



सूरतगढ़। कोरोना काल में जब संपूर्ण अर्थव्यवस्था ठप्प हो चुकी थी उस समय मेडिकल कंपनियों द्वारा मास्क, सेनिटाइज़र, ऑक्सीजन कंसंट्रेटर सहित दूसरे उत्पादों की जमकर बिक्री की थी और मोटा मुनाफा कमाया था। उस समय ‘आपदा में अवसर’ का नारा खूब लोकप्रिय हुआ था।
सूरतगढ़ नगरपालिका की बात करें तो यहां के भ्रष्ट अधिकारी भी आपदा में अवसर का लाभ उठाने में माहिर हैं। सूचना के अधिकार कानून के तहत मिले दस्तावेजों से ऐसे ही एक मामले का खुलासा हुआ है। जिसमें पिछले वर्ष जुलाई माह के अंत और अगस्त माह के प्रारंभ में घग्गर नदी में आई बाढ़ के दौरान नगरपालिका अधिकारियों द्वारा मिट्टी के थैले और मिट्टी भर्ती के नाम पर ठेकेदारों से मिलीभगत कर लाखों रुपए का फर्जीवाड़ा कर दिया। तात्कालिक ईओ शैलेंद्र गोदारा ने उस समय आपदा प्रबंधन के तहत 5-5 लाख रूपये के तीन टेंडर मेसर्स तिरुपति कंस्ट्रक्शन कंपनी को जारी किए थे।
इस मामले में नगरपालिका के भ्रष्ट तकनीकी कर्मचारियों ने मेजरमेंट बुक में फर्जी एंट्री कर करीब 12 लाख 75000 हज़ार रूपये का भुगतान कर दिया। इसके अलावा नगरपालिका द्वारा हर वर्ष आपदा प्रबंधन के लिए किए गए नियमित टेंडर की राशि का बड़ा हिस्से की भी बंदरबांट कर ली।
तकनीकी अधिकारियों ने एमबी में की फ़र्ज़ी एंट्रीयां, ठेकेदार को भुगतान कर लगाया चूना
इस पूरे मामले में सूचना के अधिकार से मिली टेंडर की मेजरमेंट बुक यानि की एमबी के अवलोकन से साफ होता है कि तकनीकी अधिकारियों ने कार्यालय में बैठकर फ़र्ज़ी एंट्रीयां कर एमबी भर दी और तुरंत फुरन्त ही भुगतान भी कर दिया गया।
उदाहरण के तौर पर वर्क आर्डर संख्या-1272 के तहत शिव विहार कॉलोनी के उत्तर दिशा में तटबंधों की मजबूती का कार्य करवाया गया। इस कार्य की मेजरमेंट बुक में पालिका के तात्कालिक जेईएन ने दो किलोमीटर तक मिट्टी भर्ती करने की एंट्री की है जबकि मौके पर 2 किलोमीटर लम्बाई का तटबंध ही नहीं है। साफ है कि एंट्री फ़र्ज़ी है। इसके अलावा तटबंधो की मजबूती के लिए जो मिट्टी के थैले की सप्लाई में भी फर्जीवाड़ा किया गया है। मौका स्थल पर बहुत कम मात्रा में मिट्टी के ठेले तटबंधों पर लगाए गए। इसके अलावा भ्रष्ट अधिकारियों ने दिन रात एक्सकैवेटर मशीन चलना दिखाकर भी फ़र्ज़ी एंट्री की गई। कुल मिलाकर वर्क आर्डर संख्या -1272 के तहत 418485/-रूपये का भुगतान कर दिया गया।
ठीक इसी तरह से पालिका के वर्क आर्डर संख्या-1277 के तहत आरसीपी कॉलोनी के पूर्वी दिशा में और वर्क आर्डर संख्या-1282 द्वारा गणेश कॉलोनी के उत्तर दिशा के तटबंधों को मजबूत करने का कार्यदेश जारी किया गया था। तात्कालिक जेईएन द्वारा भरी गई दोनों साइट्स की मेजरमेंट बुक में भी दो-दो किलोमीटर लम्बाई में मिट्टी भरती की एंट्री की गई है। जबकि यहां भी मामला ठीक पहले जैसा ही है मतलब कि इन स्थानों पर भी तटबंधों की लंबाई 2 किलोमीटर है ही नहीं। ऐसे में साफ है कि यहां भी ठेकेदारों के साथ मिलीभगत कर फर्जी एंट्रीयों के जरिए भुगतान उठाया गया। वर्क आर्डर-1277 के तहत 454815/-रूपये और 1282 के तहत 401995/- रूपये का भुगतान ठेकेदार फर्म मेसर्स तिरुपति कंस्ट्रक्शन को किया गया।
वैसे उक्त तीनों टेंडर की मेजरमेंट बुक में पानी टैंकर की सप्लाई के नाम पर भी कुछ एंट्री की गई है जो हैरान करती है। क्योंकि जब पानी की वजह से तटबंधों के टूटने का खतरा पैदा हो रहा था। कुछ समय तटबंधो की मजबूती के लिए ठेकेदार द्वारा टैंकरों से पानी मंगाना कुछ अखरता है। साफ है कि पाइपों के जरिए नदी का पानी तटबंधों की मजबूती के लिए उपयोग में लाया जा सकता था। ऐसे मैं टैंकरों से पानी मांगना भी भुगतान पर सवाल खड़े करता है।
एक ही दिन में एक ही फर्म को तीनों टेंडर देने से भी उठ रहे सवाल
हालांकि आपदा के समय जो भी निर्णय लिए जाते हैं वह उस समय की परिस्थितियों के अनुरूप लिए जाते हैं। लेकिन इस मामले में कई ऐसे बिंदु है जो अधिकारियों की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़ा करते हैं। जैसे की तटबंधों की मजबूती के लिए जो तीन टेंडर किए गए वह एक ही दिन जारी किए गए साथ ही तीनों ही टेंडर एक ही फर्म मैसेज तिरुपति कंस्ट्रक्शन, रायसिंहनगर को ही क्यों दिए गए ?
वैसे सूत्रों के मुताबिक उक्त ठेकेदार फर्म में नगरपालिका में भूमिशाखा में कार्यरत एक अग्निशमन शाखा के कर्मचारी के रिश्तेदार की अप्रत्यक्ष हिस्सेदारी है। साफ है कि कर्मचारी के रिश्तेदार को फायदा पहुंचाने के लिए उक्त तीनों टेंडर एक ही फर्म को दिए गए। यहां यह भी गौरतलब है कि जिस तारीख को यानि कि 8/8/ 2023 को तीनों टेंडर के वर्क आर्डर जारी किए गए तब तक शहर से बाढ़ का खतरा टल चुका था। जिसका सीधा सा मतलब है कि आपदा प्रबंधन के तहत करवाए गए कार्यों के टेंडर बाद में किए गए।
तत्कालिक ईओ,जेईएन और ठेकेदार पर आरोप, मुख्यमंत्री तक पहुंची शिकायत
इस पूरे मामले में तात्कालिक अधिशासी अधिकारी शैलेंद्र गोदारा, जेईएन सुशील सियाग, चरणजीत मीणा और ठेकेदार फर्म सहित नगरपालिका के कई अन्य कार्मिकों की भूमिका संदिग्ध है। वैसे आपको बता दें कि चेयरमैन ओम कालवा के भाजपा ज्वाइन करने के बाद नगरपालिका में एक सिंडिकेट प्रभावी हो गया था। इस सिंडिकेट में ईओ गोदारा, जेईएन सुशील सियाग,चरणजीत मीणा सहित कुछ और लोग शामिल थे। सिंडिकेट के प्रभावित रहते हुए नगरपालिका का पूरा प्रशासनिक अमला कुछ विशेष लोगों को फायदा पहुंचाने का काम कर रहा था। इस दौरान पट्टे बनाने और टेंडरों में जमकर फर्जी वाड़ा कर चहेतों को फायदा पहुंचाया गया। सिंडिकेट के प्रभावी रहने के दौरान किये कामों की जांच की जाए तो कई घोटाले सामने आ सकते हैं।
बहरहाल घग्गर में बाढ़ के दौरान आपदा प्रबंधन के नाम पर हुए इस घोटाले की शिकायत अब मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुंच चुकी है। जल्द ही इस मामले में जांच की आंच दोषी अधिकारियों तक पहुंचने की संभावना है।
चेयरमैन ओम कालवा करवाएं जाँच !
नगरपालिका में अपनी दूसरी पारी शुरु करते हुए चेयरमेन ओमप्रकाश कालवा ने भ्रष्टाचार पर जीरो टोलरेंस के संकेत दिए हैं। इसलिये उन्हें इस मामले की जांच का इनीशिएटिव लेकर दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। इसके साथ ही इस घोटाले की राशि संबंधित अधिकारियों और ठेकेदार से वसूल करनी चाहिए। जिससे कि भविष्य में कोई भी इस तरह के घोटाले की हिम्मत ना जुटा सके।