
सूरतगढ़। आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर भाजपा में टिकट बंटवारे को लेकर मंथन जारी है। पार्टी में गुजरात चुनाव के फार्मूले को राजस्थान विधानसभा चुनाव में लागू किए जाने की चर्चा जोरों पर है। गुजरात चुनाव में भाजपा ने 70 साल आयु से अधिक के दावेदारों के बड़ी संख्या में टिकट काटे थे । भाजपा के इस प्रयोग का नतीजा की सकारात्मक रहा और पार्टी गुजरात में सरकार बनाने में कामयाब रही। अब एक बार फिर जब राजस्थान में विधानसभा चुनाव की आहट सुनाई देनें लगी है। ठीक उसी वक़्त गुजरात चुनाव का फार्मूला लागू होने की चर्चा पार्टी टिकट के दावेदारों की नींद उड़ा रही है।
सूरतगढ़ विधानसभा की अगर बात करें तो यहां 70 प्लस आयु के नेताओं को टिकट नहीं देने के फार्मूले के लागू होने की चर्चा से कहीं खुशी तो कहीं गम का माहौल है। जहां तक इस चर्चा से गम या परेशान होने का सवाल है ऐसे नेताओं में वर्तमान विधायक रामप्रताप कासनिया और पूर्व विधायक राजेंद्र भादू का नाम शामिल है। विधायक कासनिया का दस्तावेजों के मुताबिक जन्म 16 अगस्त 1952 का है। वहीं पूर्व विधायक राजेंद्र भादू का जन्म 7 अगस्त 1953 का है। दोनों नेताओं की जन्मतिथि के अनुसार आयु क्रमशः 71 और 70 साल है। इसका सीधा सा मतलब है कि इस फॉर्मूले के मुताबिक दोनों ही दिग्गज नेताओं का टिकट कटना लगभग तय है।
वैसे 70 प्लस आयु का जो फार्मूला चर्चा में है वह कठोर रूप से आयु के रूप में लागू न होकर जन्म वर्ष के अनुसार लागू होने की संभावना है। इसका मतलब है कि मध्यप्रदेश में चल रही चर्चाओं के अनुसार जिन नेताओं का जन्म 1955 से पूर्व हुआ है पार्टी उन नेताओं को टिकट नहीं देगी। यही वजह है कि पार्टी टिकट के अन्य दावेदार इस चर्चा से बेहद उत्साहित नज़र आ रहे है। इन नेताओं में अशोक नागपाल, नरेंद्र घिन्टाला,राकेश बिश्नोई, राहुल लेघा सहित कई नेता बेहद खुश नज़र आ रहे हैं। वैसे इन नेताओं की खुशी जायज भी है क्यूंकि अगर कासनिया और भादू की टिकट कटती है तो टिकट अगली पंक्ति के इन्ही नेताओं में से किसी को मिलना लगभग तय है। ये अलग बात है कि 70 प्लस आयु के नेताओं के टिकट कटने की चर्चा के बाद विधायक रामप्रताप कासनिया अपने पुत्र संदीप कासनिया का नाम आगे कर सकते है। वैसे राजनीति में वंश परंपरा को कायम रखना एक सामान्य प्रैक्टिस रही है।
वहीं पूर्व विधायक राजेंद्र भादू की बात करें तो 70 प्लस के फॉर्मूले के लागू होने पर उनके अपने पुत्र को आगे करने की संभावनाएं बहुत कम है। हालांकि यह संभावना जताई जा रही है कि विधायक राजेंद्र भादू क्यूंकि वसुंधरा गुट से जुड़े बताए जाते हैं। ऐसे में अगर वसुंधरा राजे को जिस तरह के अभी हालात है, अगर पार्टी मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं करती तो वसुंधरा द्वारा अपने समर्थकों को निर्दलीय चुनाव लड़ाने की स्थिति में पूर्व विधायक निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जोर आजमाइश कर सकते हैं। वैसे पूर्व विधायक के अन्य पार्टियों के नेताओं से सम्पर्क में होने की अफवाहे भी बाजार में चल रही है जिनकी सत्यता को लेकर कुछ भी कहना मुश्किल है।
बहरहाल यह जरूर कहा जा सकता है कि पूर्व विधायक इस चुनाव को अपने अंतिम चुनाव के रूप में देख रहे हैं, ऐसे में भादू टिकट नहीं मिलने पर दोनों पार्टीयों के उम्मीदवारों की जमीनी स्थिति को देखकर निर्दलीय चुनाव लड़ने का जुआ खेल ले तो कोई अचरज वाली बात नहीं होगी। वैसे भी भादू वर्ष 2008 के चुनावों में आज़ाद उम्मीदवार के रूप में 33 हज़ार से अधिक वोट लेकर और दूसरा स्थान हासिल कर अपनी राजनीतिक पकड़ साबित कर चुके हैं।
कुल मिलाकर भाजपा में 70 प्लस आयु के नेताओं के टिकट काटने की चर्चा आने वाले दिनों में जोर पकड़ेगी। लेकिन इस फार्मूले को भारतीय जनता पार्टी कितना सख्ती से लागू करती है यह आने वाला समय तय करेगा।
