वार्ड-38 में सरकारी भूखंड पर अतिक्रमण, सवालों में प्रशासन की चुप्पी और चेयरमैन भाटिया का चैलेंज ?

CURRUPTION

सूरतगढ़। अगर आप अपने पट्टेसुदा भूखंड पर निर्माण करना चाहते हैं तो आपको नगरपालिका से परमिशन लेनी होगी। आप ऐसा नहीं करते हैं तो पालिका के कारिंदे तुरंत आपका निर्माण रुकवा देते है। परंतु यदि आप शहर में खाली पड़े किसी सरकारी भूखंड पर निर्माण कर कब्जा करना चाहते हैं तो आपको रोकने वाला कोई नहीं है। बशर्ते सत्ता में बैठे नुमाइंदों का आशीर्वाद आपको मिल जाये। वैसे यह कोई मुश्किल काम नहीं है इसके लिए बस आपको सत्ता में बैठे नेताओं की हाज़िरी बज़ाना होगा । इसके अलावा पालिका में बैठे अधिकारीयों से चांदी के चंद सिक्के के बदले इनके ज़मीर का सौदा भी कर सकते है। कहने का मतलब है की यदि आप चापलूसी और सौदेबाज़ी में माहिर है तो इस शहर में लूट का लाइसेंस आप भी ले सकते है। वैसे यह बताने की जरूरत नहीं है कि पिछले कुछ सालों में शहर में लूट के लाइसेंसधारीयों की संख्या में खासा इजाफा हुआ है। ऐसे ही एक सरकारी भूखंड पर किया जा रहा अवैध निर्माण इन दिनों शहर में चर्चा का विषय बना हुआ है।

                        हम बात कर रहे हैं वार्ड नंबर-38 में बर्फ फैक्ट्री के पीछे सरकारी भूखंड पर किए जा रहे अवैध निर्माण की। नगरपालिका से महज डेढ़ सौ मीटर की दूरी पर लाखों की कीमत वाले इस सरकारी भूखंड पर धड़ल्ले से निर्माण कार्य करवाया जा रहा है। लेकिन पालिका प्रशासन में निर्माण को रोकने की हिम्मत नहीं है। महज एक फोन कॉल पर गरीबों का आशियाना तोड़ने के लिए जेसीबी लेकर पहुंचने वाले पालिका के शूरवीरों को मानो सांप सूंघ गया है। यह सब भी तब हो रहा है जबकि पार्षद यासमीन सिद्दीकी और विधायक रामप्रताप कासनिया ने गत 6 अक्टूबर को हुई बोर्ड की बैठक में इस मामले को उठा चूके है। बोर्ड बैठक में विधायक के आरोपों पर अध्यक्ष परसराम भाटिया खासा नाराज भी हुए थे और उन्होंने पूर्व विधायक को नाम बताने का चैलेंज करते हुए अतिक्रमणों को नहीं बख्शनें का दावा भी किया था। लेकिन अब 10 दिन बीतने के बावजूद भी भूखंड पर चल रहा निर्माण अध्यक्ष भाटिया के गुस्से के खिल्ली उड़ा रहा है !

मजेदार बात यह भी है कि इसी भूखंड पर भाजपा पार्षद रिंकू सिद्दीकी द्वारा कब्जा करने के आरोपों के चलते कुछ माह पूर्व नगरपालिका प्रशासन नें अतिक्रमण हटाकर नगरपालिका संपत्ति का बोर्ड भी लगाया था। लेकिन अब जब इस भूखंड पर निर्माण कर फिर से कब्जा किया जा रहा है तब नगरपालिका प्रशासन नें मौन धारण कर लिया है।

बताया जा रहा है कि नगरपालिका के ही एक पूर्व अधिकारी द्वारा यह निर्माण करवाया जा रहा है। यहां यह भी गौरतलब है कि पूर्व विधायक राजेंद्र भादू के कार्यकाल में तड़ीपार किए गए इस अधिकारी की घर वापसी में स्थानीय कांग्रेसी नेताओं नें अहम भूमिका निभाई थी। पालिका में अधिकारी रहते हुए कोरोना पट्टों सहित भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात रहे ये साहब ना जाने क्यों सत्ताधारी नेताओं की मूंछ का बाल बने रहे ?

अपनी सेवाओं से इस अधिकारी ने कांग्रेस नेताओं को इतना खुश कर दिया था कि उन्होंने रिटायरमेंट के बाद बोर्ड अध्यक्ष बनाने के लिए साहब को टिकट भी दे डाली। यह तो इस शहर की किस्मत अच्छी थी कि लोगों की बद्दुओं नें चुनावों में साहब की वाट लगा दी। वैसे लगे हाथ आपको हम यह भी बता दें कि चापलूसों से घिरे सत्ताधारी कांग्रेस नेता अधिकारीयों के चयन के मामले में हमेशा अनलकी रहे हैं। परन्तु अफसोस की बात है कि इन नेताओं ने पुरानी गलतियों से सबक नहीं लिया।

चापलूसों की बातों में आकर गत वर्ष भी कांग्रेसी नेताओं नें पालिका के ही पूर्व में ईओ रह चूके साहब कि पुन ईओ के रूप में वापसी करा दी थी। जिसने एक सिंडिकेट बनाकर न केवल एक साल तक कांग्रेस नेताओं की आंखों में धूल झोंकी, बल्कि नगरपालिका के सारे संसाधन कुछ एक लोगों पर लुटाकर बंदरबांट कर ली। अब कांग्रेस के बड़े नेता सार्वजनिक रूप से कई मौकों पर इस गलती को स्वीकार भी कर चुके हैं। लेकिन वह कहावत है ना कि ‘अब पछताए होत क्या,जब चिड़िया चुग गई खेत’।                                    

                   बहरहाल पिछले 5 साल के कार्यकाल में सत्ताधारी कांग्रेस नेता की सबसे ज्यादा किरकिरी अतिक्रमणों को लेकर हुई है। हालांकि कांग्रेस नेता हनुमान मील नें अतिक्रमणों के खिलाफ अभियान चलाकर एक कड़ा संदेश देने की कोशिश भी की थी। लेकिन शहर में सरकारी भूमि पर अतिक्रमण के मामले अब भी लगातार सामने आ रहे हैं। ऐसे में जरूरी है कि कांग्रेस नेता इस बहुचर्चित अतिक्रमण को तुरंत हटाने का निर्देश दें और पूर्व ईओ की की सेवाओं के बदले अतिक्रमण को अभयदान की चर्चाओं को समाप्त करें। वरना अतिक्रमणों को संरक्षण देने के पब्लिक में बन चूके परसेप्शन के पुख्ता होने के चलते होने वाले राजनीतिक नुकसान के लिए भी उन्हें तैयार रहना चाहिए।

                         वैसे इस मामले नें नगरपालिका अध्यक्ष परसराम भाटिया की साख पर भी सवाल खड़ा कर दिया है। पिछले दो महीनो में दिन रात मेहनत कर उन्होंने नगरपालिका अध्यक्ष के रूप में जो उपलब्धियां हासिल की है उन पर अतिक्रमण का यह मामला पानी फेर सकता है। अब देखना होगा कि कांग्रेस नेता, पालिका अध्यक्ष भाटिया और पालिका प्रशासन इस मामले में बेशर्मी की चादर ओढ़े रहेगा या फिर इस बहुचर्चित अतिक्रमण को हटाकर भेदभाव के आरोपों का जवाब देगा ?

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