कालवा के भाजपा ज्वाइन करने से सदमे में कांग्रेस

सूरतगढ़। राजनीती के बारे कहा जाता है यह सम्भावनाओं की कला है। नगरपालिका चेयरमैन मास्टर ओमप्रकाश कालवा ने शुक्रवार को अचानक भाजपा ज्वाइन कर एक बार फिर इस बात पर मोहर लगा दी है। सीवरेज घोटाले में आरोपों से घिरे चेयरमैन ओमप्रकाश कालवा को कुछ ही दिनों का मेहमान माना जा रहा है लेकिन मास्टरजी ने धोबी पछाड़ का वह दाव चला की राजनितिक धुरंधरों के पैरों तले जमीन खिसक गई। अपनी तमाम खामियों के बावजूद इस अप्रत्याशित कदम से चेयरमैन कालवा ने यह साबित कर दिया है कि वह राजनीति के भी गुरु है। ऐसे में उनसे निपटने के लिए उनके विरोधियों को किसी अच्छे गुरुकुल में क्लास लेने की जरूरत है। राजनीति की पिच पर चेयरमैन कालवा की इस गुगली का जवाब उनके विरोधियों के पास फिलहाल नहीं दिख रहा है। ऐसे में चेयरमैन कालवा के इस थप्पड़ की गूंज उनके राजनीतिक विरोधियों को बहुत देर तक सुनाई देगी।
किंग मेकर बनकर उभरे विधायक रामप्रताप कासनिया
इस पूरे घटनाक्रम में विधायक रामप्रताप कासनिया किंग मेकर बनकर उभरे है। विधायक कासनिया के लिए कालवा को शामिल करने का निर्णय आसान नहीं था वह भी तब जबकि उनकी ही पार्टी के 2 पार्षद चैयरमेन कालवा को हटाने की मुहिम छेड़े हुए थे। खुद कासनिया की स्कुल की जमीन और भाजपा पदाधिकारीयों की कॉलोनी की आड़ में कब्ज़े के आरोपों की चर्चाओं के बीच कालवा को पार्टी में शामिल करने से विधायक कासनिया पर गुप्त समझौते के आरोप लगेंगे, यह बात भी कासनिया जानते थे। फिर भी उन्होंने आरोपों और चर्चाओं को दरकिनार करते हुए कालवा को भाजपा ज्वाइन कराने का फैसला लिया।
हालांकि पर्दे के पीछे कसनिया की कूटनीतिक जीत और मील परिवार को राजनितिक पटखनी देने में सबसे बड़ी भूमिका नगरमंडल अध्यक्ष सुरेश मिश्रा की रही है। चेयरमैन कालवा पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों और भाजपा के ही पार्षदों के विरोध के चलते जब कासनिया असमंजस की स्थिति में थे तब मंडल अध्यक्ष सुरेश मिश्रा ने ही चेयरमैन कालवा को पार्टी में लेने के लिए कासनिया को तैयार किया। कुल मिलाकर सुरेश मिश्रा इस प्रकरण में चाणक्य की भूमिका में रहे। मील परिवार को राजनीतिक शिकस्त देकर विधायक कासनिया किंग मेकर बने हैं वहीं पार्टी में सुरेश मिश्रा का भी कद बढ़ा है।
चुनावी साल में मील परिवार और कांग्रेस को बड़ा झटका
कांग्रेस के बात करें तो इस पुरे घटनाक्रम ने मील परिवार की राजनीति को बहुत बड़ा झटका दिया है। राजनीति में लंबा वक्त बिताने के बावजूद इस पूरे मामले को मील परिवार और उनके राजनितिक सलाहकारों ने नौसिखियों की तरह डील किया है। उसी का नतीजा रहा कि उन्होंने नगरपालिका में कांग्रेस के बहुमत वाले बोर्ड को थाली में परोस कर को भाजपा को दे दिया। भाजपा में जहाँ मंडल अध्यक्ष सुरेश मिश्रा ने विधायक कासनिया को एज दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, वहीं मील परिवार के सलाहकारों ने अपनी राजनितिक अज्ञानता से कांग्रेस और मील परिवार की लुटिया डुबो दी।
मील परिवार के सामने अब सबसे बड़ी समस्या है कि चुनावी साल में अगर वे नगरपालिका की राजनीति में उलझे रहे तो 2023 का सपना चकनाचूर हो सकता है। हालांकि हर गलती से व्यक्ति सबक ले सकता है उम्मीद की जानी चाहिए कि मील और उनके सलाहकार इस भूल से सबक लेंगे।
मील और कालवा का पॉलिटिकल झगड़ा शहर पर ना पड़े भारी
चेयरमैन ओमप्रकाश कालवा के कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी का हाथ थामने से शहर की राजनीति में तूफान आ गया है। आने वाले दिनों में मील परिवार और चेयरमैन कालवा के बीच वर्चस्व की लड़ाई बढ़ती दिख रही है। ऐसे में इस लड़ाई का नुकसान शहर की जनता को भुगतना पड़ेगा। नगरपालिका में अव्यवस्था और भ्रष्टाचार से पहले से ही शहर का आमजन परेशान हैं। अब इस लड़ाई से हालात और बिगड़ते दिख रहे है। दोनों पक्षों को चाहिए कि आपसी लड़ाई में शहर का विकास प्रभावित न होने दें।
वैसे अब गेंद मील परिवार के पाले में है कि वह नगरपालिका में भ्रष्टाचार और अव्यवस्था दूर कर शहर के विकास में किस तरह की भूमिका अदा करते हैं। क्योंकि चेयरमैन कालवा अब एक तरह से विपक्ष में है और विक्टिम कार्ड खेल सकते हैं। कांग्रेस की सरकार और अधिकारियों से सहयोग नहीं मिलने की बात कह कर वे विकास की अपनी जिम्मेदारी से बच सकते है लेकिन मील परिवार नहीं। उम्मीद की जानी चाहिए कि दोनों पक्ष राजनीतिक परिपक्वता का परिचय देंगे !
– राजेंद्र पटावरी, उपाध्यक्ष- प्रेस क्लब, सूरतगढ़