कालवा की असफल पारी का अंत !, राजनितिक लड़ाई में भाटिया-सिंधी ने दी पटखनी

CURRUPTION

सूरतगढ़‘बड़े बे आबरू होकर निकले तेरे कूचे से हम’। चेयरमैन के रूप में मास्टर ओम प्रकाश कालवा की 5 साल की कार्यशैली से उनकी यह नियति तो पहले ही तय थी। लेकिन शुक्रवार को माननीय उच्च न्यायालय के आदेश नें कालवा की रुखसत पर मोहर लगा दी है। न्यायालय नें राज्य सरकार के 2 अगस्त के आदेश को स्टे कर एक तरह से कालवा की राजनितिक पारी पर विराम लगा दिया है। हालांकि मास्टरजी सिंगल बेंच के फैसले को डबल बैच में चुनौती देंगे। परन्तु सिंगल बैंच दो बार और एक बार डबल बेंच सीवरेज मामले में कालवा निलंबन के आदेश क़ो सही ठहरा चुकी है। ऐसे में उम्मीद कम है कि सीवरेज में भ्रष्टाचार की गंदगी में लठपथ कालवा को न्यायपालिका से राहत मिलेगी।

        कालवा की उम्मीदें फिलहाल सिर्फ और सिर्फ चमत्कार पर टिकी है। वैसे चमत्कार के लिए जरूरी है कि कोई आपके हक में दुआ करें। क्यूंकि पिछले 4 सालों में कालवा ने ऐसा कोई तीर नहीं मारा है कि आम जनता उनके लिए दुआ करें। कालवा स्वीकार करें या फिर नहीं, सच ये है कि अपने करीब 4 साल के कार्यकाल में उन्होंने आम जनता क़ो निराश ही किया है। छोटे छोटे कामों के लिए उन्होंने लोगों की चप्पल घिसवाने का काम किया। पट्टे,सफाई व्यवस्था, सड़क, बिजली या नगरपालिका से जुड़ा कोई भी काम रहा हो उनके कार्यकाल में जनता बस परेशान ही रही।

कालवा के कार्यकाल में प्रशासन शहरों के संग अभियान में जमा फाइलों के पट्टे लेने के लिए लोग आज भी चक्कर काट रहे हैं। बड़ी संख्या में ऐसे लोग है जिन्होंने एक डेढ़ साल पहले नियमन राशि जमा कर रसीदें ले ली। लेकिन कालवा की हठधर्मिता से पट्टे का सपना अभी भी दूर की कौड़ी बना हुआ है। हक़ीक़त ये है कि दलालों ने कच्ची व पक्की बस्ती के पट्टों में जीएसटी के लालच ने कालवा क़ो पथभ्रष्ट कर दिया। जिसके चलते कालवा की अगुवाई में सरकार द्वारा दी गई छूटों का लाभ आमजन को नहीं मिला। हालात किस कदर खराब थे इसका अंदाजा इस बात से लगा लें कि पट्टों के लिए एक वरिष्ठ पार्षद क़ो शिविर में पीपा बजाकर अपनी पीड़ा का प्रदर्शन करना पड़ा। 

           अपने कार्यकाल में पार्षदों क़ो पार्षदों और कर्मचारियों से लड़ाने वाले कालवा ने सफाईकर्मियों का टूल के रूप में इस्तेमाल किया। सफाईकर्मियों द्वारा शहर के व्यापारियों से मारपीट की घटना कालवा की इसी शय की परिणति थी। ज़ब सफाईकर्मीयों का इस्तेमाल हथियार के रूप में होने लगे तो शहर की सफाई व्यवस्था भी कैसे बेहतर होती ? पिछले 5 साल से अपने आसपास जो नरक जैसे हालात आप देख रहे हैं उसके लिए बहुत हद तक कालवा ही जिम्मेदार हैं।                         

सरकारी स्कूल के नजदीक सड़क पर स्पीड ब्रेकर बनाने का मामला हो या फिर रेलवे स्टेशन रोड बनाने का, ढाब से पानी निकासी हो या फिर कोई और छोटा मोटा काम कालवा ने अपनी तुच्छ मानसिकता के चलते पार्षदों तक की नाक रगड़वा दी। राजनीति में किसी भी बड़े नेता की कामयाबी में प्रेस की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है लेकिन यहां तो कालवा प्रेस वालों के पीछे भी लठ लेकर पड़ गए। अहंकार के चलते पहले उन्होंने एक यूट्यूबर क़ो मानहानि का मुकदमा देने की धमकी दे डाली तो बाद में नगरपालिका में छोटा-मोटा काम कर जीवन यापन करने वाला पत्रकारों और उनके परिवार से जुड़े लोगों क़ो टॉर्चर करना शुरू कर दिया।

                  पत्रकार ही नहीं नगरपालिका से बरसों से अपनी रोजी-रोटी चलाने वाले ठेकेदारों और संविदा कार्मिको क़ो भी कालवा ने चरणवंदना करवाने में अपनी ताक़त लगा दी। खैर ईश्वरीय न्याय के चलते बहुत हद तक कालवा अपने मंसूबे तो पुरे नहीं कर पाए। लेकिन अपनी करतूतों और राजनीतिक द्वेषता के चलते कालवा ने 45 पार्षदों वाले वर्तमान बोर्ड क़ो नगरपालिका इतिहास के सबसे घटिया बोर्ड में जरूर शामिल करवा दिया है। वैसे कालवा सहित वर्तमान बोर्ड शहर की 100 करोड़ रूपये की बेशकीमती भूमि क़ो लुटाने के लिए भी याद रखा जायेंगा। ‘हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे‘ की तर्ज़ पर कालवा ने बेहद चालाकी से इस षड्यंत्र में 37 पार्षदों क़ो शामिल कर उन्हें भी दागदार कर दिया। वर्तमान में कालवा की चापलूसी के चलते इन पार्षदों की हालत हॉलीवुड फिल्मो के खतरनाक जोम्बी जैसी है जिन्हे सभ्य समाज हिकारत की नज़र से देखता है।     

            इस मामले में सबसे अफसोस की बात यह है कि ईश्वर ने कालवा को लगातार मौके दिए लेकिन कालवा ने अगर चाहते तो निलंबन से बहाली के बाद वे पूर्व चेयरमैन रहे परसराम भाटिया से सबक ले सकते थे। भाटिया पर तमाम तरह के भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद उनके 4 माह का कार्यकाल कालवा के 4 साल के कार्यकाल पर भारी नज़र आता है। इसकी वजह भी है उन्होंने छोटे से कार्यकाल में भी आमजन की न केवल समस्याएं सुनी बल्कि उन्हें दूर करने का प्रयास भी किया। सफाई व्यवस्था दुरुस्त की तो हजारों की संख्या में पट्टे दिए और महीनो से पेंडिंग पड़े और नए टेंडर जारी कर विकास के पहिये क़ो गति दी। लेकिन इससे इतर कालवा ने शहर के विकास और आमजन की तकलीफों को दूर करने बजाय अपनी पूरी एनर्जी पार्टी नेताओं, पार्षदों, पत्रकारों क़ो लड़ाने में खपा दी। जिसका हासिल ये है कि आज सत्ता में वापसी की आखिरी लड़ाई में कालवा बिल्कुल अकेले नज़र आ रहे है।

बहरहाल कालवा के 5 साल के कार्यकाल में शहर विकास की दृष्टि से तो पिछड़ा ही है। वहीं राजनीति में करियर बनाने का सपना देख रहे उच्च शिक्षित लोगों क़ो कालवा के निराशाजनक कार्यकाल ने बड़ा नुकसान पहुंचाया है। क्यूंकि कालवा के फैलीयर ने जनता में उच्च शिक्षित लोगों के बेहतर जनप्रतिनिधि होने का जो भरम था उसे खत्म कर दिया है।

भाटिया और सिंधी क़ो निपटाने में नपे कालवा

कहते है कि ‘समय बड़ा बलवान’ ! चेयरमैन बनने के बाद जो मास्टरजी विरोधियों क़ो अपनी राजनीतिक गुगली से छकाते रहे वे खुद भी विरोधियों की गुगली से क्लीन बोल्ड हो गए। सबसे बड़ी बात है कि मास्टर जी नें अध्यक्ष बनने के बाद सबसे पहले कांग्रेस के ब्लॉक अध्यक्ष परसराम भाटिया और मील परिवार के नजदीकी पार्षद पति व संगठन महामंत्री धर्मदास सिंधी क़ो टारगेट किया था। भाग्य का खेल देखिये कि कालवा के राजनीतिक जीवन की उठापटक और अंत की वजह यही दो चेहरे बन गए। कालवा नें तो इन दोनों क़ो कुछ समय के लिए कांग्रेस से बाहर का रास्ता दिखाया था लेकिन राजनीति के शतरंज में घोड़े की भांति ढाई चाल चलकर ये लोग न केवल कांग्रेस में शामिल रहे। बल्कि कालवा के लिए ऐसी परिस्थितियों पैदा कर दी कि कलवा को ना चाहते हुए भी कांग्रेस छोड़नी पड़ी। भाजपा में शामिल होकर कालवा इन्हे निपटाने का तरीका ढूंढ़ते रह गए परन्तु इससे पहले ही भाटिया और सिंधी ने कालवा की बिंदी हटाकर उन्हें विधवा विलाप के मजबूर कर दिया है। हालांकि सीवरेज की शिकायत पूर्व चेयरमैन बनवारी लाल मेघवाल ने की थी और हाईकोर्ट में दायर याचिका में पार्षद बसंत बोहरा और मोहम्मद फारूक का नाम भी शामिल है। लेकिन यह ठोस हकीकत है कि इस कोर्ट के माध्यम से लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने असली रोल भाटिया और सिंधी का रहा। क्यूंकि हाईकोर्ट में महीनो तक 3-3 बार इस मामले क़ो चलाने में पानी की तरह जो पैसा लगा है वह इन्ही दोनों की जेब से लगा है। बहरहाल कालवा इस राजनीतिक शिकस्त का जवाब किस तरह देंगे यह तो आने वाला वक़्त तय करेगा। फिलहाल विरोधी खेमे में जश्न का माहौल है। 

– राजेंद्र कुमार पटावरी, अध्यक्ष-प्रेस क्लब, सूरतगढ़।

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