मील,कालवा और कांग्रेस : महिला व अज़गर की कहानी

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मील,कालवा और कांग्रेस : महिला व अज़गर की कहानी

सूरतगढ़। सूरतगढ़ नगरपालिका में मास्टर ओमप्रकाश कालवा के चैयरमेन बनने के बाद से कांग्रेस के लिये  कुछ भी ठीक नही चल रहा। नगरपालिका प्रशासन पार्षदों की आपसी खींचतान, पार्षदों-कर्मचारियों के बीच विवाद और भ्रष्टाचार व सरकारी भूमि पर कब्जों को लेकर लगातार चर्चा में बना हुआ है। शहर में पालिका भूमि पर अवैध अतिक्रमणो के चलते हालत यह हो गई कि सत्ता पक्ष के नेता और पूर्व विधायक गंगाजल मील को आगे आकर सफाई देनी पड़ी कि उनका और उनके परिवार का एक इंच जमीन पर भी कब्ज़ा नही है।

शहर में अवैध अतिक्रमणो से हो रहे राजनीतिक नुकसान का अंदाजा शायद मील परिवार को बहुत देर से मगर हो चुका है और इसी का नतीजा है गत दिनों वार्ड-45 और अब वार्ड- 4 में अतिक्रमणो पर पालिका प्रशासन की सख्त कार्रवाई। इस कार्रवाई से मील परिवार ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि सरकारी जमीन पर अतिक्रमण बर्दाश्त नही किया जायेगा। हालांकि ऐसी कार्रवाईयां बहुत पहले होनी चाहिए थी। राजनीतिक तौर पर इस देरी से उनकी छवि का काफ़ी नुकसान हो चुका है। खैर जब जागो तभी सवेरा।

मास्टर ओमप्रकाश कालवा की भूमिका भी सवालों के घेरे में

राजस्थानी में एक कहावत है ‘ढका मतीरा’। जब भी आप बाजार में मतीरा खरीदने के लिए जाते हैं  तो उसकी बाहरी सूरत (हरा रंग-रूप) देखकर उसके लाल और मीठे होने का अंदाजा लगाते हैं। लेकिन जब आप उसे काटते हैं तो उसकी सच्चाई सामने आती है। तब आपको पता लगता है कि आपने जिस मतीरे को बाहरी सुनहरा रंग देखकर लाल और मीठा मान लिया था वह तो बदरंग और बेस्वाद है। मास्टर ओमप्रकाश कालवा का मामला भी कुछ कुछ ऐसा ही है।

मील परिवार ने पढ़ा-लिखा और शिक्षक पृष्ठभूमि का समझकर जिस मास्टर कालवा को शहर और खुद मील परिवार के मुकुट में चार चांद लगाने की जिम्मेदारी सौंपी थी। उन्हीं मास्टरजी ने चेयरमैन बनते ही अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। दूसरों को नीचा दिखाने की हवस में मास्टरजी ने नगरपालिका में गुटबाजी, बेलगाम प्रशासन और पार्षदों को अवैध अतिक्रमणो की छूट देकर नगरपालिका का भट्टा बिठा दिया। रही सही कसर प्रेस से पंगा लेकर पूरी कर दी।

लगभग 3 साल के अपने कार्यकाल में मास्टरजी अपनी हरकतों से खुद तो जनता की नजरों में नंगे हो ही चुके हैं। लेकिन हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे की तर्ज पर मास्टरजी मील परिवार की राजनीति की कब्र खोदने में भी दिन रात एक किए हुए हैं।

हालत यह है कि मास्टरजी की कारगुजारीयों से कांग्रेस के ही अधिकांश पार्षद मील परिवार से दूर हो चुके हैं। इसके अलावा सफाईकर्मी-व्यापारियों के विवाद में मास्टरजी ने मील परिवार के नुमाइन्दे हनुमान मील से खुन्नस के चलते जानबूझकर मामले को सुलटने नहीं दिया और व्यापारियों को मील परिवार और कांग्रेस के खिलाफ खड़ा कर दिया। इसके अलावा व्यापारियों की नाक रगड़वाने की चाहत में मास्टरजी ने रेलवे स्टेशन से भगतसिंह चौक तक सड़क को डेढ़ साल तक लटकाये रखा। जिसकी वजह से व्यापारी और आमजन सड़क की हालत को लेकर कांग्रेस बोर्ड और मील परिवार को कोसते रहे। मास्टरजी के बिछाये मायाजाल में पूर्व विधायक सहित मील परिवार ये बात भी भूल गया कि विधानसभा चुनावों में जीत की चाबी शहर के इन्ही व्यापारियों के हाथों में है। पिछले विधानसभा चुनावों के आंकड़ों से इस बात की तस्दीक की जा सकती है।

वार्ड नंबर-4 में अतिक्रमण हटाने के ताज़ा मामले में भी पर्दे के पीछे सूत्रधार की भूमिका में मास्टर कालवा ही है। मामला व्यापारियों, पार्षदों या फिर अतिक्रमण हटाने का ही नहीं है। चैयरमैन बनने के बाद से मास्टरजी कि अब तक की गतिविधियों को नोट किया जाए तो साफ पता लगता है कि वे किसी सुपारी किलर की तरह मील परिवार की राजनीतिक हत्या में जुटे हुए हैं। इस काम में काफी हद तक मास्टरजी को कामयाबी भी मिल चुकी है। मास्टरजी किस ग्रंथि से ग्रसित होकर इस काम को कर रहे हैं, ये तो वहीं जाने! लेकिन मास्टर जी की हरकतों को देखकर यूरोप की एक प्रसिद्ध कहानी याद आ रही है।

महिला और उसके पालतू अजगर की कहानी…

एक महिला को एक दिन रास्ते में एक अजगर का बच्चा मिला। महिला उसे अपने घर लें आई और उसकी देखभाल करने लगी। धीरे-धीरे महिला का अजगर के प्रति प्रेम बढ़ता गया और वह उसे रात में अपने साथ ही सुलाने लगी। लेकिन ज्यों ज्यों अज़गर बड़ा हुआ उसके व्यवहार में परिवर्तन होने लगा। वह महिला से सटकर सोने लगा और अपने शरीर को स्ट्रेच कर लम्बा करने की कोशिश करता। शुरू में तो महिला को अच्छा लगा। परन्तु कुछ दिनों के बाद अजगर ने एकाएक खाना-पीना छोड़ दिया। अजगर को कुछ भी खाते पीते ना देख महिला परेशान हो गई और वह उसे एक जानवरों के डॉक्टर के पास ले गई।

डॉक्टर ने महिला से अजगर की समस्या पूछी तो महिला ने उसके कुछ भी नही खाने पीने की बात कही। इस पर डॉक्टर ने महिला से पुछा, ‘क्या आपका अजगर हर रात आपके साथ सोता है ?’ महिला ने जवाब दिया ‘हां’,। स्पेशलिस्ट डॉक्टर ने फिर पूछा, ‘क्या ये आपसे लिपटता या फिर अपना पूरा शरीर स्ट्रेच करता है?’ महिला ने फिर जवाब दिया ‘हां’।

डॉक्टर ने महिला को बताया कि उसे अजगर को तुरंत घर से बाहर निकाल देना चाहिए। स्पेशलिस्ट का जवाब सुनकर महिला हैरान थी उसने पूछा ‘क्यों’। स्पेशलिस्ट डॉक्टर ने जवाब दिया ‘क्यूंकि उसका अजगर उसे खाने की तैयारी कर रहा है ! उसने भूख बढ़ाने के लिए खाना पीना छोड़ दिया है’। स्पेशलिस्ट ने कहा कि उसका पालतू जानवर उससे इसलिए नहीं लिपटता क्योंकि वह उसे प्यार करता है। बल्कि उसका पालतू अजगर उससे इसलिए लिपटता और स्ट्रेच करता है ताकि वह यह जान सके कि उसकी खुद की लंबाई इतनी हुई है कि नहीं, कि वह महिला को पूरा निगल सके। स्पेशलिस्ट की बात सुनकर अब महिला की हालत काटो तो खून नहीं जैसी हो गई । महिला ने इसके बाद क्या किया होगा यह बताने की शायद जरूरत नहीं है।

बहरहाल कहानी के अजगर के समान ही चेयरमैन बनने के बाद से मास्टर कालवा का व्यवहार भी बदला हुआ सा है। मास्टरजी भी लगातार कहानी के अजगर की तरह खुद को स्ट्रेच कर रहे है यानि की खुद को बड़ा मानते हुए कांग्रेस के पार्षदों को ही नीचा दिखाने की राजनीति कर रहे है। कहानी के अज़गर की तरह ही अब वे अपनी राजनीतिक भूख को लगातार बढ़ा रहे हैं ताकि कभी भी मील परिवार की राजनीतिक विरासत को निगल सके। इसके लिए वे लगातार जोधपुर,जयपुर और दिल्ली के चक्कर भी लगा रहे हैं। मील परिवार की हालत भी फिलहाल उस महिला की तरह ही है जो अपने पालतू अजगर के इरादों को भांप नहीं पा रही है। वैसे कहानी की महिला की तरह ही मील परिवार को भी किसी स्पेशलिस्ट से सलाह लेकर अजगर को घर से बाहर फेंकने की जरूरत है।

खैर कहानी की महिला तो बच गई लेकिन देखना होगा कि क्या मील परिवार इस अजगर से छुटकारा पा सकेगा या फिर यह अजगर मील परिवार की राजनीतिक विरासत को निगल लेगा।

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