विधायक गेदर की घोषणा के बाद कासनिया की बढ़ी मुश्किलें
सूरतगढ़। भाजपा के पूर्व मंत्री रामप्रताप कासनिया के पुत्र संदीप कासनिया के विवेकानंद स्कूल को करीब 50 करोड रुपए की भूमि आवंटन का प्रस्ताव फिलहाल खटाई में पड़ गया है। मामले में कांग्रेस के पूर्व पार्षद परसराम भाटिया, बसंत बोहरा और तुलसी असवानी की याचिका पर हाई कोर्ट की डबल बेंच ने स्टे के आदेश दिए हैं। कोर्ट ने स्वायत शासन विभाग के सचिव, डीएलबी डायरेक्टर, नगरपालिका ईओ, एग्जीक्यूटिव इंजीनियर और विवेकानंद स्कूल के चेयरमैन को नोटिस जारी कर 4 सप्ताह में जबाब माँगा है।
विधायक गेदर सहित 7 पार्षदों ने किया था विरोध, बाकियों ने किया था ज़मीर का सौदा !
गत वर्ष 28 अगस्त को जब नगरपालिका बोर्ड की बैठक में विवेकानंद स्कूल को नई धानमंडी और हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी के बीच स्थित बेशकीमती भूमि को आवंटन करने का प्रस्ताव पारित किया गया था तब खूब हल्ला मचा था। उस समय पूरे शहर के लोग इस प्रस्ताव के गिरने की उम्मीद कर रहे थे। बैठक में विधायक डूंगरराम गेदर और कांग्रेस के पार्षद परसराम भाटिया, बसंत बोहरा ने शहर के प्रति अपनी जिम्मेदारी को निभाते हुए प्रस्ताव का जमकर विरोध किया। इसके अलावा कांग्रेस पार्षद संदीप सैनी, कमला बेनीवाल, तुलसी असवानी, निर्दलीय विमला मेघवाल और परमेश्वरी राजपुरोहित भी विरोध का झंडा थामे रहे।
लेकिन कासनिया के दबाब में जगदीश मेघवाल को छोड़कर राष्ट्रवादी पार्टी का कोई भी पार्षद अपनी रीढ़ सीधी नहीं रख पाया, वहीं प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस के पार्षदों ने तो राजनीति की मंडी में अपने ज़मीर का सौदा कर लिया। एक दर्ज़न के करीब इन कांग्रेसी पार्षदों ने पार्टी व्हीप को धता बताते हुए शहर की जनभावनाओं का ही गला घोंट दिया। इन पार्षदों ने ये साबित कर दिया कि उनके लिए शहर और पार्टी से बड़ा अपना स्वार्थ है। नतीजा यह हुआ कि यह प्रस्ताव बहुमत से पारित हो गया।
प्रस्ताव का समर्थन पड़ रहा भारी, राजनीति की दुकान बंद होने का खतरा ?
विवेकानंद स्कूल को भूमि आवंटन के प्रस्ताव के समर्थन के बाद कासनिया सहित शहर के 45 में से 38 पार्षदों की राजनीति की दुकान के बंद होने का संकट खड़ा हो गया है। क्यूंकि जनभावनाओं से खिलवाड़ करने वाले इन लोगों को शहर की जनता सबक सिखाने को आतुर है।
प्रस्ताव का समर्थन करने वाले कांग्रेसी पार्षदों का संकट तो और भी बड़ा है क्यूंकि विधायक डूंगरराम गेदर ने यह साफ कर दिया है कि गद्दारी करने वाले पार्षदों को पार्टी टिकट नहीं देगी। दूसरी और प्रस्ताव का समर्थन करने के बावजूद कासनिया इन लोगों को टिकट देंगे इस बात की उम्मीद कम है। वैसे भी आयातित चेहरों को टिकट देने से खुद भाजपा के कार्यकर्ताओं के नाराज होने की भी पूरी संभावना है। कुल मिलाकर ‘बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय’ वाली कहावत इन पार्षदों के लिए चरितार्थ होती दिख रही है।
सौदेबाजी के आरोपों से घिरे भाटिया का विरोधियों को करारा जबाब
दूसरी और इस मामले में कांग्रेस ब्लॉक अध्यक्ष परसराम भाटिया जिन पर प्रस्ताव पर वोटिंग से पहले भाजपा नेता संदीप कासनिया से बड़ी डील करने का आरोप लगा था, ने मामले में स्टे लाकर खुद पर लगे आरोपों कों एक तरह से जबाब दे दिया है। शहर की 50 करोड़ से अधिक क़ीमत की बेशकीमती जमीन को बचाने की लड़ाई में स्टे लाकर भाटिया फिल्मों के उस नायक की तरह बन गए है जिसकी जीत की दुआ दर्शक भी मन ही मन करने लगता है।
पूरा होता नहीं दिख रहा कासनिया का सपना !
भाजपा नेता संदीप कासनिया के विवेकानंद स्कूल को भूमि आवंटन प्रस्ताव पर हाईकोर्ट का स्टे आने पर राजनेता ही नहीं आमजन भी खुश नज़र आ रहा है। क्यूंकि शहर के प्रत्येक जागरुक व्यक्ति की यह भावना रही है कि यह बेशकीमती जमीन शहर के विकास में काम आये, ना कि किसी व्यक्ति को निजी फायदे के लिए सौंप दी जाये। यही वजह है कि प्रस्ताव पर स्टे आने के बाद शहर में अब इस बात पर चर्चा होने लगी है कि क्या कासनिया यह बेशकीमती भूमि हासिल करने मे कामयाब होंगे ?
हालाँकि इस सवाल का जवाब भविष्य के गर्भ में छुपा हुआ है, लेकिन मामले के सभी पहलुओं पर गौर करें तो लगता है कि विवेकानंद स्कूल को भूमि आवंटन का प्रस्ताव भले ही पारित हो गया हो लेकिन इस बेशकीमती भूमि को हासिल करने का कासनिया का सपना लगता नहीं है कि पूरा होगा?
इसकी वजह की बात करें तो हाल फिलहाल तो हाईकोर्ट के स्टे के बाद यह मामला लंबा खींचता नजर आ रहा है। इसके अलावा पूर्व में सुप्रीम कोर्ट और खुद हाईकोर्ट भी कासनिया के स्कूल को इस भूमि के आवंटन का फैसले को खारिज कर चुके है, इसलिए कोर्ट में कासनिया को सफलता मिलने के चांस कम नज़र आ रहे है। दूसरे यह भी बड़ा सवाल है कि हाईकोर्ट और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने में कितना समय लगता है ? क्योंकि अगर दोनों कोर्ट में यह मामला अगर ढाई से 3 साल भी अटकता है तो फिर कासनिया का इस जमीन को पाने का सपना, सपना ही रह सकता है। क्यूंकि उसके बाद अगली सरकार जो कि संभव है कि कांग्रेस की ही होगी, वह इस आवंटन प्रस्ताव को निश्चित ही रद्द कर देगी।
इसके अलावा विधायक डूंगरराम गैदर ने रविवार को प्रेस वार्ता में इस मामले में एक बयान देकर कासनिया की मुश्किलों को और बढ़ा दिया है। विधायक गेदर ने कहा है कि यदि आगामी नगरपालिका चुनाव में कांग्रेस का बोर्ड बनता है तो विवेकानंद स्कूल को भूमि आवंटन के प्रस्ताव को रद्द किया जाएगा। उन्होंने कहा है कि कांग्रेस बोर्ड द्वारा इस बेशकीमती जमीन पर शहर के विकास के लिए जरूरत के हिसाब से प्लान बनाकर नया प्रस्ताव लाया जाएगा।
विधायक गेदर की बात करें तो अपने सवा साल के कार्यकाल में उनकी छवि बेदाग तो रही ही है साथ ही साथ जनता के मुद्दों पर उन्होंने संज़ीदगी का परिचय भी दिया है। इसलिये उनके बयान को हल्के में नहीं लिया जा सकता है और वर्तमान में भाजपा की जो हालात है उसमें आगामी नगरपालिका चुनावों में कांग्रेस को ही ऐज़ मिलता दिख रहा है। क्यूंकि भूमि आवंटन प्रस्ताव आने के बाद से पूर्व विधायक रामप्रताप कासनिया की ईमानदार नेता की छवि धूमिल हुई है। भाजपा राज में शहर में लगातार अवैध अतिक्रमण, सरकारी संपत्ति की लूट, नगरपालिका, उपखंड व तहसील ऑफिस में भ्रष्टाचार का तांडव मचा हुआ है। निरंकुश हो चुके प्रशासन ने आम आदमी के हालात बद से बदतर कर दिये हैं। ऐसे में जनता बदलाव के मूड में नज़र आ रही है।
दूसरी और भाजपा के कुछ बड़े नेताओं की पूर्व विधायक के पुत्र की कार्यशैली से नाराजगी भी भाजपा का बोर्ड बनने की सम्भावनाओं पर भारी पड़ सकती है। ऐसे में गेदर का यह बयान कासनिया के लिए खतरे का अलार्म है जिसके बजने की फिलहाल पूरी संभावना है। कुल मिलाकर जीवन भर ईमानदारी का तमगा लेकर चलने वाले रामप्रताप कासनिया जैसे खांटी नेता के राजनितिक जीवन के आखिरी पड़ाव में स्कूल की इस जमीन का सपना डरावना ख्वाब साबित हो जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
– राजेंद्र पटावरी, अध्यक्ष-प्रेस क्लब, सूरतगढ़।