
साहित्यिक संस्था ‘सबद’ की मासिक गोष्ठी का आयोजन
वरिष्ठ रचनाकार महेंद्र मोदी रहे मौजूद
सूरतगढ़ (27 नवंबर)। ‘संस्मरण लेखन केवल भोगा हुआ यथार्थ नहीं होता, बल्कि यह सामयिक तथ्यों और घटनाओं का ऐतिहासिक दस्तावेज भी होता है। इस विधा में लेखक को स्वीकारोक्ति में ईमानदारी बरतनी चाहिए तभी उसकी पठनीयता बनी रह सकेगी।’ कोरोनाकाल के बाद आयोजित ‘सबद’ की पहली मासिक गोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए राजस्थानी और हिंदी के वरिष्ठ रचनाकार महेंद्र मोदी ने ये उद्गार व्यक्त किए।
इक्कीस संस्थान में आयोजित इस साहित्यिक गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मंगत बादल ने की। कार्यक्रम में अतिथियों का माल्यार्पण के साथ शॉल ओढ़ाकर अभिनंदन किया गया।

विविध भारती में पूर्व चैनल हैड रहे महेंद्र मोदी ने बीकानेर के पूर्व महाराजा और सांसद रहे करणी सिंह से जुड़े अपने संस्मरण सुनाए। उन्होंने संस्मरण विधा की भाषा और शैली पर बात करते हुए कहा कि हर लेखक हमेशा अपनी मातृभाषा में ही सहजता महसूस करता है। डॉ. मंगत बादल ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि रचनाकारों को सृजन एक सामाजिक जिम्मेदारी के रूप में लेना चाहिए। उन्होंने ‘सबद’ के आयोजन की प्रशंसा करते हुए नव लेखकों को प्रोत्साहित किया।
इस अवसर पर उपस्थित साहित्यकार रमेश चंद्र छाबड़ा, डॉ. मदनगोपाल लढा, परमानंद दर्द, रामकुमार भांभू, हर्ष नागपाल, राजेश चड्डा, डॉ हरिमोहन सारस्वत ‘रूंख’ ने काव्य पाठ किया। कार्यक्रम संचालन राजेश चड्ढा ने किया।