए इस रिपोर्ट के बहाने खसरा नंबर-315/1 की इस खाली जगह पर चारदिवारी कर कब्ज़ा कर लिया।
राजस्व कमेटी की रिपोर्ट और गूगल मैप में अंकन पर खडे हो रहे गंभीर सवाल

कमेटी द्वारा तैयार गूगल मैप को गौर से देखें तो साफ पता चलता है कि कमेटी ने गूगल मैप में खसरा नंबर-315/1 के 1 को काटकर 2 लिख दिया था। इसके अलावा दैनिक पटवारी डायरी में रिपोर्ट पर साइन करने वाले पालिका कर्मचारियों की माने तो कमेटी सदस्यों ने धोखे में रखकर खसरा नंबर-315/2 के सीमा ज्ञान की रिपोर्ट पर उनके साइन करवाए थे। असल में कर्मचारीयों को वार्ड-3 और 26 में पट्टे बनाने की सीमा चिन्हित करने के लिए बुलाया गया था।
इसके अलावा इस कमेटी में गिरदावर वरुण सहारण के शामिल होने से भी रिपोर्ट की सत्यता पर सवाल खड़ा होता है। क्यूंकि खुद वरुण सहारण और उनकी पत्नी अमनदीप कौर का नाम खसरा नंबर 315/2 की राजस्व जमाबंदी में खातेदार के रूप में दर्ज़ रहा है। साफ है कि हितबध पक्षकार होने के चलते उन्हें कमेटी में शामिल ही नहीं होना चाहिए था।

प्रभावशाली लोगों के दबाव में करीब एक साल तक नहीं हटा कब्ज़ा
इस बेशकीमती भूखंड पर दिनदहाड़े हुए कब्ज़े का मामला तब मीडिया में खूब चर्चा में रहा था बावजूद इसके करीब एक साल तक यह अतिक्रमण नहीं हटा। जबकि अतिक्रमण हटाने को लेकर वाइस चेयरमैन सलीम कुरैशी, पार्षद मदन ओझा, ओम राजपुरोहित, राजगिरी सहित कई पार्षद प्रतिनिधियों ने नगरपालिका में बार-बार धरना और ज्ञापन भी दिए, लेकिन तत्कालिक ईओ पवन चौधरी बहाने बनाते रहे।
ये तो अतिक्रमियों ने वक़्त खराब आ गया कि पिछले साल अक्टूबर में उन्होंने भूखंड पर निर्माण रोकने पहुंचे पालिका कर्मचारियों पर हमला कर दिया। जिसके बाद ईओ पूजा शर्मा की अंतरात्मा जागी और उन्होंने राजनितिक दबाब की अनदेखी कर अतिक्रमण ध्वस्त कर दिया। ये अलग बात है कि पूजा शर्मा के इस कदम से बोखलाये अतिक्रमियों ने ईओ सहित पालिका कर्मचारियों पर मुकदमा ठोक दिया। जिसकी जाँच अब भी जारी है।
प्रशासन ने नई कमेटी में भी गिरदावर वरुण सहारण को किया शामिल, उठ रहे सवाल ?


इस विवाद के बाद ईओ पूजा शर्मा ने राजस्व विभाग से खसरा नंबर -315/2 सहित करीब एक दर्जन खसरों के सीमा ज्ञान करवाने की मांग की है। हैरानी की बात ये है तहसीलदार द्वारा इस मामले में जो पांच सदस्य नई कमेटी गठित की है उसमे एक बार फिर गिरदावर वरुण सहारण को शामिल कर लिया है। जबकि सहारण का प्रत्यक्ष या फिर अप्रत्यक्ष हित इस भूमि से जुड़ा है। गिरदावर वरुण सहारण को बार बार कमेटी में शामिल करना ये बताता है राजस्व प्रशासन प्रभावशाली लोगों की जूठन खाकर अपने ईमान का सौदा कर चुका है।
बिना पैमाईश खसरा नंबर-315/2 की बेशकीमती भूमि सौंपने की तैयारी
इस पुरे मामले में उपखंड अधिकारी संदीप काकड़ और तहसीलदार कुलदीप कसवां की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे है। क्यूंकि प्रकरण में गिरदावर वरुण सहारण का प्रत्यक्ष हित होने की जानकारी के बावजूद उसे कमेटी से हटाया नहीं गया है। इसके अलावा दोनों अधिकारीयों द्वारा नगरपालिका की बार-बार मांग के बाद भी खसरों के पेमाईश नहीं करवाना भी इन अधिकारीयों की भूमिका पर सवाल खडे करता है।
सूत्रों की माने दोनों अधिकारी बिना पेमाईश करवाए ही यह जमीन प्रभावशाली लोगों को सौंपना चाहते है, और इसके लिए ईओ पूजा शर्मा पर भी सरेंडर होने का दबाब बनाया जा रहा है। क्यूंकि अगर नगरपालिका की मांग के अनुसार सभी खसरों का सीमा ज्ञान करवाया जाता है तो खसरा नंबर -315/2 को खसरा नंबर -315/1 की जगह फिट ही नहीं किया जा सकता। इसके अलावा इन सभी खसरों की पेमाईश से राजस्व अधिकारीयों के पुराने पाप भी सामने आ सकते है।
प्रशासन बिना कब्ज़े से हासिल खसरा नंबर 315/2 की फ़र्ज़ी खातेदारी करे रद्द !
इस मामले में होना तो यह चाहिए था कि राजस्व विभाग खसरा न.-315/2 की खातेदारी को रद्द करता। क्यूंकि सनसिटी रिसोर्ट के पीछे खसरा नंबर-320 की बहाली से यह साफ हो चुका है कि 2015 में खातेदारी देते समय सनसिटी रिसोर्ट के पीछे खसरा नंबर-315/2 होने और खातेदार बागअली का कब्जा होने की रिपोर्ट ही फ़र्ज़ी थी। ऐसे में राजस्व विभाग को फ़र्ज़ी तथ्यों और रिपोर्ट के आधार पर ली गई खातेदारी तुरंत प्रभाव से रद्द करना चाहिए। लेकिन शहर का दुर्भाग्य है कि यहाँ प्रशासन ही फ़र्ज़ी खातेदारों को सरकारी जमीनो पर कब्ज़ा कराने की तैयारी में लगा हुआ है।
जिम्मेदार बने है मूक दर्शक, भुगतना पड़ेगा खामियाजा !
खसरा नंबर-315/2 के नाम पर पिछले कई सालों से चल रही लूट के बावजूद जिम्मेदार मूकदर्शक बने हुए है। वर्ष 2021 में पूर्व विधायक रामप्रताप कासनिया के कार्यकाल में ही खसरा नंबर 315/2 को खसरा नंबर-320 बनाने का खेल रचा गया। तब कासनिया को इसकी पूरी जानकारी थी उन्होंने कई मौकों पर दबी जुबान में इस मामले को जिक्र भी किया। लेकिन जाने किस डर से उन्होंने इस भ्रष्टाचार के खिलाफ खुलकर आवाज़ नहीं उठाई ? नतीजा ये हुआ कि कासनिया की दबँग नेता की छवि पर डेंट पड़ गया और चुनावों मे जनता ने उन्हें ख़ारिज कर दिया। वर्तमान में कासनिया विधायक नहीं है पर सत्ता के केंद्र में है, वे चाहे तो शहर की इस बेशकीमती जमीन को माफियाओ से बचाकर पिछली भूल सुधार कर सकते है।
यहां विधायक डूंगरराम गेदर की जिम्मेदारी भी कम नहीं होती। क्यूंकि 2021 की कासनिया वाली भूमिका में अब वे खुद है। विपक्ष में होने के बहाने वे भी अगर कासनिया की गलती दोहराते है तो उन्हें याद रखना चाहिए कि जनता इतिहास दोहरा भी सकती है।