गोल्डन सिटी के वृन्दावन विहार कॉलोनी बनने का फ़र्ज़ीवाड़ा ? वसंत विहार-आनंद विहार की तरह प्लॉट खरीदने वालों की बढ़ सकती है परेशानी !

CURRUPTION

गोल्डन सिटी में प्लाट खरीदने वाले अभी भी काट रहे चक्कर

सनसिटी रिसोर्ट के पीछे वार्ड नंबर-3 में काटी जा रही वृन्दावन विहार कॉलोनी

सूरतगढ़। पोश कॉलोनी में भूखंड खरीदना हर व्यक्ति का सपना होता है। लेकिन कई बार यह सपना डरावना ख्वाब भी बन जाता है। जैसे कि वसंत विहार और आनंद विहार कॉलोनीयां जिनमें बसे लोगों को आज भी बुलडोज़र चलने का डर सता रहा है। शहर के वार्ड नंबर-3 में काटी जा रही वृन्दावन कॉलोनी भी आने वाले दिनों में नया बसंत विहार-आनंद विहार बन सकती है। ये वही कॉलोनी है जिसकी 90A की कार्यवाही नहीं करने पर चेयरमैन ओम कालवा को कांग्रेस छोड़नी पड़ी थी। बसंत विहार और आनंद विहार की तरह यह कॉलोनी भी भारी भ्रष्टाचार की नींव पर खड़ी है। ऐसे में वृंदावन विहार नामक ख़्वाबों का ये कंगूरा कभी भी भरभरा कर ढह सकता है।

सनसिटी रिसोर्ट के पीछे खसरा नंबर-320 में काटी जा रही वृन्दावन विहार कॉलोनी का नक्शा

कभी था खसरा नंबर-315/2, अब खसरा नंबर-320 बताकर काटी जा रही वृन्दावन विहार 

खसरा नंबर-315/2 की पटवारी रिपोर्ट जिसमे यह खसरा सनसिटी रिसोर्ट के पीछे दिखाया गया

वृंदावन विहार को लेकर विवाद की सबसे बड़ी वजह है कि आज सनसिटी रिजॉर्ट के पीछे जिस जगह को खसरा नंबर-320 बताकर ये कालोनी काटी गई है। वह जगह 2021 से पहले खसरा नंबर-315/2 थी। सन 2015 में इस जगह को खसरा नंबर-315/2 बताते हुए बाग अली नामक व्यक्ति को खातेदारी दी गई थी। उस समय पटवारी रिपोर्ट में भी खसरा नंबर-315/2 को सनसिटी रिसोर्ट के पीछे ठीक इसी जगह दिखाया था। ऊपर दी गई पटवारी की उस समय की मौका नक्शा रिपोर्ट और वृंदावन विहार कॉलोनी के नक्शे का मिलान किया जाये तो साफ समझ में आता है कि यह मामला खसरों में हेर फेर से जुड़ा है। 

2016 में वृन्दावन विहार की जगह पर काटी जा चुकी है गोल्डन सिटी कॉलोनी  

सनसिटी रिसोर्ट के पीछे 2016 में खसरा नंबर-315/2 में काटी गई गोल्डन सिटी कॉलोनी का नक्शा

मामला खातेदारी तक का ही नहीं है जिस जगह वृन्दावन विहार कालोनी काटी जा रही है वहां  2016 में गोल्डन सिटी के नाम से कॉलोनी भी काटी गई थी। तब गोल्डन सिटी को खसरा नंबर 315/2 में बताया गया था। उस समय खरीददारों ने कॉलोनी में प्लॉट खरीद कर रजिस्ट्रीयां भी करवा ली थी। ये और बात है गोल्डन सिटी में प्लॉट खरीदने वाले आज भी अपने प्लॉट और पैसों के लिए चककर काट रहें है।   

      गोल्डन सिटी और वृन्दावन विहार के नक्शों को देखकर भी समझा जा सकता है कि ये दोनों कॉलोनीयां एक ही जगह पर है। इसका सीधा सा अर्थ है कि खसरों की हेर फेर कर खसरा नंबर-315/2 को खसरा नंबर-320 बनाया गया है। 

आखिर खसरा नंबर -315/2 को खसरा नंबर-320 बदलने का क्या है खेल ? 

आप सोच रहें होंगे कि आखिर खसरा नंबर-315/2 कैसे खसरा नंबर-320 बन गया ? असल बात ये कि सन 1972 में सरकार द्वारा खसरा संख्या-320 का रकबा भी अवाप्त किया था। जिसे एडीएम कोर्ट ने 11 नवंबर 2021 को अपील में दिए गए अपने एक फैसले में बहाल कर दिया था। जिसके बाद नए खातेदारों ने खसरा संख्या-315/2 की जमीन को खसरा संख्या-320 बताते हुए न केवल अपने कब्ज़े में लिया बल्कि गोल्डन सिटी में प्लाट खरीदने वाले लोगों के प्लॉट की चारदिवारीयां भी हटा दी। बाद में गोल्डन सिटी में प्लाट खरीदने वाले लोगों ने पुलिस में FIR भी दर्ज कराई लेकिन प्रभावशाली लोगों का कुछ नहीं बिगड़ा। अब भी ये लोग अपने प्लॉट और पैसों के लिए भटक रहे हैं। 

खसरा नंबर -320 का कड़वा इतिहास !

राजस्व दस्तावेजों के मुताबिक खसरा नंबर-320 की जमीन मल्लू राम पुत्र नानक राम (ब्राह्मण) के नाम से दर्ज़ थी। 1972 में सरकार ने दूसरी जमीनों के साथ इस जमीन को भी अवाप्त कर लिया था। बाद में यह जमीन 1986 में मंडी समिति, हनुमानगढ़ और 2005 में इंतक़ाल संख्या-257 के जरिये मंडी समिति से नगरपालिका को ट्रांसफर हो गई थी। लेकिन 2021 में अचानक मल्लूराम के वारिसों ने नोहर निवासी धर्मपाल गोदारा को मुख्तियार आम बनाकर एडीएम कोर्ट में एक अपील पेश कर इंतक़ाल संख्या-257 क़ो ख़ारिज करने की मांग की। ख़ास बात ये रही कि अपील के महज 5 माह और कुछ तारीखों में ही कार्यवाहक ADM डॉ. हरितिमा ने इंतक़ाल संख्या-257 को खारिज कर खातेदारी बहाल करने का फैसला सुना दिया। इसके बाद नगरपालिका की अपील संभागीय आयुक्त द्वारा भी ख़ारिज कर दी। 

90A की कार्रवाई के दबाब में कालवा ने छोड़ी कांग्रेस, भाटिया ने अंपावर्ड कमेटी में लिया नियम विरुद्ध नो अपील का निर्णय 

इस प्रकरण में संभागीय आयुक्त के निर्णय के बाद नगरपालिका राजस्व बोर्ड में अपील कर सकती थी। लेकिन ये आम चर्चा है कि उस समय एक पूर्व विधायक जिनकी इस जमीन में अप्रत्यक्ष हिस्सेदारी थी, ने चेयरमैन ओम कालवा पर अपील नहीं कर जमीन की 90A की कार्रवाई करने का दबाव बनाया। कालवा जानते थे कि ऐसा निर्णय उन्हें जेल की सलाखें दिखा सकता है, इसलिए उन्होंने इंकार कर दिया और कांग्रेस छोड़कर बीजेपी ज्वाइन कर ली।

चर्चाओं के अनुसार बाद में कार्यवाहक चेयरमैन बने परसराम भाटिया ने पूर्व विधायक के दबाब में एंपावर्ड कमेटी बुलाकर अपील नहीं करने का निर्णय ले लिया साथ ही जमीन की 90A की कार्यवाही कर कॉलोनी बनाने की भी हरी झंडी दे दी, जिससे करोड़ों रूपये की ये जमीन नगरपालिका के हाथ से चली गईं।

बोर्ड बैठक की जगह अंपावर्ड कमेटी की बैठक में ‘नो अपील’ का निर्णय ही गलत ?

इस प्रकरण में ऐम्पावर्ड कमेटी की बैठक में लिया गया नो अपील का निर्णय भी संदिग्ध है। क्यूंकि कमेटी प्रशासन शहरों के संग अभियान के लिए बनाई गई थी, ना कि न्यायिक मामलों की अपील या नो अपील का निर्णय करने के लिए। सच तो ये है नो अपील का निर्णय नगरपालिका बोर्ड की सामान्य बैठक में ही लिया जा सकता था। लेकिन पैसों और राजनितिक दबाब के आगे नियमों की परवाह किसे थी।

ADM डॉ हरितिमा का खसरा नंबर-320 की बहाली का निर्णय सवालों के घेरे में 

खसरा नंबर-320 की बहाली प्रकरण की तारीखों का विवरण

इस मामले में कार्यवाहक एडीएम डॉ हरीतिमा का निर्णय भी सवालों के घेरे में है। प्रकरण की पत्रावली देखने से पता चलता है कि कोर्ट ने 8 नवंबर 2021 को सुनवाई की अगली तारीख 15 नवंबर 2021 तय की थी। लेकिन कोर्ट ने 11 नवंबर को ही पक्षकारों को बुला कर सुनवाई ही नही की बल्कि उसी दिन खातेदारी बहाल करने का फैसला भी सुना दिया। हैरानी की बात ये है कि फैसले के एक-2 दिन में ही डॉ हरितिमा से सूरतगढ़ ADM का अतिरिक्त चार्ज वापस ले लिया गया। 17 नवंबर को तो डॉ हरितिमा रिलीव भी हो गई। ऐसे में सवाल खड़ा होता कि आखिर ADM डॉ  हरीतिमा को फैसला सुनाने की ऐसी क्या जल्दी थी ?                       इसके साथ ही एडीएम के भूमि अवाप्ति के 49 साल बाद अपील स्वीकार करने पर भी सवाल खड़ा होता है। डॉ हरितिमा के फैसले पर इसलिए भी सवाल उठता है कि आखिर एडीएम ने खातेदारी बहाली से पहले राजस्व विभाग से कब्ज़ा काश्त की रिपोर्ट क्यों नही ली ? आखिर क्यों कोर्ट ने अपीलार्थी के इस जमीन पर कब्ज़े के मौखिक बयान को सच मान लिया। इसके अलावा इस जमीन पर 2015 में बागअली को जारी खातेदारी और कब्ज़ा काश्त की मौका नक्शा रिपोर्ट जिसका हमने ऊपर जिक्र किया है को कोर्ट द्वारा अनदेखा करने फैसले को संदिग्ध बनाता है।

क्यूंकि हक़ीक़त ये है कि 1972 में भूमि अवाप्ति बाद से राजस्व गिरदावरी के मल्लूराम और उसके वरिसों की भूमि पर कब्जे या फ़सल बिजान की कोई एंट्री दर्ज़ नहीं है। जिससे साबित होता है कि जमीन पर मल्लूराम के वारिसों का कब्ज़ा नहीं था। ज़ब खातेदारों के पास जमीन पर कब्जा ही नहीं था तो क्या खातेदारी बहाली सम्भव है ? शायद कभी भी नही !

राजस्व विभाग भी षड्यंत्र में शामिल, फैसले के बाद मंडी समिति की जगह खातेदारों के नाम कर दी जमीन   

इंतकाल संख्या-257 जिसके द्वारा मंडी समिति से जमीन नगरपालिका को मिली

इसके प्रकरण में राजस्व विभाग के अधिकारी भी षड्यंत्र में शामिल नजर आते है। क्यूंकि अधिकारीयों ने मामला नगरपालिका का बताते हुए शुरू में ही खुद को मामले से अलग कर लिया। अधिकारीयों ने जानबूझकर जमीन पर खसरा संख्या-315/2 की बाग अली की खातेदारी और कब्ज़ा काश्त का तथ्य जानते हुए भी कोर्ट में नहीं रखा। जिससे फैसला प्रभावित हुआ। यहीं नहीं राजस्व अधिकारीयों को कोर्ट के इंतक़ाल संख्या-257 को ख़ारिज करने के फैसले को भी गलत तरीके से लागू किया। क्यूंकि इंतकाल संख्या-257 के जरिये खसरा संख्या-320 मंडी समिति से नगरपालिका के दर्ज़ हुआ था। इसलिए इंतकाल संख्या-257 ख़ारिज होने से जमीन वापस मंडी समिति के नाम दर्ज़ होनी चाहिए थी। लेकिन अधिकारीयों ने फर्ज़ीवाड़ा कर जमीन मंडी समिति की बजाय खातेदारों के नाम चढ़ा दी। परन्तु 1972 का नोटिफिकेशन और उसके आधार पर मंडी समिति के नाम दर्ज़ इंतक़ाल क्यूंकि अभी भी वैध है। इसलिए खसरा नंबर-320 और उस पर बनी कॉलोनी के मालिकाना हक का विवाद कभी भी फिर खड़ा हो सकता है। 

कॉलोनी में प्लॉट खरीदने वालों की कभी भी बढ़ सकती हैं मुश्किले

बहरहाल जिम्मेदारों के आंखें मुंदने और सत्ता के दबाव में कुर्सी पर बैठे प्यादों की बेशर्मी से यह बेशकीमती जमीन फिलहाल भले ही नगरपालिका के हाथ से चली गई हो। लेकिन खसरा नंबर-320 की बहाली और इस खसरे में बन रही वृंदावन विहार कॉलोनी भी हमेशा विवादों में रहेगी। देर सवेर जमीन की खातेदारी बहाली,कन्वर्जन और पट्टे जारी करने वाले अधिकारीयों पर गाज गिरना तय है। जिस दिन ऐसा होगा तब इस कॉलोनी में अपने खून पसीने की कमाई से प्लॉट खरीदने वाले लोगों के पास पछताने के सिवाय कुछ नहीं होगा। इसलिए हमारी आपसे यही अपील है कि सतर्क रहें सावधान रहें।

-राजेन्द्र पटावरी, अध्यक्ष -प्रेस क्लब, सूरतगढ़।

1 thought on “गोल्डन सिटी के वृन्दावन विहार कॉलोनी बनने का फ़र्ज़ीवाड़ा ? वसंत विहार-आनंद विहार की तरह प्लॉट खरीदने वालों की बढ़ सकती है परेशानी !

  1. Bhrashtachar ke neev bahut gehri hai….. SDM se lekar sabhi log ismein Shamil hai. Any logo ne Suratgarh ko jila nahin banne diya

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.