








सूरतगढ़। अवैध अतिक्रमण हटाने को लेकर हाईकोर्ट में दायर रिट याचिका वापस लेने से शहर में अतिक्रमणों का मामला एकबारगी ठंडा पड़ गया है। हाईकोर्ट की डबल बैंच ने याचिकाकर्ता की पूरी रिसर्च के साथ रीट लगाने की मांग पर रिट क़ो ख़ारिज कर दिया। हालांकि कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सक्षम अथॉरिटी से शिकायत दर्ज़ करवाने की छूट प्रदान की है।
हाईकोर्ट के निर्णय की जानकारी मिलने के बाद रिट से प्रभावित होने वाले लोगों ख़ासकर शहर की बसंत विहार व आनंद विहार कॉलोनी के लोगों ने राहत की सांस ली है। याचिकाकर्ता उमेश मुद्गल और नरेंद्र शर्मा द्वारा अपनी याचिका में बसंत विहार व आनंद विहार कॉलोनी के जोहड़ पायतन में बसे होने का आरोप लगाया था और जोहड़ पायतन से अतिक्रमण हटाने की मांग की थी। याचिका के चलते पिछले लंबे समय से दोनों कॉलोनियों के निवासियों की नींद उडी हुई थी। अब याचिका ख़ारिज होने से कॉलोनीवासियों में खुशी का माहौल है।
कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को बिना तैयारी याचिका प्रस्तुत करने पर दी नसीहत



मामले में कोर्ट ने अपने ऑर्डर में लिखा है कि याचिकाकर्ता द्वारा याचिका दायर करने से पूर्व किसी प्रकार का शोध नहीं किया। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा कथित अतिक्रमणों का ब्यौरा नहीं देकर पूरे शहर में अतिक्रमण होने की बात कही गई है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के 1996 के एसपी आनंद बनाम एचडी देवे गौड़ा एंड अदर्स और सन 2022 में डबल बेंच के ही गजेंद्र पूर्बीया व अन्य बनाम भारत सरकार व अन्य के मामलों में दिए गए निर्णय का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता को नसीहत दी कि जिस मामले से अच्छी तरह वाकिफ नहीं हो उस मामले में न्यायालय में जाने से बचना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि वादी क़ो अस्थिर भावनाओं में फंसकर प्रचार प्रदान करने वाले मुद्दों की तलाश करने वाले शूरवीर की तरह व्यवहार नहीं करना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि अधूरी जानकारी के साथ याचिका दायर करने से महत्वपूर्ण मामला भी नष्ट हो सकता है जिससे किसी तीसरे पक्ष के अधिकार भी प्रभावित हो सकते हैं।
अब क्या होगा आगे…….
हाई कोर्ट के फैसले के बाद सबके मन में बड़ा सवाल है कि अब आगे क्या होगा ? बसंत बिहार व आनंद विहार कॉलोनी सहित शहर के मुख्य मार्गो के अतिक्रमणों और मास्टर प्लान को लागू करने का मामले का क्या होगा ? इस सवाल का फिलहाल जवाब यह है कि हाईकोर्ट के फैसले के बाद एक बारगी अतिक्रमणो का मामला ठंडा बस्ते में चला गया है। लेकिन यहां यह भी बताना जरूरी है कि क्यूंकि मामले में अतिक्रमणों (अवैध कॉलोनीयों व मार्गो के अतिक्रमणो) को लेकर कोई कोंक्रीट डिसीजन नहीं हुआ है। ऐसे में भविष्य में भी हाईकोर्ट तक मामला पहुंचने की संभावना अभी भी पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है।