सूरतगढ़। विधायक रामप्रताप कासनिया को भाजपा की टिकट मील चुकी है। अब हर किसी की नजर कांग्रेस नेता हनुमान मील के अगले कदम पर है। बसपा से कांग्रेस में आए गेदर को टिकट मिलने से नाराज मील परिवार सार्वजनिक रूप से गेदर को हराने की घोषणा कर चुका है। खुद चुनाव लड़ने की बजाय मील परिवार किसी विपक्षी मजबूत नेता की मदद कर गेदर को सबक सिखाने की सोच रहा था।
मील परिवार और उनके सलाहकारों का मानना था कि कासनिया के बजाय राजेंद्र भादू ही गेदर को पटखनी दे सकते हैं। इसीलिए मील परिवार के बड़े नेता भादू को टिकट दिलाने के लिए जयपुर व दिल्ली में लॉबिंग कर रहे थे। उन्हें उम्मीद थी कि भाजपा की टिकट भादू को मिलेगी। लेकिन मील परिवार का यह सपना भी कासनिया को टिकट की घोषणा के साथ धराशाई हो चुका है। यही वजह है कि अब हर कोई इस बात का कयास लगाने में लगा है कि आखिर मिल परिवार का अगला स्टेण्ड क्या होगा ?
हनुमान मील क्या लड़ेंगे चुनाव….क्या है विकल्प !

कासनीय को टिकट मिलने के बाद भी मील परिवार के पास अभी भी कई विकल्प है। हनुमान मील इनमें किस विकल्प का चुनाव करता है यह तो भविष्य तय करेगा। लेकिन हम इन विकल्पों के संभावित फायदों और नुकसान के के बारे में बात कर लेते हैं।
चुनावी में उतरकर गेदर का रथ रोकनें का विकल्प
हनुमान मील के सामने सबसे पहला विकल्प है कि वह खुद चुनाव में उतरकर गेदर के जीत की ओर बढ़ रहे रथ का पहिया थामें। टिकट कटने से निराश किसी भी नेता के लिए बगैर टिकट चुनाव लड़ना कोई आसान काम नहीं है। फिर भी इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि हनुमान मील नें पिछले 3 सालों में विधानसभा के गांव-गांव और गलियों की खाक छानी है। उनकी छवि को लेकर भले ही लोगों के विचार अलग-अलग हो लेकिन वे एक अच्छी खासी फैन फॉलोइंग रखते हैं।
इसके अलावा नगरपालिका के अधिकांश पार्षद,सरपंच और डायरेक्टर और कांग्रेस संगठन के पदाधिकारी अभी हनुमान मील के साथ खड़े हैं। गेदर को टिकट मिलने के बाद से वे हनुमान मील के इशारे का इंतजार कर रहे हैं। जो इस बात को साबित करता है कि यदि हनुमान मील चुनाव लड़ते हैं तो गेदर को जबरदस्त नुकसान पहुंचा सकते हैं और उनके विजयी रथ पर ब्रेक लगा सकते हैं। इस प्रयास में हनुमान मील को अगर सफलता मिलती है तो इससे बेहतर उनके लिए कुछ हो नहीं सकता है ।
पर इससे इतर यदि हनुमान मील सफल नहीं भी हो पाते हैं तो भी इस चुनाव का अनुभव और चुनाव में मिलने वाले वोट उनके भविष्य की राजनीति की आधारशिला तो बनेंगे। जिससे 5 साल बाद आने वाले चुनाव में उनकी दावेदारी को मजबूत होंगी। इसके साथ ही चुनाव लड़कर वह भविष्य में भी समर्थकों को साथ बनाए रखने में सफल होंगे वरना देर सवेर उनके समर्थक गेदर के साथ जुड़ जायेंगे। इन हालातों के लिए ही शायद किसी शायर ने ये पंक्तिया लिखी है।
होने लगी है जिस्म में जुम्बिश सी देखिये। इस पर कटे परिंदे की कोशिश तो देखिये।।
कासनिया की मदद का विकल्प, पर कासनिया मानेंगे इसमें संशय
गेदर को निपटाने की क़वायद में विधायक रामप्रताप कासनिया की मदद हनुमान मील और मील परिवार कर सकता है। परन्तु मील परिवार की मदद के ऑफर को कासनिया स्वीकार करेंगे इस बात की उम्मीद कम है। क्योंकि कासनिया घाघ राजनीतिज्ञ है। मील परिवार की राजनीति में गिर चुकी साख का उन्हें अंदाजा है। उन्हें लगता है कि यदि वे मील परिवार का प्रत्यक्ष सहयोग लेते हैं तो उनके समर्थकों और वोटरों पर इसका नेगेटिव प्रभाव पड़ेगा और उन्हें फायदे की वजह नुकसान ज्यादा हो सकता है।
भ्रष्टाचार के आरोपों से गिरे नगरपालिका के पूर्व अध्यक्ष ओम कालवा को पार्टी में शामिल करने को लेकर भी विधायक को खासी आलोचना सहन करनी पड़ी हैं। कासनीय दूसरी बार ऐसी गलती करेंगे लगता नहीं है। इसलिये हनुमान मील मैदान में उतरने का फैसला करेंगे इस बात की ज्यादा संभावना है। सामान्यतौर पर यह कदम भले ही आत्महत्या जैसा लगे। लेकिन राजनीति में वही जिंदा है जो चुनाव लड़ता है। हार और जीत से बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता।
भाई पृथ्वीराज मील को मदद करने का विकल्प
हनुमान मील के पास एक तीसरा विकल्प यह भी है कि वह अपने ही परिवार के जेजेपी से लड़ रहे भाई पृथ्वीराज मील को समर्थन दे। ऐसा कर मील परिवार गेदर को भारी नुकसान पहुंचा सकता हैं और इससे पृथ्वीराज मील निश्चित रूप से मजबूत होंगे। परन्तु यहां दिक्कत यह है कि भविष्य में पृथ्वीराज मील के राजनीतिक रूप से मजबूत होने पर हनुमान मील के लिए क्षेत्र की राजनीति में सरवाइव करना मुश्किल होगा। ऐसे में हमें नहीं लगता है कि हनुमान मील किसी भी हालत में पृथ्वीराज मील समर्थन देने पर विचार करेंगे।
निर्दलीय राजेंद्र भादू की मदद से भी खतरा
हनुमान मील के लिए एक परिस्थिति ये भी है कि अगर राजेंद्र भादू निर्दलीय रूप से चुनाव लड़े तो वे उसकी मदद करें। लेकिन टिकट के बगैर लड़ने की योजना बना रहे राजेंद्र भादू के साथ मिलकर चुनाव लड़ना भी मील परिवार के लिए घाटे का सौदा ही साबित होता दिख रहा है। क्योंकि मिल परिवार भले ही कांग्रेस का वोट बैंक तोड़कर भादू को दिला दे। पर क्या इस बात की भी संभावना नहीं है कि निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़कर राजेंद्र भादू भाजपा को भी बड़ा नुकसान पहुंचाएंगे। जिसका फायदा फिलहाल मील परिवार के सबसे बड़े दुश्मन गेदर को मिलेगा जो हनुमान मील कभी नहीं चाहेंगे।
चुनाव से दूर रहकर घर बैठे हनुमान मील… समर्थकों के लिए मुसीबत
मिल परिवार के लिए एक संभावना यह भी निकलती है कि वह इस रण से खुद को अलग कर ले और चुपचाप घर बैठ जाए। ऐसा करने से कांग्रेस पार्टी में मील परिवार की साख तो बच जाएगी। लेकिन उनके समर्थकों और कार्यकर्ताओं के लिए चुनाव में निष्क्रिय रहना गले की हड्डी बन जाएगा। कांग्रेस के सिंबल पर चुनाव लड़कर पार्षद, सरपंच और डायरेक्टर बनने वाले और संगठन में विभिन्न पदों पर मनोनीत नेताओं को देर सवेर गेदर की मदद के लिए चुनाव मैदान में उतरना पड़ेगा। वरना पार्टी का डंडा उन पर चलने की संभावना बनी रहेगी।
इसके अलावा इस विकल्प का खतरा यह भी है कि चुनाव जीतने पर गेदर इसका हिसाब करेगा। इसलिए यह विकल्प भी हनुमान मील और मिल परिवार के लिए बहुत ज्यादा फायदेमंद नहीं होगा।
गेदर की मदद कर अच्छे दिनों का करें इंतजार…
हनुमान मील के लिए आख़री विकल्प यह है कि वे अपनी नाराजगी को भुलाकर गेदर की खुलकर मदद करें और चुनाव में विजयश्री दिलाए। इस मदद के बदले पंचायत समिति की सरकार को बचाने, जिला प्रमुख या फिर किसी बड़े पद की डील भी हनुमान मील कर सकते हैं। यह डील यूं तो हनुमान मील और मिल परिवार के लिए फायदे का सौदा है। परंतु भविष्य में विधायक बनने का सपना देख रहे हनुमान मील को इस डील के बाद अच्छे दिनों का लंबा इंतजार करना पड़ेगा। हनुमान मील यह पसंद करेंगे थोड़ा मुश्किल ही दिख रहा है।
हनुमान मील के अगले स्टैंड का इंतजार
हनुमान मील उपरोक्त विकल्पों में से किस विकल्प को अपनाते हैं यह अगले एक-दो दिन में पता चल जाएगा। परंतु चुनावी रंग में रंगे विधानसभा के राजनीतिक विश्लेषकों को और चुनावी रण में कूदने के लिए बेताब उनके समर्थकों को उनके अगले कदम का बेसब्री से इंतजार है।