साहब के नायाब तरीके की शहर में हो रही चर्चा

शहर में इन दिनों एक वॉशिंग मशीन की चर्चा बड़े जोरों पर है। इस मशीन के बारे में कहा जा रहा है कि यह मशीन कपड़े तो साफ करती ही है शहर के सीवरेज को भी साफ करेगी। वॉशिंग मशीन से गटर की सफाई का यह नायाब आइडिया शहर के एक बड़े साहब का है । साहेब के इस क्रांतिकारी विचार से उम्मीद जगी है कि शहर में बेहतर सीवरेज व्यवस्था देखने को मिलेगी।
मामला कुछ यूं है कि शहर में सीवरेज निर्माण में हुई अनियमितता से जनता तो परेशान थी ही, बड़े साहब का भी उस समय पेट भी दर्द होने लगा जब जनाब को ये मालूम हुआ कि गटर निर्माण में सरकारी धन की जमकर बन्दरबांट हुई है और बहते गटर में अफसरों, बाबूओं समेत छुटभैय्ये नेताओं ने भी अपने हाथ धो लिए हैं तो उनका पारा बढ़ना स्वाभाविक था । चूंकि बड़े साहब पक्के समाजवादी ठहरे, लिहाजा पूंजी और संसाधनों का असमान बंटवारा उन्हें कतई पसंद नहीं है। इसलिए बड़े साहब ने समाजवादी तरीके से ही गटर की समस्या को दूर करने का निश्चय किया। बस फिर क्या था , गटर कम्पनी और विभागीय अधिकारियों की बैठक बुलाई गई। बैठक की सूचना मिलने पर समय से पूर्व सेवानिवृत्त हुए समाजवादी आंदोलन के अगुवा ‘मास्टरजी’ भी बैठक में पहुंच गए।अब ‘मास्टरजी’ ताजा ताजा जनसेवक बने हैं सो प्रशासन से मीटिंग का कोई मौका नहीं चूकते। फिर यह मामला तो ठहरा उस गटर कम्पनी का, जिससे मास्टरजी को काफी सहानुभूति रही है। शहर में यह भी चर्चा है कि कम्पनी के समाजवादी रवैये से खुश होकर ‘मास्टर जी’ ने कम्पनी का गटर विभाग से बड़ा चेक भी पास करवा दिया था । अब यह मत पूछिए कि इस चेक पर कितना हिस्सा मास्टर जी को मिला और कितना उनके हाकीम को ?
खैर बड़े साहब की मीटिंग में गटर कम्पनी के पैरोकार बने ‘मास्टरजी’ पहुंच तो गए थे पर उन्हें क्या मालूम था कि साहब बहुत गुस्से में है। बड़े साहब ने गटर कंपनी ओर गटर विभाग के अधिकारियों को जमकर लताड़ पिलाई। इशारों ही.इशारों में मास्टरजी को भी अपने समाजवादी तेवर दिखाए। साहब के तेवर देख गटर कंपनी के साथ ही मास्टरजी भी परेशान हो गए। उन्हें समझ नही आ रहा था कि आखिर साहब इतना नाराज़ क्यों हैं ? जब खोज खबर निकाली गई तो पता लगा कि साहब अपनी मैडम को लेकर परेशान चल रहे हैं। मास्टरजी के शुभचिंतकों ने जब बड़े साहब को टटोला तो दर्द छलक उठा-‘आप लोग तो ध्यान नहीं देते हैं ‘ “मैडम बहुत परेशान हैं, घर में वॉशिंग मशीन नहीं है, हाथ से कपड़े धोने पड़ते है, अब मैडम के हाथों का दर्द कैसे बर्दाश्त हो !’
बड़े साहब की व्यथा जानते ही ‘मास्टरजी’ की आंखें चमक उठी। उन्होंने फट से गटर कम्पनी के कारिंदों को बड़े साहब की चिंता के समाधान का फ़रमान सुना दिया। यह हिदायत भी दे डाली कि मशीन ऑटोमेटिक होनी चाहिए । ताकि मेडम को जरा भी तकलीफ न हो। वैसे गटर कंपनी के अधिकारियों की एक खासियत रही है कि वो अपनी सेवा से बड़े बड़ों का दिल जीत लेते हैं। इस मामले में भी ऐसा ही हुआ। लॉकडाउन में दुकान खुलवाकर कम्पनी ने साहब के घर फुल्ली ऑटोमेटिक मशीन पहुंचा दी। मशीन पहुंचते ही मैडम के हाथ और दिल का दर्द पूरी तरह से गायब । साहब को और क्या चाहिए। मशीन आने के बाद साहब गटर कम्पनी के समाजवादी रवैये से खुश हैं । गटर व्यवस्था की परेशानियों को लेकर अब साहब खुद आगे बढ़कर बताते है कि हमारे यहां तो सीवरेज बढ़िया चल रहा है। मैडम वाशिंग मशीन से कपड़े धोने के बाद निकले पानी को गटर में छोड़ देती है। साबुन का पानी गटर में गिरने से अब गटर भी साफ होने लगा है। बड़े साहब के इस बयान से ‘मास्टरजी’ और गटर प्रोजेक्ट से जुड़े अधिकारीयों ने राहत की सांस ली है। वैसे शहर के लोगों को उम्मीद नही थी कि बड़े साहब गटर समस्या का इतना बेहतर समाधान निकाल पाएंगे। अब साहब ने गटर कम्पनी की फ़ाइल से ध्यान हटाकर शहर के भूमाफियों द्वारा किये जा रहे कब्जों पर केंद्रीत किया है। बड़े साहब की कोशिश है कि कब्जों के मामले में भी समाजवाद लागू किया जाए। आखिर ‘सबका साथ सबका विकास’ ही केंद्रीय नीति है।
कुल मिलाकर गटर समस्या के ऐसे प्रभावी समाधान से एक नागरिक के रूप में हम भी खुश हैं तो सोचा कि क्यों न संगीत का आनंद लिया जाए। संयोग देखिए शहर में स्थित आकाशवाणी भी हमारी खुशियों में शामिल हो गुनगुना रहा है
‘राम तेरी गंगा मैली हो गयी पापियों के पाप धोते-धोते…..’
– राजेंद्र जैन
बहुत ही उम्दा और शानदार लेखन
शुक्रिया
Shri Rajender editor of khabbar politics there views there Blogs are superb top class keep up the area limit thanx
Tnks
Thanks