सूरतगढ़। विधानसभा चुनावों के नतीजे 3 दिसंबर को घोषित होंगे। लेकिन सट्टा बाजार नें सूरतगढ़ विधानसभा से कांग्रेस प्रत्याशी डूंगरराम गेदर की जीत पर मोहर लगा दी है। सट्टा बाजार में गेदर की जीत के भाव लगातार काम हो रहे हैं। जिसका मतलब है कि सट्टा बाजार गेदर की जीत तय मान रहा है। अभी सट्टा बाजार में गेदर की जीत के भाव करीब 20 पैसे हैं। भाजपा प्रत्याशी रामप्रताप कासनिया को जब टिकट की घोषणा की गई थी उस समय दोनों प्रत्याशियों के भाव 90 पैसे थे जिसका सीधा सा अर्थ है कि टिकट की घोषणा के बाद से भाजपा प्रत्याशी रामप्रताप कासनिया लगातार कमजोर हो रहे हैं।
विधानसभा क्षेत्र से कासनिया जिस तरह के समर्थन की उम्मीद कर रहे थे वो समर्थन टिकट घोषणा के बाद उन्हें आम जनता से नहीं मिल रहा है। शुरू में कासनिया के समर्थकों को लग रहा था कि लोग दीपावली के त्योहार के चलते व्यस्त है। लेकिन दीपावली के बाद भी भाजपा प्रत्याशी के लिए लोगों का जिस तरह का ठंडा रिस्पांस शहर के विभिन्न वर्गों में देखने को मिला उसने भाजपा खेमे को सोचने पर मजबूर कर दिया है।
कासनिया से खुश नहीं है भाजपा समर्थक और आम जनता !
सच्चाई यह है कि भाजपा प्रत्याशी के रूप में कासनिया की उम्मीदवारी को लोग पचा नहीं पा रहे हैं। कासनिया के 5 साल के कार्यकाल से आम जनता ही नहीं पार्टी कार्यकर्ता भी खुश नहीं है। ‘मेरी चाले कोनी’, ‘मेरी सरकार कोनी’ जैसे बहाने बनाकर कासनिया नें अपना टाइम तो पास कर लिया लेकिन जनता 5 साल परेशान होती रही। मामला सीवरेज से शहर की बदहाली या भ्रष्टाचार का हो या फिर अतिक्रमणो का हो विधायक कासनिया अपनी जिम्मेदारी को भूलकर 5 साल तक चादर तानकर सोये रहे।
मामला नगरपालिका में पट्टे नहीं बनने का हो या फिर दूसरी समस्याओं का 4 बार के विधायक और जमीनी नेता का तमगा लिए कासनिया की बेशर्म चुप्पी क़ायम रही। किसान खाद से लेकर क़ृषि कनेक्शनो और फ़सल बीमा के लिए भटकते रहे, मगर कासनिया और भाजपा के मंडल कभी भी खुलकर किसानों के लिए लड़ते नहीं दिखे ? इन सबके अलावा पिछले 5 सालों में हुई जमीनों की बंदरबाँट, बेलगाम होते भूमाफियों के खौफ और नगरपालिका व पंचायत समिति में भ्रष्टाचार और तानाशाही से आम जनता का दम घुट रहा था।
गठबंधन कर मारी पैरों पर कुल्हाड़ी
इन चुनावों में जनता भाजपा के भावी विधायक से इस कुशासन को उखाड़ कर मील परिवार के शासन के अंत की घोषणा की उम्मीद कर रही थी। लेकिन राजनीतिक स्वार्थवश और चाटुकारों के सलाह पर कासनिया ने वोट के लालच में मील परिवार के नेताओं से गठबंधन कर लिया। इलाके की जनता जो मील परिवार की टिकट कटने से हुई राजनीति पराजय का जश्न मनानें में व्यस्त थी, अचानक कासनिया मील की जुगलबंदी नें इस जश्न में खलल पैदा कर दिया है। इस कदम ने एक और जहां कासनिया के ईमानदार नेता का रहा सहा भरम भी तोड़ दिया है तो दूसरी और जनता की इस आशंका को सही साबित कर दिया की 5 साल से जो चल रहा था उसमे कासनिया की रजामंदी थी।
यही वजह है कि अब कासनिया में जनता को उन्ही लोगों का अक्स दिखने लगा है जिन्हे वह देखना नहीं चाहती है। जनता को ये लग रहा है कि भाजपा और कासनिया को दिया गया एक-एक वोट भ्रष्टाचार और तानाशाही के भस्मासूर फिर से जिंदा कर देगा। वैसे भी कासनिया भी कई ऐसे लोगों से घिरे है जिनकी छवि भी अतिक्रमियों और भूमाफियों की है। जिसके चलते भी आमजन कासनिया से दूरी बनाये हुए है।
कुल मिलाकर संघर्ष और ईमानदारी की उम्मीद कर रही इलाके की जनता को कासनिया से अब तक निराशा ही मिली है। जिसके चलते अब चुनावों में मील परिवार का समर्थन और ‘मेरी तो चाले कोनी‘ और ‘मेरी सरकार कोनी‘ जैसे जुमले और कासनिया के गले की हड्डी बन गए हैं। कासनिया को अब इन जुमलों और गठबंधन पर बार-बार सफाई देनी पड़ रही है लेकिन जनता पर माफ करने के मूड में दिखाई नहीं दे रही। चुनाव प्रचार के दौरान फरीदसर, जैतसर, सरदारगढ़ सहित गाँवो में कासनिया का भारी विरोध इस बात को साबित कर रहा है। फरीदसर गांव के एक वायरल वीडियो में ग्रामीणों नें कासनिया को गांव में घुसने नहीं देने की चेतावनी तक दे डाली है।
वहीं चुनाव प्रचार शुरू होने के साथ ही कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में स्वतस्फूर्त तरीके से जनता का खड़ा होना ये बताता है कि कासनिया की जमीन खिसक चुकी है। भाजपा का गढ़ माने जाने वाले शहरी क्षेत्र की आम जनता का दूसरे विकल्प पर विचार करना भाजपा और कासनिया के लिए खतरे की घंटी है। हमें लगता है कि जनता वर्षों से चल रहे इस निज़ाम को उखाड़ने के लिए बेताब है जिसे रोकना अब किसी भी गठबंधन के लिए आसान नहीं होगा !