मील परिवार के राजनितिक भविष्य पर संकट ! कासनिया को समर्थन पड़ा भारी, कुछ और लोगों पर चलेगा डंडा !

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सूरतगढ़। बचपन में एक लकड़हारे की कहानी सुनी थी। जिसमें एक लकड़हारा एक पेड़ की जिस डाल पर बैठा था उसी को काट रहा था। पास से गुजर रहे लोगों नें लकड़हारे को समझाते हुए कहा कि तुम यह क्या कर रहा है। लेकिन लकड़हारा नहीं माना और उसी डाल को काटता रहता है। नतीजा ये होता है कि पेड़ की डाल के साथ लकड़हारा भी जमीन पर आ गिरता है। शहर की राजनीति में बड़ा दखल रखने वाले मील परिवार के नेताओं की हालत पिछले कुछ समय से कहानी के लकड़हारे जैसी ही हैं। कांग्रेस पार्टी से मिली ताकत के बल पर शहर में राज करने वाले मील परिवार के नेताओं नें जब टिकट कटने के बाद कांग्रेस में रहकर ही बगावत शुरू की तभी कहानी के लकड़हारे की तरह उनका जमीन पर गिरना तय हो गया था।

                  गुरुवार को कांग्रेस पार्टी ने पूर्व विधायक गंगाजल मील, पंचायत समिति प्रधान हजारी राम मील, पंचायत समिति सदस्य हेतराम मील और गत विधानसभा चुनाव में पार्टी के प्रत्याशी रहे हनुमान मील को पार्टी से निष्कासित कर दिया। इन नेताओं को पार्टी नें प्राथमिक सदस्यता से 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया है। कांग्रेस पार्टी के इस आदेश से राजस्थान की राजनीति में बड़ा दखल रखने वाले मील परिवार को बड़ा झटका लगा है। कांग्रेस में रहते हुए भाजपा के समर्थन का बेवकूफी भरा निर्णय एक तरह से मील परिवार की किरकिरी की वजह बन गया। मील परिवार के नेताओं के बारे में आमधारणा है कि इस परिवार के नेता चाटुकारों और मतलब परस्त लोगों की सलाह पर काम करते है। टिकट कटने के बाद हुए घटनाक्रम नें एक बार फिर ये साबित कर दिया है।

भाजपा में शामिल होकर करना चाहिए था समर्थन !

कांग्रेस नेता हनुमान मील की टिकट कटने के बाद मील परिवार के नेताओं ने आनन फ़ानन में बैठक बुला ली। महाराजा रिसोर्ट में बुलाई गई इस बैठक में पंचायत समिति सदस्य हेतराम मील नें भाजपा प्रत्याशी रामप्रताप कासनिया को समर्थन देने की घोषणा कर दी। एकाएक हुए इस घटनाक्रम से बैठक में आए मील परिवार के समर्थकों को भी झटका लग गया। यही वजह रही कि इस घोषणा के साथ ही अनेक लोग बैठक छोड़कर चले गए। जिसका मतलब है कि मील परिवार ने अपने समर्थकों को विश्वास में लिए बिना ही अपने स्तर पर यह निर्णय ले लिया था। बहरहाल मील परिवार जो राजस्थान की राजनीति में भी बड़ा दखल रखता है उसके नेताओं का इतने हल्के तरीके से भाजपा के समर्थन में जा खड़ा होने से हर कोई हैरान था।

बेहतर होता कि मील परिवार के नेता दिल्ली या जयपुर में भाजपा के बड़े नेताओं की मौजूदगी में पहले भाजपा में विधिवत तरीके से शामिल होते और इसके बाद भाजपा प्रत्याशी कासनिया को समर्थन की घोषणा करते। अगर मील परिवार के नेता ऐसा करते तो प्रदेश भर में उनके बड़े राजनीतिक रसूख का मैसेज जाता और कांग्रेस से निष्कासन के आदेश से हुई किरकीरी भी नहीं होती। लेकिन चाटुकारों नें अपने नंबर बनाने के चक्कर में मील परिवार के नेताओं को उल्लू बनाकर कासनिया को समर्थन की घोषणा करवाकर जग हँसाई का पात्र बना दिया।

चुनाव लड़ना या फिर पार्टी में रहना था बेहतर विकल्प ?

वैसे इस पूरे प्रकरण में विधानसभा चुनाव की टिकट कटने के बाद मील परिवार के पास कई बेहतर विकल्प थे। सबसे बेहतर होता कि पिछले 5 साल से चुनाव की तैयारी कर रहे हनुमान मील चुनाव का सामना करते। हालांकि इस फैसले में उनकी हार तय थी लेकिन यहां पर अगर वे 25-30 हज़ार वोट लेने में सफल रहते तो वे डूंगरराम गेदर को रोकने में कामयाब जरूर हो जाते। इसके अलावा इस विकल्प का एक फायदा यह भी होता कि पिछले 5 साल की मेहनत से जो समर्थकों और कार्यकर्ताओं की फौज उन्होंने तैयार की थी वह भविष्य में भी उनके साथ खड़ी रहती। जिसका फायदा आने वाले समय में उनको निश्चित तौर पर होता।

लेकिन गेदर को हराने की हनक में परिवार के दूसरे नेताओं के साथ हनुमान मील भी शामिल हो गये और 5 साल में कड़ी मेहनत से कमाई गई कार्यकर्ताओं और समर्थकों की पूंजी भाजपा प्रत्याशी की झोली में डाल दी। कहने का तात्पर्य यह है कि हनुमान मील नें राजनीति की अपनी दुकान खाली कर दूसरों की दुकान जचा दी है। अब हनुमान मील भविष्य में भाजपा ज्वाइन भी कर लेते हैं तो भी इन समर्थकों और कार्यकर्ताओं के लिए कासनिया को छोड़कर हनुमान मील की वफादारी में खड़ा रहना संभव नहीं होगा। क्यूंकि अगले पांच साल तक शहर में राजनीतिक ताकत कासनिया के ही पास होंगी। 

                    वैसे हनुमान मील के पास एक विकल्प यह भी था कि वे कांग्रेस में ही रहते और गेदर को जिताने में सहयोग करते। अगर वे ऐसा करते तो उनकी कांग्रेस में भविष्य की राजनीति के द्वार खुले रहते। अपने राजनीतिक दबदबे के चलते गेदर के विधायक बनने के बावजूद भी मील परिवार का राजनीतिक रसूख भी क़ायम रहता। 

हनुमान मील का हुआ सबसे ज्यादा राजनितिक नुकसान !

मील परिवार के आनन फानन में भाजपा को समर्थन के निर्णय से सबसे ज्यादा अगर किसी को नुकसान हुआ है तो वे हनुमान मील है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि आने वाले दिनों में हनुमान मील अगर भाजपा में शामिल भी होते हैं तो भी भाजपा में रहकर राजनीति करना उनके लिए आसान नहीं होगा। वैसे भी भाजपा प्रत्याशी रामप्रताप कासनिया को जो जानते हैं उन्हें पता है कि पार्टी में उनके रहते कोई दूसरा चौधरी नहीं हो सकता। पार्टी में उनकी मर्जी के बगैर पत्ता भी नहीं हिल सकता। वैसे भी चुनाव प्रचार के दौरान दिए गए अपने भाषणों में भी कासनिया नें मीलों के समर्थन को लेकर अपना स्टैंड साफ कर दिया है।

साफ है कि कासनिया की भविष्य की राजनीति में मील और उनके समर्थकों की कोई जगह नहीं है। कहने का मतलब है कि कासनिया के समर्थन से जीत कासनिया या गेदर की ही होगी लेकिन हार निश्चित तौर पर हनुमान मील की हो चुकी है।

                   इसके अलावा भाजपा के बारे में एक बात साफ है कि भाजपा ऐसा समुद्र है जिसमें उतरने के बाद बड़े बड़े जहाजों को भी रास्ता नहीं मिलता और वे इस समुद्र में दफन हो जाते हैं। क़हने का मतलब है कि भाजपा में सरवाइव करना हनुमान मील के लिए बेहद मुश्किल रहने वाला है। 5 साल बाद कांग्रेस में तो फिर भी डूंगरराम गेदर के बाद हनुमान मील ही टिकट के प्रबल दावेदार होते। लेकिन भाजपा में रामप्रताप कासनिया के बाद संदीप कासनिया, राजेंद्र भादू, पूर्व विधायक अशोक नागपाल, राकेश बिश्नोई, राहुल लेघा जैसे कई चेहरे मुकाबले में होंगे जिनकी चुनौती पर पार पाना राजनितिक तौर पर हासिये पर चल रहे मील परिवार और हनुमान मील के लिए आसान नहीं होगा।

क्या हनुमान मील की इच्छा के बगैर लिया गया भाजपा के समर्थन का निर्णय ?

इस पूरे प्रकरण में जिस तरह से हनुमान मील पर्दे के पीछे रहे हैं उससे यह लगता है कि मील परिवार के निर्णय में हनुमान मील की रजामंदी नहीं थी। क्योंकि महाराजा रिसोर्ट में हेतराम मील नें जब भाजपा प्रत्याशी को समर्थन की घोषणा की थी उस समय हनुमान मील मौजूद रहे थे। इसके बाद जब हनुमान मील से भाजपा में शामिल होने के बारे में पूछा तो उन्होंने कांग्रेस में रहने की बात कही थी। इसके बाद भी जब मील परिवार के सभी नेता खासकर हेतराम मील भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में खुलकर जनसभा  कर रहे थे तब भी हनुमान मील लगातार चुप्पी धारे हुए थे। इसका यह भी मतलब है कि हनुमान मील तो अपना राजनीतिक भविष्य कांग्रेस में देख रहे थे लेकिन परिवार के दूसरे नेताओं ने बिना उनकी राय मशवरे के भाजपा में शामिल होने का निर्णय कर लिया।

    बहरहाल इस पूरे घटनाक्रम से राजनीतिक तौर पर नुकसान हनुमान मील का काफ़ी हुआ है। मील परिवार के राजनीतिक भविष्य के रूप में देखे जाने वाले हनुमान मील के लिए अब आत्मचिंतन का समय है। हनुमान मील अभी युवा है और उन्हें भविष्य में और भी मौके मिल सकते हैं। इसलिये उन्हें किसी को जिताने और हराने की हनक में शामिल होने की बजाय खुद के भविष्य के लिए चिंतित होने की जरूरत है।

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