गेदर को टिकट, भाजपा में प्रत्याशी चयन की दुविधा, मील के लिए मंथन का वक़्त,

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पिछली गलतियों से सबक लेंगे मील परिवार के नेता !

सूरतगढ़। सूरतगढ़ विधानसभा से कांग्रेस ने डूंगरराम गेदर को प्रत्याशी बनाकर मील परिवार की राजनीति का पता काट दिया है । रविवार को जब डूंगरराम गेदर को कांग्रेस की टिकट की घोषणा हुई तो कांग्रेस कार्यकर्ताओं में खुशी की लहर दौड़ गई। सैकड़ों की संख्या में कांग्रेस कार्यकर्ता और गेदर के समर्थक रामदेव बाबा रोड पर स्थित गेदर के कार्यालय पहुंचे और गेदर को बधाई दी। इस अवसर पर समर्थकों ने मिठाइयां बांटकर खुशियां मनाई और आतिशबाजी की। नगरपालिका अध्यक्ष परसराम भाटिया और वाइस चेयरमैन सलीम कुरैशी सहित शहर के गणमान्य लोगों में गेदर को बधाई दी।

अब भाजपा की टिकट घोषणा का इंतजार

कांग्रेस द्वारा डूंगरराम गेंदर को टिकट की घोषणा के बाद अब सबकी नजर भाजपा की ओर से हैं। उम्मीद की जा रही है कि दशहरे के बाद भाजपा अपने प्रत्याशी की घोषणा करेंगी। क्योंकि कांग्रेस द्वारा गैर जाट प्रत्याशी की घोषणा की गई है ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि भाजपा में टिकट किसी जाट उम्मीदवार को दी जाएगी। जाट उम्मीदवारों की बात करें तो फिलहाल रामप्रताप कासनिया का नाम आगे चल रहा है। कासनिया के अलावा पूर्व विधायक राजेंद्र भादू, राहुल लेघा, नरेंद्र घिन्टाला, मोहन पूनियां भी टिकट के दावेदार है।

वहीं अगर भाजपा गैर जाट के मुकाबले गैर जाट को टिकट देती है तो अशोक नागपाल और काजल छाबड़ा का नाम सबसे आगे चल रहा है। इसके अलावा सुभाष गुप्ता, जयप्रकाश सरावगी, आरती शर्मा का नाम भी उनके समर्थक आगे बढ़ा रहे हैं। क्योंकि डूंगरराम गेदर मूल ओबीसी बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं ऐसे में मूल ओबीसी राकेश बिश्नोई, श्रीभगवान सेवटा की उम्मीदवारी पर भी भाजपा विचार कर सकती है। 

भाजपा के लिए उम्मीदवार का चयन बड़ी चुनौती

कांग्रेस द्वारा डूंगरराम गेदर की घोषणा के बाद भाजपा के लिए उम्मीदवार का चयन एक बड़ी चुनौती बन गयी है। चुनौती इसलिए है कि 2013 और 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत की एकमात्र वजह बसपा उम्मीदवार के रूप में डूंगरराम गेदर का ताल ठोकना था। बसपा प्रत्याशी गेदर की वजह से कांग्रेस का अनुसूचित जाति का बड़ा वोट बैंक बिखर गया। जिसका फायदा दोनों बार भाजपा को मिला। लेकिन इस बार सिनारियो अलग है क्योंकि अब बसपा मैदान में भले ही हो लेकिन बसपा में गेदर के मुकाबले का कोई चेहरा नहीं है। ऐसे में बसपा प्रत्याशी को वोट का आंकड़ा चार अंको में सिमट जायेगा और शेष वोट कांग्रेस प्रत्याशी को मिलते नज़र आ रहे है ।

गेदर के पक्ष में फिलहाल एक और बात भी है कि कुम्हार प्रजापति समाज का इलाके में एक बड़ा वोट बैंक है जो बहुसंख्यक भाजपा से जुड़ा हुआ है। लेकिन गेदर के मैदान में होने के चलते अब गेदर को मिलना तय है। ऐसे में भाजपा के लिए सूरतगढ़ से जिताऊ उम्मीदवार का चयन एक बड़ी चुनौती बन चुका है। भाजपा के सामने फिलहाल इसका एक ही विकल्प नजर आ रहा है वह जाट प्रत्याशी को मैदान में उतरना। जिससे कि विधानसभा क्षेत्र का संपूर्ण जाट वोट का धूर्वीकरण भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में किया जा सके। जिससे की भाजपा इस मुकाबले को बराबरी में ला सके।

मील परिवार को इंट्रोस्पेक्शन की जरूरत

राजस्थान की राजनीति में बड़ा नाम रखने वाले मील  परिवार को टिकट नहीं मिलना भूकंप के झटके से कम नहीं है। सूरतगढ़ में कांग्रेस राजनीति का वटवृक्ष माने वाले मील परिवार के नेताओं के लिए यह आत्मचिंतन का वक्त है। इन नेताओं को सोचना चाहिए कि आखिर किस वजह से उनकी सर्वे निगेटिव रहा ? जिसकी वजह से पार्टी ने उनकी टिकट काट कर गेदर को थमा दी। मील परिवार को इस बात पर भी मंथन करना चाहिए कि जब इलाके के लोगों में मील परिवार के प्रति नकारात्मक विचार बन रहे थे तो उन्हें इस बात की जानकारी क्यों नहीं मिली ? क्या चापलूसों और हजारियों ने मील नेताओं को जनता के मूड से बाखबर नहीं होने दिया ?

शहर के समाचार पत्रों और सोशल मीडिया पर लगातार लोग अतिक्रमणों, भाई भतीजावाद के आरोप लग रहे थे तो मील परिवार के नेता आखिर क्यों सोए रहे ? नगरपालिका में भ्रष्ट अधिकारियों की नियुक्ति और इन भ्रष्टाचारियों के नंगे नाच ने मील परिवार के प्रति लोगों के विश्वास को खत्म करने में सबसे अहम रोल निभाया ? परन्तु बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ेगा कि शहर में 15 साल की राजनीति के बावजूद मील परिवार ने अधिकारियों की पोस्टिंग में सबक नहीं लिया जिसका खामियाजा मील परिवार को भुगतना पड़ा। मजेदार बात यह है कि यह सब तब हुआ जब लगातार मीडिया इन भ्रष्टाचारियों के कारनामों का खुलासा कर रहा था।

हनुमान मील को निराशा, भविष्य के लिए गलतियों को सुधारने की जरूरत

मिल परिवार की टिकट कटने से सबसे ज्यादा निराशा हनुमान मील को हुई है इस बात में कोई संदेह नहीं है। वे पिछले 3 सालों से चुनावों को लेकर लगातार मेहनत कर रहे थे। लेकिन कहीं ना कहीं मील परिवार के दूसरे नेताओं की तरह उन्होंने भी गलतियां की जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा है। हालांकि परिवार पर लग रहे अतिक्रमनों के आरोपों पर उन्होंने अभियान चलाकर प्रभावी कार्रवाई भी की। लेकिन कांग्रेस नेता के इस अभियान को विरोध की कार्रवाई के रूप में ही देखा गया। क्यूंकि इस अभियान के बाद में अतिक्रमणों को लेकर उनका रवैया भी ढूलमूल रहा।

इसके अलावा कांग्रेस नेता पर बदले की राजनीति के आरोपों ने भी उनकी छवि को खासा नुकसान पहुंचाया। यही नहीं पूर्व विधायक पर जहां चापलूसों की सलाह पर काम करने के आरोप लगते रहे वहीं हनुमान मील भी इसी गलती को दोहराते रहे। सच बात यह भी है कि शहर की जनता में मील परिवार और उनके नेताओं से अधिक नाराजगी दोनों नेताओं को घेरे रहने वाले चाटुकारों से थी। खुद को मिल परिवार का खासमखास साबित कर इन लोगों ने मील राजनीति की लंका लगा दी और पता तक नहीं लगने दिया।

कुल मिलाकर हनुमान मील ही मील परिवार की राजनीति का भविष्य है और क्योंकि राजनीति में इमेज बहुत महत्वपूर्ण होती है। इसलिये हनुमान मील को चाहिए कि चापलूसों और चाटुकारों को तुरंत प्रभाव से दूर कर साफ सुथरा लोगों को अपनी टीम में शामिल करें। इसके अलावा उन्हें बदले की राजनीति करने वाले नेता की छवि से भी बाहर आने की भी जरूरत है। उम्मीद की जानी चाहिए कि युवा नेता पिछली गलतियों से सबक लेंगे।

– राजेंद्र पटावरी, उपाध्यक्ष-प्रेस क्लब।

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