
नज़र दौड़ाये आपके आस पास भी है कोई जुडास

लियोनार्डो द विंची मिलान की जेलों में घूम रहे थे। तस्वीर बनानी थी उन्हें, मिलान के ड्यूक ने यह काम दिया था। राजा का काम और ऊपर से तस्वीर भी ख़ास, तो तस्वीर पूरा करने में एक लम्बा वक़्त लगना तय था । तस्वीर का विषय जीसस क्राइस्ट का आखरी डिनर था, जिसमे वो और उनके बारह शिष्य आखरी बार साथ भोजन कर रहे हैं।
इस आखिरी भोजन के दौरान ही क्राइस्ट बताते हैं कि अब उनका अंत करीब है। शिष्यों में शॉक फैल जाता है। पर ये शॉक और बढ़ जाता है जब शिष्यो को बताया जाता है, कि उनमें से कोई एक है, जो धोखा देगा। अब हर एक शिष्य के चेहरे पर अलग भाव है। भय, धोखा, शॉक, शोक, गुस्सा, उदासी, चिंता.. और एक एक शिष्य के चेहरे पर एक एक भाव है।दूसरी और क्राइस्ट के चेहरे पर न दुख है, न भय। वे शांत है, देवतुल्य हैं, निर्भीक हैं। उनकी आंखों में करुणा है। सभी किरदारों के भावों का यही प्रदर्शन लियोनार्डो की उस पेंटिंग को मास्टरपीस बनाता।
द लास्ट सपर!!!
हर चेहरे के पीछे के भावों के प्रदर्शन के लिये लियोनार्डो आम जीवन में उस भाव के व्यक्तियों से मिलते हैं। उसकी आंखें, भौहें, चेहरे के एक एक मूवमेंट को स्टडी करते हैं और उस मॉडल को अपनी पेटिंग में उतारते हैं। पेंटिंग में क्राइस्ट को बनाने के लिए उन्होंने एक 19 साल के युवक को मॉडल बनाया।
शांत, उत्साही, ऊर्जा से भरा युवक। उसकी करुणा, उसकी जिजीविषा को लियोनार्डो दिमाग मे बिठाता है, और कैनवस पर उकेरता है। अब तक क्राइस्ट बन चुके हैं। और शिष्य भी उकेरे जा चुके। लेकिन जुडास बचा है।
जुडास जो धोखेबाज है। एक हाथ में सिक्कों से भरी थैली है तो दूसरे से रोटी तोड़ रहा है। उसे मालूम है कि क्या होने वाला है। उसे पता है कि जो होगा, गलत होगा। परन्तु सिक्कों की थैली उसे आश्वस्त कर रही है। लालच ने उसे इस सपर के दौरान बने सारे माहौल से निस्पृह रखा है। सही भी तो है लालच से भरे इंसान को धन मिल जाये तो वो सगे को भी रौंद दे।
बस, लियोनार्डो को इसी भाव से भरा एक मॉडल चाहिए।
जुडास के मॉडल की तलाश में अनुमति लेकर लियोनार्डो मिलान की जेल के कैदियों से मिल रहे हैं। एक एक करके कई सारे निर्दयी,खूंखार हत्यारे, पर एक पर उनकी निगाह टिकती है। वो हत्या के मामले में बन्द है। किसी अपने का कत्ल किया है। अचानक वही क्रूरता, भावशून्यता.. लियोनार्डो को अपना जूडास मिल गया है। वो उसकी शक्ल को पढ़ते हैं, जेहन में सजाते हैं।
और फिर उसे जाने का आदेश देते हैं। पर कैदी जानना चाहता है कि हो क्या रहा है, लियोनार्डो उसे बता देता है।
कैदी भूमि पर बैठ जाता है। जार जार रोने लगता है। अब पूछने की बारी लियोनार्डो की थी – क्या हुआ।
कैदी ने आंसू पोंछे, हिचकियों के बीच मुश्किल से बोल सका- आपने मुझे पहचाना नहीं। सात साल पहले जिस मॉडल को लेकर आपने क्राइस्ट की पेंटिंग रची थी…
वो मैं ही था.. !!!
सात साल लम्बा अरसा होता है। उम्मीदों से भरा इंसान, भावशून्य कातिल में बदल सकता है। उसके कर्म,उसकी सोच, उसका लालच, उसका धोखा.. उसकी शक्ल बदल देता है। क्राइस्ट से उसको जुडास बना देता है।
लियोनार्डो अवाक थे।
मैं और आप भी अवाक हैं।
आसपास नजर दौड़ाइये, आठ साल,सात साल,दो साल पहले हमारे मित्र, परिवार, सहकर्मी, प्रेमी, दोस्त.. जो विकास, साथ समावेश, प्रगति की बातें करते दैदीप्यमान दिखते थे। अब नफरत, झूठ, गुस्से और धोखे को जस्टिफाई करते हुए कुटिलता से मुस्कुराते हैं, हमें हमसे धोखा करने वाला जुडास दिखाई देता है। एक हाथ सिक्कों की थैली पर रखे, दूजे से रोटी तोड़ते ये वही तो हैं।
जुडास आसपास ही हैं
साभार:-अविनाश जैन
