50 करोड़ की लूट का फूटा भांडा,चोरी नहीं अब सीधे डकैती का प्रयास,नादान दलीलों से ध्यान भटकाने की कोशिश

CRIME CURRUPTION

सूरतगढ़। जब कोई व्यक्ति बेईमानी के इरादे से आपकी अनुमति के बिना आपकी संपत्ति ले जाता है तो इसे चोरी कहते हैं। शहर में पिछले दो दशकों में हुई सरकारी जमीनों की बंदरबाँट चोरी की इसी परिभाषा की श्रेणी में आती है। भूमाफियों, राजनीतिज्ञों और अधिकारीयों नें गठजोड़ कर आपकी मर्जी के बिना ही कब शहर की हजारों बीघा भूमि निगल ली,पता ही नहीं चला।

लेकिन अब शहर में सत्ता का निजाम बदल चुका है और सरकार भी राष्ट्रवादियों की है। ऐसे में अब भूमि चोरों के जमाने लद चुके हैं। शहर में इन चोरों का स्थान डकैतों ने ले लिया है। जो ताकत के बल पर लूट करते है। चोर जहां पर छुप कर आपका धन अपनी अंटी में डाल रहें थे, वहीं अब ये डकैत सरेआम धड़ल्ले से सरकारी संपत्ति को लूट रहें है। 

               शहर की राजनीति में भूचाल लाने वाला 50 करोड़ की बेशकीमती जमीन आवंटन का प्रस्ताव ऐसी ही डकैती का उदाहरण है। पूर्व विधायक रामप्रताप, उनके पुत्र संदीप कासनिया, चेयरमैन ओम कालवा व ईओ पूजा शर्मा भी बेशकीमती भूमि को हड़पने का षड्यंत्र कर रहे सशस्त्र गिरोह में शामिल है। नैतिक पतन का शिकार हुए ये गिरोह अपना जमीर पैसों के लालच में बेच चुका हैं। लेकिन वे भूल रहें है शहर की जनता इस तमाशे को बड़े गौर से देख रही है। इस डकैती में शामिल लोगों के चेहरे पर बेनकाब हो चुके हैं इसलिये अब ये लोग चाटुकार समर्थकों के जरिये इस डकैती को जस्टिफाई करने में जुटे हैं। 

नादान समर्थकों की दलीलों का पोस्टमार्टम : 2 लाख जमा किये, इसलिये मिले जमीन !

कासनिया समर्थकों की दलील है कि 1997 में ही स्कूल की भूमि के बदले करीब 2 लाख रूपये कासनिया नें जमा करवा दिए थे, इसलिये इस जमीन पर कासनिया का राइट है। लेकिन ये लोग भूल जाते हैं कि यह पैसा धानमंडी और आवासन मंडल के बीच की बेशकीमती भूमि के आवंटन के बदले नहीं जमा किया था, जिससे की ये जमीन कासनिया को दे दी जाये। बल्कि ये राशि सेक्टर -11A की जमीन के बदले भरवाई गई थी। मंडी समिति जमीन कासनिया को देने को तैयार भी थी, लेकिन कासनिया नें खुद अतिक्रमण का बहाना कह जमीन नहीं ली। यहां यह बात भी है कि ज़ब समिति नें यह जमीन कासनिया को आवंटित की तो क्या उन्हें मोतियाबिंब हो गया है जो उन्हें अतिक्रमण नहीं दिखाई दिए और उन्होंने बिना सोचे समझे पैसे भी भरवा दिए।  

             सच ये है कि शुरू से ही कासनिया की नजर धानमंडी व आवासान मंडल के बीच की  बेशकीमती भूमि पर थी। इसलिये उन्होंने अतिक्रमणो का बहाना कर सेक्टर -11A में आवंटित भूमि नहीं ली। वरना वे चाहते तो अपने रसूख से प्रशासन पर दबाव बनाकर या फिर न्यायालय की मदद से भी अतिक्रमण हटवा सकते थे। लेकिन उन्होंने एक बार भी ऐसा करने की कोशिश नहीं की।

मंडी समिति के विवादित जमीन आवंटन का दावा भी झूठा

कासनिया समर्थक यह भी दावा हैं कि मंडी समिति ने वर्तमान विवादित जमीन का कासनिया को आवंटन कर दिया था। लेकिन समिति के नगरपालिका में मर्ज होने और राजनीति के चलते मामला अटक गया। हालांकि ऐसा कोई दस्तावेज अभी पब्लिक डोमेन में नहीं है।

फिर भी मासूम समर्थकों कि यह बात मान ले तो भी सामान्य बुद्धि का कोई भी व्यक्ति यह अंदाजा लगा सकता कि उस समय अवश्य ही कासनिया के आवेदन पर मंडी समिति ने या तो कोई निर्णय नहीं लिया था या फिर आवंटन की प्रक्रिया प्रक्रिया अधूरी रही थी। जिसके कारण जमीन में कासनिया के कोई अधिकार क्रिएट नहीं हुए। क्यूंकि अगर समिति के निर्णय से किसी भी तरह के अधिकार कासनिया के पास होते तो वे उसे सक्षम न्यायालय में जरूर चुनौती देते। लेकिन वे कोर्ट में नहीं गए। मतलब साफ है कि सुपारी समर्थक बकलोली कर मुद्दे से ध्यान हटाना चाह रहें है।  

जमीन अभी खाली तो कासनिया को आवंटन का बचकाना तर्क

प्रस्ताव को जस्टिफाई करने के लिए एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि यह जमीन अभी भी खाली पड़ी है। कासनिया के समर्थकों से में यह पूछना चाहता हूं कि जमीन तो उस समय भी खाली थी जब 2005 में बोर्ड बैठक में प्रस्ताव लाया गया। लेकिन उस समय के जनप्रतिनिधियों ने जिनमें भाजपा के रीड की हड्डी में दम रखने वाले कुछ पार्षद भी शामिल थे, नें शहर के भविष्य को देखते हुए तमाम दबाबों को दरकिनार कर स्कूल के नाम पर इस बेशकीमती जमीन के आवंटन के प्रस्ताव को दों तिहाई से ज्यादा बहुमत से गिरा दिया।

वर्तमान बोर्ड में भाजपा में ऐसे रीढ़ रखने वाले पार्षद कितने है यह 28 अगस्त को बोर्ड मीटिंग में साफ हो जाएगा। बहरहाल मुद्दा उस समय भी नगरपालिका और शहर के हित का था और आज भी बात शहर के हित की ही है। 

          और वैसे भी कोई बेशकीमती जमीन अगर खाली पड़ी है तो इसका मतलब नहीं है कि वह संदीप कासनिया सहित किसी भी राजनीतिज्ञ को स्कूल के नाम पर सौंप दी जाए। यह भी जैरे गौर है कि कासनिया के समर्थक ज्यादातर कम पढ़े-लिखे नजर आते हैं जो हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को भी ठेंगे पर रखना चाहते हैं। कोर्ट नें रिट दायर करने वालों की इस दलील कि ‘यह जमीन शहर के विकास के लिए आवश्यक है, धानमंडी के संभावित विस्तार के लिए जरूरी है और यह जमीन सामुदायिक सुविधाओं के लिए आरक्षित है’ को स्वीकार करते हुए ही आवंटन को निरस्त किया था।

जमीन में गर्दन दबाये इन शुतुरमुर्गों को बताये कि अगर जमीन ऑक्शन से अगर पालिका करोड़ों की आय करती है तो क्या शहर का विकास नहीं होगा? रही बात लेंड यूज चेंज होने या नहीं होने की ये पालिका और सरकार का काम है। वे क्यों भूल जाते है कि ज़ब मास्टर प्लान में बदलाव संभव है तो क्या जमीन का लेंड यूज नहीं बदल सकता ?

मंडी का और विस्तार नहीं होने का कुतर्क

एक और बात नेताजी को जमीन आवंटन के पुरजोर समर्थन में चलाई जा रही है कि धानमंडी को अब विस्तार की जरूरत नहीं है। यह बात कुछ हद तक सही है लेकिन ये दलील तो 2005 में दी गई थी और उस समय ये दलील पूरी तरह से प्रासंगिक भी थी। उस समय तो इस जमीन के कीमती और उपयोगी होने केवल अंदेशा ही था मगर अब तो यह यूनिवर्सल ट्रुथ बन चुका है कि यह जमीन नगरपालिका और शहर के विकास के लिए कितनी महत्वपूर्ण है। 

भाजपा नेता की सफाई में भी लोचा

 

सोशल मीडिया पर भाजपा नेता संदीप कासनिया का पक्ष भी वायरल हो रहा है। जिसमे उन्होंने हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देकर कहा है कि ‘हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट नें विवेकानन्द पब्लिक सेकंडरी स्कूल, जाखड़ांवाली को आवंटित भूमि के अधिकार सुरक्षित रखे है और पालिका को पुरानी आवंटित भूमि से कब्जे हटाने या पालिका क्षेत्र में आवंटित भूमि के समतुल्य व सममूल्य भूमि देने का आदेश दिया है। उन्होंने कहा है कि संस्था ने इन्ही आदेशों के तहत भूमि आवंटन संबंधी उक्त प्रकरण को बोर्ड की आगामी बैठक में शामिल कर संस्था हित में निस्तारण करने का आवेदन किया है।’

इस संबंध में यह तो निर्विवाद है कि कोर्ट नें पूर्व में आवंटित भूमि के संबंध में स्कूल के अधिकार सुरक्षित किए हैं। लेकिन पुरानी आवंटित भूमि के समतुल्य और सबमूल्य भूमि देने का हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कोई जिक्र नहीं है और आवासन मंडल और धानमंडी बीच स्थित जमीन का आवंटन तो कोर्ट नें खारिज ही कर दिया है।

              मामले का एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट के आदेश पर 29 अक्टूबर 2012 को हुई बोर्ड बैठक में खसरा संख्या 444 /04 और खसरा संख्या 463/2 में जमीन देने का प्रस्ताव भी नगरपालिका द्वारा संदीप कासनिया को दिया जा चुका है। अब सवाल यह पैदा होता है कि ज़ब कोर्ट फैसले के मुताबिक पुराने आवंटन सहित दो अन्य खसरों में जमीन के चयन का अवसर कासनिया के पास है, तो फिर वे क्यों इसी भूमि को लेने पर अड़े हुए हैं। साफ है कि यह भूमि बेशकीमती है।

सवाल जो पिछले 25 सालों से मांग रहे जवाब !

भाजपा नेता को जमीन आवंटन के विवादित प्रस्ताव के मामले में कुछ सवाल है जिनका जवाब आज तलक नहीं मिला है। प्रस्ताव पर अपना जमीर बेचने वाले जनप्रतिनिधियों और चाटुकार समर्थकों को इन सवालों के जबाब जरूर ढूंढने चाहिए। क्योंकि शहर की आम जनता भी इनका जवाब चाहती है।

1. एक सामान्य चर्चा है कि संदीप कासनिया नें जाखड़ावाली के स्कूल के सैम में आने का हवाला देकर भूमि आवंटन का आवेदन किया था। तो सवाल यह है कि जाखड़ावाली जो कि पीलीबंगा तहसील और हनुमानगढ़ जिले में है तो उसे सूरतगढ़ में ही भूमि का आवंटन क्यों किया जाये ? कासनिया नें पीलीबंगा या हनुमानगढ़ जिले में भूमि आवंटन की मांग क्यों नहीं की ?

2. दूसरा सवाल ये है कि जब आज तलक जाखड़ावाली में स्कूल संचालित हो रहा है तो फिर स्कूल के बदले नई जगह के आवंटन का सवाल ही कैसे पैदा हो सकता है ?

3.तीसरा महत्वपूर्ण सवाल है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कासनिया के पिछले आवंटन में अधिकार तो सुरक्षित किए थे। पालिका को उन्होंने रिज़नेबल टाइम में पालिका को रिप्रेजेंटेशन देने का आदेश जारी किये थे। क्योंकि कोर्ट का ऑर्डर आए हुए 9 साल की चुके हैं तो आखिर अब कासनिया को आवंटन की याद कैसे आई ?

4. मामले में 28 अगस्त 24 को आनन फानन में बुलाई की गई बैठक पर भी कई सवाल खड़े होते हैं। आमतौर पर बोर्ड बैठक ईओ द्वारा बुलाई जाती है और एजेंडा पर ईओ के ही सिग्नेचर होते है। लेकिन यह पहली बार है जब बैठक के एजेंडा पर चेयरमैन के सिग्नेचर है और ईओ नें दूसरी साइड में सिग्नेचर किये है। साथ ही प्रस्तावों की डिटेल जानकारी पार्षदों को नहीं दिया जाना भी संदेश पैदा कर करता।

कहीं न कहीं पालिका इस भूमि आवंटन की जानकारी बैठक से पहले सार्वजनिक नहीं करना चाहती थी। ताकि गुपचुप तरीके से प्रस्ताव पारित किया जा सके।

ईओ पूजा और चेयरमैन कालवा पर हो सकता है मुक़दमा ?

इस मामले में पालिका ईओ पूजा शर्मा और अध्यक्ष ओम कालवा पर मुकदमा दर्ज करने की तैयारी चल रही है।  दोनों नें हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट द्वारा विवादित आवंटन आदेश खारिज करने के बावजूद विवादित भूमि के आवंटन का प्रस्ताव बोर्ड मीटिंग के एजेंडे में शामिल कर लिया है। साफ है कि ईओ नें तथ्यों को छुपाकर प्रस्ताव तैयार किया है। ऐसे में इस प्रस्ताव पर अगर बोर्ड बैठक में किसी भी प्रकार की चर्चा या फिर आवंटन का निर्णय होता है तो ईओ पूजा व चेयरमैन कालवा को मुक़दमा झेलना और जेल जाना पड़ सकता है।

वैसे सूरतगढ़ नगरपालिका में अनीति चकने वालों का जीवन मुक़दमे बाज़ी और जेल जानें का इतिहास रहा है। तभी तो शायद किसी कवि नें लिखा है 

इस जहाँ से कब कोई बच कर गया। 

जो भी आया खा के एक पत्थर गया।।

राजेंद्र कुमार पटावरी,अध्यक्ष, प्रेस क्लब सूरतगढ़।

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