निरंकारी भवन के पीछे करोड़ों के खाली भूखंड पर फिर चारदिवारी की तैयारी ! राजस्व अधिकारीयों से हुई सेटिंग, क्या सत्ताधारी भाजपा नेता समझेंगे अपनी जिम्मेदारी ?

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सूरतगढ़। शहर के वार्ड नंबर-26 में फर्जी खातेदारीयों की आड़ में जमीनों की बंदरबांट का खुला खेल चल रहा है। इस वार्ड की खाली पड़ी अधिकांश जमीनों को भूमाफिया हड़प चुके है और अब उनकी नज़र निरंकारी भवन के पीछे स्थित बेशकीमती जमीन पर है। खसरा नंबर 315/1 की इस जमीन पर नगरपालिका 2021 में आवासीय योजना काट चुकी है। इसके बावजूद प्रभावशाली लोगों ने पिछले विधानसभा चुनाव में इस जमीन पर कब्ज़ा कर लिया था। हालांकि कुछ माह पहले नगरपालिका ने हौसला दिखाते हुए इस अतिक्रमण हटा जमीन वापस खाली करवा ली थी। 

             लेकिन प्रभावशाली लोगों ने अब एक बार फिर बुधवार सुबह इस विशाल भूखंड पर चारदिवारी का निर्माण शुरू कर दिया है। सूत्रों की माने तो प्रभावशाली लोगों की नगरपालिका और राजस्व अधिकारीयों से सेटिंग हो चुकी है। बताया जा रहा है भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात राजस्व विभाग के अधिकारीयों को इस डील में मोटा माल मिला है। इन भ्रष्ट नौकरशाहों और राजनितिक दबाब में ईओ पूजा शर्मा भी घुटने टेक चुकी है। नतीजा यह है कि करीब 10 करोड रुपए की क़ीमत वाले इस बेशकीमती भूखंड पर दिनदहाड़े निर्माण कार्य जारी है।

खातेदारी रद्द करने की जगह करवाया जा रहा बेशकीमती जमीन पर कब्ज़ा ?

वर्ष 2015 में खसरा नंबर 315/2 की खातेदारी के समय पटवारी मौका कब्जा रिपोर्ट
खसरा नंबर 315/2 पर काटी गई गोल्डन सिटी कॉलोनी
सनसिटी रिसोर्ट के पीछे ही खसरा नंबर 315/2 के स्थान पर बाद में खसरा नंबर 320 बनाकर काटी गई वृंदावन विहार कॉलोनी

इस पुरे प्रकरण में हैरान करने वाली बात है वह ये है कि जिस खसरा नंबर-315/2 की खातेदारी की आड़ में इस जमीन पर चारदिवारी कर निर्माण किया जा रहा है। खातेदारी के समय (2015 में ) यह खसरा 315/2 सनसिटी रिसोर्ट के पीछे दिखाया गया था। 2015 में खातेदारी के बाद खाताधारकों ने इस जमीन पर गोल्डन सिटी के नाम से कॉलोनी काटकर कई प्लॉट भी बेच दिए थे। जिनकी कृषि भूमि की रजिस्ट्रियां तक हो चुकी है। लेकिन सन 2021 में राजस्व अधिकारियों ने मिलीभगत कर सनसिटी रिसोर्ट के पीछे इसी जमीन को खसरा नंबर-320 बताकर 50 वर्ष पूर्व ख़ारिज पुराने आवंटन को बहाल कर दिया। इसी खसरा नंबर-320 पर वर्तमान में वृंदावन विहार कालोनी काटी जा रही है। इसका सीधा सा अर्थ ये है कि खसरा नंबर 315/2 की बाघ अली के नाम से जारी खातेदारी फ़र्ज़ी थी। क्योंकि सनसिटी रिसोर्ट के पीछे जिस जमीन पर बाघ अली का कब्जा बताया गया था, वह खसरा नंबर 315/2 ना होकर खसरा नंबर-320 था। मतलब बाग़ अली के कब्जे की उक्त रिपोर्ट ही पूरी फर्जी थी। ऐसे में जमीन के बगैर कब्जे की फ़र्ज़ी रिपोर्ट से हासिल खातेदारी को तुरंत निरस्त किया जाना चाहिए। लेकिन अफसोस की बात है कि राजस्व प्रशासन इस फ़र्ज़ी खातेदारी को निरस्त करने की बजाय शहर की बेशकीमती जमीन पर इस खातेदारी को फिट करने में लगा हुआ है।

भाजपा के सुशासन में भी जारी जमीनों की लूट, जिम्मेदारों के मुंह में जमा दही !

शहर में कहने को तो भाजपा का सुशासन है लेकिन सच ये है कि अतिक्रमणों को लेकर कांग्रेस राज को कोसने वाले भाजपा नेताओं के मुंह में अब दही जम चुका है। हैरानी की बात है कि कांग्रेस कार्यकाल में खसरा नंबर-320 और 315/2 की जमीनों की बंदरबाँट पर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सवाल उठाने वाले पूर्व विधायक रामप्रताप कासनिया भी अब खामोश है। दबंग नेता की छवि रखने वाले और ईमानदारी की कसमें खाने वाले कासनिया उस समय तो बेबस थे लेकिन अब तो सत्ता की ताक़त भी उनके पास है, ऐसे मे इस खुली लूट पर कासनिया की चुप्पी हैरान करने वाली है। 

                 दूसरी और जिले में भाजपा की कमान संभालने वाले संगठन से जुड़े एक बड़े नेता शरण पाल सिंह मान भी सूरतगढ़ से ही है। उनकी भी ये जिम्मेदारी बनती है कि उनकी सरदारी में शहर में सरकारी सम्पति महफूज रहे। वैसे जिस तरह की राजनीतिक परिस्थितियां शहर में है उनमे अगर जिलाध्यक्ष शरणपाल मान चाहें तो जिला प्रशासन से तुरंत हस्तक्षेप की मांग कर सकते है। मान अगर जरा भी शहर हितेषी है तो उन्हें मामले की निष्पक्ष जाँच कर खसरा नंबर-315/2 की खातेदारी रद्द करने की मांग करनी चाहिए। उम्मीद की जानी चाहिए कि सत्ता की ताकत लिए ये नेता इन प्रभावशाली लोगों के सामने खड़े होने का नैतिक साहस दिखाएंगे।  

विधायक गेदर विधानसभा में उठा चुके है मामला ! लेकिन ठोस कार्यवाही नहीं होने तक मोर्चा संभालना जरूरी

इस मामले को सूरतगढ़ विधायक डूंगरराम गैदर विधानसभा में उठाकर कुछ हद तक अपनी भूमिका निभा चुके हैं। क्यूंकि वर्तमान में सत्ता की ताकत भाजपा नेताओं के पास है इसलिये गेंद भी भाजपा नेताओं के पाले में है। लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस के विधायक और मुख्य विपक्षी चेहरा होने के चलते गेदर की जिम्मेदारी है कि वे इस जमीन को बचाने के लिए आखिर तक प्रयास करें। गेदर भी चाहे तो कलेक्टर से मिलकर तुरंत खातेदारी रद्द करने की मांग कर इस बेशकीमती जमीन को बचा सकतें है। इस पुरे प्रकरण को समझने के लिए खबर पॉलिटिक्स के नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

– राजेंद्र पटावरी, अध्यक्ष -प्रेस क्लब, सूरतगढ़।

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