शहर में अतिक्रमियों की पैरवी की नई राजनीति, पूर्व विधायक से लें सबक

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शहर में अतिक्रमियों की पैरवी की नई राजनीति, पूर्व विधायक से लें सबक

अवैध अतिक्रमण हटाने के विरोध में तहसीलदार को ज्ञापन देते राजनेता

सूरतगढ़। शहर में अतिक्रमणो के आरोपों से घिरे नगरपालिका प्रशासन द्वारा अवैध अतिक्रमणो के खिलाफ लगातार कार्रवाई की जा रही है। पालिका प्रशासन द्वारा अतिक्रमण के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान की प्रशंसा की जानी चाहिए थी । लेकिन इस मामले में शहर के कुछ राजनेताओं का दोहरा रवैया सामने आ रहा है। पालिका प्रशासन पर अवैध अतिक्रमणो में मिलीभगत का आरोप लगाने वाले ये  नेता अब अतिकर्मियों के पैरोकार बनकर खड़े हो रहे हैं। इन नेताओं का ये रवैया हैरान करने वाला है। माना की चुनावी साल है और कोई भी नेता राजनीति करने का कोई भी अवसर नहीं चूकना चाहता। लेकिन क्या इसका मतलब ये है राजनीति चमकाने के लिए राजनेता गलत लोगों के साथ भी खड़े हो जाए ?

वार्ड -4 के मामले से भी राजनेताओं ने नहीं लिया सबक 

पिछले दिनों भी वार्ड नंबर-4 के मामले में क्षेत्र के जिम्मेदार नेताओं ने गरीबों के घर उजाड़ने के नाम पर लगातार बवाल काटा। जिम्मेदार नेताओं के इस बवाल के बाद उपखंड कार्यालय में हुई वार्ता में नगरपालिका अध्यक्ष ने गैरजिम्मेदार रवैया अपनाते हुए पार्टी के ही एक नेता को नीचा दिखाने की कवायद में बड़बोले बयान दे डालें और तोड़े गए मकानों के पुनर्निर्माण और वार्ड में 25 लाख  रुपए विकास कार्यों पर खर्च करने की घोषणा कर डाली। इस घोषणा से मामले के अग़वा नेताओं ने सोशल मीडिया पर अपनी जीत का जश्न भी मनाना शुरू कर दिया। परन्तु भला हो जिला प्रशासन का जिसकी तत्परता के चलते अतिक्रमियों के द्वारा किये जा रहे पुनर्निर्माण पर रोक लगा दी।

वैसे अगर जिला कलेक्टर के उस आदेश का संदेश सही तौर पर समझा जाए तो यह एक तरह से पालिकाध्यक्ष के साथ-साथ उन नेताओं के लिये एक तरह का तमाचा ही था जो अतिकर्मियों का पैरोकार बन कर खड़े हुए थे। जिला कलेक्टर के इस निर्णय ने एक तरह से यह भी साफ कर दिया कि सरकारी भूमि का कब्ज़ा खरीद लेने से भी कोई व्यक्ति उसका मालिक नहीं बन जाता ? दूसरी बात यह भी है कि प्रशासन का कोई नुमाइंदा या कोई भी नेता सरकारी भूमि से हटाए गए अतिक्रमण का पुनर्निर्माण नहीं करवा सकता, यह बात भी एक तरह से जिला प्रशासन ने साफ कर दी।

              लेकिन लगता है कि वार्ड नंबर-4 के मामले से भी राजनीति के अखाड़े में दंगल जीतने की ख्वाहिश रखने वाले नेताओं ने सबक नहीं लिया है । शायद यही वजह है कि हाउसिंग बोर्ड क्षेत्र में 2 दिन पूर्व पालिका प्रशासन द्वारा हटाए गए एक अवैध अतिक्रमण के मामले में फिर से शहर के कुछ नेता अतिक्रमी की पैरवी में जुटे हैं।

अतिक्रमण हटाने के विरोध में पूर्व फौजी का कांग्रेस को कोसना क्या है जायज ?

प्रशासन को फौजी मुकेश स्वामी द्वारा दिया गया ज्ञापन

इस प्रकरण में खुद को पूर्व फौजी (मुकेश स्वामी) बताने वाले व्यक्ति ने प्रशासन को सौंपे ज्ञापन में स्वयं  स्वीकार किया गया है कि उसने कब्जा खरीदा है। खुद को पूर्व फौजी बताने वाला व्यक्ति सोशल मीडिया पर कांग्रेस सरकार को कोस रहा है। पर क्या कोई बता सकता है कि अपने सेवाकाल में अनुशासन का पाठ पढ़ने और उसका पालन करने वाले पूर्व फ़ौजी द्वारा सरकारी भूमि का कब्जा खरीदना क्या कानून का अनुशासन तोड़ना नहीं है।

क्या एक फौजी को इतनी भी जानकारी नहीं है कि किसी व्यक्ति के करोड़ों रुपए किसी व्यक्ति कों देकर ताजमहल खरीदने से भी वह ताजमहल का मालिक नहीं बन जाता ? हाउसिंग बोर्ड क्षेत्र के जिस भूखंड से अतिक्रमण हटाया गया है उस भूखंड की कीमत लाखों रुपए है ऐसे में यह क्रिस्टल क्लियर है कि फ़ौजी को भी एक रुपए की चार अठन्नी चाहिए थी।

अतिक्रमण हटाने पर फौजी द्वारा सोशल मीडिया पर कांग्रेस कों कोसने का वायरल स्क्रीनशॉट

भूमाफियों की पैरवी बंद कर दें या फिर प्रशासन कों कोसना बंद कर दे राजनीतिज्ञ

कुल मिलाकर इस मामले में मुकेश स्वामी (फ़ौजी) नामक व्यक्ति की पैरवी करने वाले नेता क्या ठीक वही गलती ही नहीं कर रहे, जैसी कि उन्होंने वार्ड नंबर-4 के मामले में की थी। साफ है कि राजनेताओं ने अपनी पिछली गलतियों से सबक नहीं लिया है।

          बहरहाल  जिस व्यक्ति का आर्थिक नुकसान होता है उसका रोना तो सही है। लेकिन जो राजनेता ऐसे मामलों में वोट की राजनीति के नाम पर बिना सोचे समझे कूद पड़ते हैं उन लोगों कों अवैध अतिक्रमणो के मामले में गरीबी का नकाब ओढ़े भूमाफियाओं की पैरवी बंद कर देनी चाहिए या फिर आज के बाद नगरपालिका प्रशासन और सत्ताधारी नेताओं पर अवैध कब्जे कराने का आरोप लगाना बंद कर देना चाहिए ! वैसे राजनेताओं कों एक सलाह यह भी है कि उन्हें किसी भी अतिकर्मी की पैरवी से पहले अतिकर्मियों का पिछला इतिहास भी खंगाल लेना चाहिए। कहीं हिरण की खाल में छुपे भेड़िए की तरह यहां भी कोई अतिक्रमी गरीब के वेश में ना हो।

पूर्व विधायक राजेंद्र भादू से लें सकतें है सबक !

अतिक्रमणो के मामले में अतिकर्मियों की पैरवी कर अपनी राजनीति चमकाने की कवायद में जुटे राजनेताओं को पूर्व विधायक राजेंद्र भादू से सबक लेना चाहिए। पूर्व विधायक राजेंद्र भादू ने अपने कार्यकाल में सरकारी भूमि पर अवैध अतिक्रमणो के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई। अब जब वह विधायक नहीं है तब भी वे अतिक्रमणो के खिलाफ ही नजर आए हैं। अतिक्रमण हटाने के मामलों में उन्होंने कभी भी भूमाफियाओं का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष सहयोग नहीं किया है। राजनीति में एक लंबा अनुभव रखने वाले पूर्व विधायक सम्भवतः ये जानते है कि अतिकर्मियों का साथ देना कहीं ना कहीं समाजकंटकों का साथ देना है। इसलिए आंदोलनों से राजनीति साधने का सपना देखने वाले नेताओं को अतिक्रमणो के मामले में पूर्व विधायक राजेंद्र भादू कों रोल मॉडल मान लेना चाहिए।

अतिक्रमणो के खिलाफ अभियान जारी रहने की जरूरत

सत्ता पक्ष के कांग्रेस नेताओं और मील परिवार ने पूर्व विधायक की तरह देर से ही सही मगर अवैध अतिक्रमणो के खिलाफ जो जीरो टॉलरेंस की नीति को अडॉप्ट की है। उसका नतीजा आने वाले समय में और कई बड़ी कार्रवाईयों के रूप में देखने कों मिलेगा। निश्चय ही इससे मील परिवार को राजनीतिक लाभ मिलने के साथ ही सूरतगढ़ शहर का भला होगा ! इसलिए जरूरी है अतिकर्मियों के खिलाफ यह अभियान जारी रहे।

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