सूरतगढ़। कांग्रेस की राजनीति में मील परिवार के वर्चस्व का आख़िरकार अंत हो गया। रविवार को पूर्व विधायक गंगाजल मील के कासनिया को समर्थन की घोषणा नें कांग्रेस में मील राजनीति के अंत की विधिवत घोषणा कर दी। मील परिवार के इस कदम से कासनिया को कितना फायदा मिलेगा यह अलग चर्चा का विषय है। लेकिन मील परिवार के इस कदम नें डूंगरराम गेदर को कांग्रेस का निर्विवाद नया किंग बना दिया है।
2008 से क्षेत्र की राजनीति में मील परिवार के आगमन के बाद कांग्रेस में सक्रिय कई दिग्गज नेता पवेलियन में बैठने पर मजबूर हो गये थे । एको अहं, द्वितीयो नास्ति, न भूतो न भविष्यति की तर्ज़ पर मील परिवार की कार्यप्रणाली के चलते सेकंड लीडरशिप के नेता भी एक के बाद एक हासिये पर चले गये। मीलों के कांग्रेस में रहते विधायक चुनाव लड़ने की उम्मीद लिए कुछ नेता बूढ़े हो गए तो वहीं कुछ बुढ़ापे की ओर बढ़ रहे थे। मील परिवार को स्टेट लीडरशिप के वर्दहस्त के चलते कई नेताओं का यह सपना सपना ही बन गया। लेकिन 4 साल पहले बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए गेदर ने वह कारनामा कर दिखाया जिसका इंतज़ार ये दिग्गज वर्षों से देख रहे थे। गेदर में कब मील परिवार की राजनीति जमीन छीन ली ये खुद मील परिवार को ही पता ही नहीं लग पाया।
बेहद साधारण परिवार से राजनीति में आने वाले शांत स्वभाव के गेदर नें देखते ही देखते कांग्रेस आलाकमान मे अपनी पैठ बना ली कि अनएक्सपेक्टेड घटनाक्रम में मीलों की टिकट कटवाकर जोर का झटका धीरे से दे डाला। राजनीति के अखाड़े में गेदर के धोबी पछाड़ नें मील परिवार के राजनीतिक वजूद को हिला कर रख दिया है।
वैसे मील परिवार की इस दुर्दशा के लिए खुद मील परिवार की गलत नीतियां ही जिम्मेदार रही है।अवैध अतिक्रमणों और भ्रष्टाचार के पोषक के रूप मील परिवार के नेताओं की छवि लगातार खराब होती रही। धरातल पर इस परिवार के नेताओं के प्रति आक्रोश इस कदर बढा कि सर्वे में आम जनता नें गेदर को टिकट का हक़दार बता दिया।
गेदर ने छवि पर दिया ध्यान, मील बने रहें लापरवाह
यहां यह भी गौरतलब है कि बसपा में रहने के बावजूद सोशल मीडिया पर चल रहे तमाम आरोप प्रत्यारोपों के बावजूद अपनी छवि को लेकर सज़ग रहे। वहीं सबको साथ लेकर चलने की नीति के चलते गेदर लगातार आगे बढ़ते रहे। 2013 के चुनाव में करीब 40000 वोट लेने वाले को गेदर का आंकड़ा अगर 2018 में 55000 तक पहुंचा है तो इसकी वजह यही है।
वहीं खराब छवि के चलते मील परिवार 2018 में कांग्रेस की लहर के बावजूद हार गया तो पूर्व विधायक के कार्यकाल में लगें भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते 2013 में तीसरे स्थान पर रहा। 2018 के बाद परिवार के नेताओं की आपसी खींचतान के बीच जब तक हनुमान मील को चेहरा बनाया गया तब तक गंगा में काफी पानी बह चुका था। हनुमान मील नें अतिक्रमणों के खिलाफ सख्त रवैया तो अपनाया लेकिन वे इसे पूरी तरह से रोक नहीं पाए। चुनाव में हार के बाद एक समाज विशेष के लोगों के साथ आमजन को वोट का उलाहना देने के रवइये नें भी हनुमान मील की राजनीति और छवि का खासा नुकसान कर दिया।
हालांकि बाद में फील्ड में काम करते हुए हनुमान मील नें अच्छी फैन फॉलोइंग भी बनाई। लेकिन अपनी छवि को लेकर हनुमान मील भी पूर्व विधायक की तरह लापरवाह नजर आए। पूर्व विधायक की तरह हनुमान मील के साथ भी ऐसे चेहरों का जमावड़ा लगा रहा जिनके प्रति जनता में नेगेटिव ओपिनियन थी।
खबर पॉलिटिक्स में हमने लगातार मील परिवार के नेताओं को यह इशारा भी दिया कि राजनीति में परसेप्शन बड़ा महत्वपूर्ण है। इसलिये नेताओं को नेगेटिव इमेज वाले लोगों से दूर रहना चाहिए। परन्तु चरण चाटुकारों नें धरातल की सच्चाई को मील परिवार के नेताओं तक पहुंचने ही नहीं दिया।
गेदर की ताजपोशी की तैयारी में जुटे कांग्रेसी नेता
गेदर को टिकट मिलने से मील परिवार की नाराजगी नें विरोधी गुट के कांग्रेसी नेताओं को सक्रिय कर दिया है। यही वजह है कि टिकट की दौड़ में शामिल दूसरे कांग्रेसी नेताओं ने भी गेदर के राज्याभिषेक के लिए जान झोंक दी है। मिल परिवार की राजनीति से परेशान विरोधी नेता आपसी मतभेद को भुलाकर गेदर के पक्ष में खड़े हो रहे हैं।
इसका ताजा उदाहरण जुलेखा बेगम है। जिला परिषद सदस्य जुलेखा बेगम के निर्दलीय चुनाव लड़ने की बात सामने आ रही थी। लेकिन मील परिवार द्वारा भाजपा को समर्थन देने की घोषणा के बाद उन्होंने चुनाव लड़ने का इरादा त्याग दिया है। कहा जा रहा है कि वे भी गेदर के समर्थन में चुनाव प्रचार करेंगी। कुल मिलाकर मील परिवार के निर्णय ने फिलहाल गेदर को बिना जीते ही कांग्रेस का नया किंग बना दिया है।
मील परिवार के निर्णय को लेकर उठ रहे सवाल ?
पूर्व विधायक गंगाजल मील नें रविवार को भाजपा प्रत्याशी रामप्रताप कासनिया को समर्थन की घोषणा कर दी है। लेकिन इसी बीच कांग्रेस नेता हनुमान मील ने कांग्रेस में रहने की ही बात कही है। ऐसे में क्या यह संभव है कि मील खुद कांग्रेस में रहे और उनके समर्थक भाजपा के लिए वोट मांगे ? हमें लगता है कि मील परिवार चुनाव नहीं लड़ रहा है ऐसे में मूलत कांग्रेसी रहे इन अधिकांश समर्थकों की घर वापसी हो जाएगी।
इसके अलावा सवाल यह भी पैदा होता है कि अगर मील परिवार के अधिकांश समर्थक कासनिया को वोट नहीं देंगे तो फिर इस निर्णय का मील परिवार को क्या फायदा हुआ ? हमें लगता है मील परिवार का यह निर्णय उनकी हंसी का सबब भी बन सकता है !
– राजेंद्र पटावरी,उपाध्यक्ष- प्रेस क्लब सूरतगढ़।