सूरतगढ़। बॉलीवुड की एक मेगा हिट फिल्म का एक बेहद प्रसिद्ध डायलॉग है ‘हारकर जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं’। सूरतगढ़ नगरपालिका के चेयरमैन ओम कालवा लगातार दूसरी बार बहाल होकर ऐसे ही बाजीगर बनाकर उभरें हैं। ऐसे समय में जब विपक्ष ही नहीं खुद उनकी ही पार्टी का एक बड़ा धड़ा उनकी बहाली के पक्ष में नहीं था तब शायद ही किसी को उम्मीद थी कि कालवा की वापसी होगी। लेकिन जैसा कि राजनीति के बारे में कहा जाता है कि वह संभावनाओं की कला है। कालवा ने अपनी वापसी करने की जीजिविषा को जिंदा रखा और एक बार फिर बहाल होकर अपने विरोधियों की नींद उड़ा दी है। ये और बात है कि कल तक उनकी वापसी नहीं होने को लेकर आश्वस्त लोग अब धनबल की ताकत को स्वीकार कर रहें हैं। ताश के तीन पत्ती गेम की तरह कालवा की लगातार ब्लाइंड से हताश हो चुके उनके विपक्षीयों के लिए अब आखिरी डबल चाल चलकर पत्ते देखने का एकमात्र विकल्प बचा है। क्यूंकि इस बार कालवा की अपने विरोधियों से पूरी सख्ती से निपटने की चर्चा राजनीतिक हलकों में गर्म है। ऐसे में यह उम्मीद की जा रही है कि उनके विरोधी आखिरी दाव खेलने से गुरेज नहीं करेंगे। हालांकि स्वायत शासन विभाग के आदेशों के बाद विरोधियों को सुप्रीम कोर्ट में राहत मिलती है या नहीं यह भविष्य के गर्भ में छुपा है। लेकिन दुश्मन की ब्लाइंड पर सब कुछ दाव पर लगा चुकने के बाद बिना पत्ते देखे सरेंडर करेंगे इस बात की गुंजाइश कम है।
वैसे यहां पर यह बात भी गौरतलब है कि चेयरमैन कालवा ने वापसी भले ही कर ली हो लेकिन उनके राजनीतिक विरोधियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। कालवा को पार्टी में शामिल करने में पार्टी के जिन लोगों ने प्रमुख भूमिका निभाई थी वे भी अब विरोधी खेमें में खड़े हो चुके हैं। पूर्व विधायक रामप्रताप कासनिया को छोड़ दे तो भाजपा से जुड़े अधिकांश नेता कालवा के पक्ष में नहीं है।
कालवा की पिछली पौने 5 साल की कार्यशैली से शहर में उनकी छवि कुछ कुछ नेगेटिव बन चुकी है। ऐसे में स्वयं कालवा ही नहीं पूर्व विधायक रामप्रताप कासनिया पर भी कालवा के चुनाव के सही साबित करने की चुनौती है। क्यूंकि कालवा की बहाली के लिए उन्होंने न केवल एड़ी चोटी का जोर लगाया बल्कि पार्टी नेताओं का विरोध झेला है।
कुल मिलाकर आने वाले 3 महीना का वक्त कालवा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इस कार्यकाल में आमजन कों पट्टों सहित तमाम राहत देकर कालवा पूर्व विधायक के चयन को सही साबित कर सकते है। वैसे भी चेयरमैन का पद रिक्त रहते हुए शहर का भट्टा पूरी तरह से बैठ चुका है। शहर में सफाई, सड़क और लाइट की हालत बेहद खराब हो चुकी हैं। अब यह कालवा पर है कि आने वाले वक्त में वे किस तरह से इन चुनौतियों से निपटते हैं। देखना होगा कि कालवा खुद को किस तरह के चेयरमैन के रूप में याद किया जाना पसंद करेंगे।