कांग्रेस के जयचंदों नें पास कराया प्रस्ताव, संस्कारी भी नहीं रहे पीछे, भाटिया सहित 7 पार्षदों नें निभाया धर्म

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सूरतगढ़। नगरपालिका बोर्ड की बुधवार को हुई बैठक में जनभावनाओं के विपरीत विवेकानंद स्कूल को भूमि आवंटन का प्रस्ताव पास हो गया। अफसोस की बात है कि चेयरमैन ओम कालवा से लेकर जनता के चौकीदार इस डकैती में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से शामिल रहें। बैठक से पहले ही कालवा नें पालिका सभागार के बाहर बेहयाई का भोंडा प्रदर्शन कर अपने बेशर्म इरादे साफ कर दिए थे। कालवा का विरोधियों को चिढ़ाने के इरादे से हाथ उठा-उठाकर….आज नहीं तो कल खुदेगी.. बोलने का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल भी हो रहा है।

खैर बैठक के दौरान तो चेयरमैन कालवा अपने अहंकार में संसदीय गरिमा भूल गए और विधायक डूंगरराम गेदर को भी नीचा दिखाने की हिमाकत कर डाली। उन्होंने गेदर को बोलने से यह कहकर रोक दिया कि बोर्ड बैठक में आपके बोलने के अधिकार सीमित है। वह भी तब जबकि विधायक सफाई और सड़कों की व्यवस्था पर चर्चा की मांग कर रहे थे। बैठक में कालवा का विधायक और बुजुर्ग विपक्षी महिला पार्षद सहित जनप्रतिनिधियों से व्यवहार भी बेहद खराब था। 

              कालवा को जानने वाले ये पहले से जानते है कि आज नहीं वे हमेशा से ही ऐसे थे। इसी सभागार में लोगों नें वह दौर भी देखा है जब कालवा नें बोर्ड बैठक में तत्समय विधायक रामप्रताप कासनिया के साथ इससे भी हल्का व्यहवार किया था। कासनिया को उस मीटिंग में ऐसे भागना पड़ा था जैसे किसी ने उनके पीछे पागल कुत्ते छोड़ दिए हो। जिन लोगों नें वो दृश्य देखे है वो समझ नहीं पा रहे है कि इतनी जलालत के बाद भी कासनिया नें कालवा को पनाह क्यों दी है ?

बैठक में दुशासन बने पार्षद, शहर का किया चीरहरण

बहरहाल जब सदन के सभापति का बर्ताव ऐसा रहा तो प्रस्ताव का समर्थन कर रहे जरगुलाम जनप्रतिनिधियों का व्यवहार कैसा रहा होगा! ये बस अंदाजा लगाया जा सकता है। सच तो ये है कि शहर की जनता के नुमाइन्दे सदन में सुपारी कीलर भूमिका में थे। जिन्हे विपक्षी पार्षदों के जरा भी शोर मचाने पर शिकार की तरह टूट पड़ने का टास्क मिला था। जैसे ही विपक्ष नें प्रस्ताव का विरोध शुरू किया लोकतंत्र के पहरुए अपने असली रूप में आ गए और उन्होंने भेड़ियों की मानिंद ‘हुआं हुआं’ शुरू कर दी। बहुमत के घोड़े पर सवार इन भेड़ियों की आवाजे लगातार तेज होती जा रही थी। इस शोर में प्रस्ताव पर चर्चा की विपक्ष आवाजे कुंद पड़ती गई और धनबल और बाहुबल से हासिल बहुमत नें प्रस्ताव पारित कर जनभावनाओं को सूली पर टांग दिया ।

यही नहीं प्रस्ताव पास होने के बाद ज़ब विपक्षी पार्षदों नें सदन से वॉक आउट किया, तभी जीत की ख़ुशी में लोकतंत्र की लाश पर गुलामों ने जश्न मनाना शुरू कर दिया। बहरहाल 28 अगस्त का दिन सूरतगढ़ नगरपालिका के इतिहास में सबसे काले दिन के रूप दर्ज़ हो गया है। शहर से गद्दारी करने वाले जयचंदों को जनता हमेशा याद रखेगी।

परसराम भाटिया सहित 7 पार्षदों नें दिखाया दम  

बुधवार को जब बोर्ड बैठक में बाहुबल और धनबल के आगे सत्ता पक्ष ही नहीं विपक्ष के बहुत से पार्षद सरेंडर कर चुके थे। उस समय पार्षद परसराम भाटिया की अगुवाई में केवल 7 पार्षदों नें ही लोकतंत्र की लड़ाई लड़ी l इस लड़ाई में कांग्रेस ब्लॉक अध्यक्ष और पार्षद परसराम भाटिया नें पूरी मीटिंग के दौरान विरोध की कमान संभाली। जब सत्ता पक्ष के पार्षद हर पल और ज्यादा नीचे गिर रहें थे तब भी वे बिना डरे मुकाबला कर रहे थे। अपनी कार्यशैली से जरखरीद नजर आने वाले पार्षद भी उनसे सवाल कर रहे थे कि आखिर उन्होंने पार्षदों को बिका हुआ कैसे कह दिया ? तमाम विपरीत परिस्थितियों और इल्जामों के बावजूद सदन में शहर की जनभावना को उठाने के लिए भाटिया का धन्यवाद के पात्र है।

                 बोर्ड बैठक में पार्षद बसंत बोहरा व युवा पार्षद संदीप सैनी नें भी सत्ता पक्ष के पार्षदों से जमकर लोहा लिया। लठेतों तो जैसा व्यवहार कर रहे  विरोधी पार्षद ज़ब इन्हे हर तरह से दबाने की कोशिश कर रहे थे तब भी दोनों नें हौसला नहीं खोया और प्रस्ताव के विरोध में डटे रहें। कांग्रेस के इन दोनों पार्षदों ने अपने ईमान का सौदा नहीं किया। इसलिये अंतिम समय तक प्रस्ताव का सदन में पूरी ताकत से विरोध कर अपना पार्षद धर्म निभाया। 

                  बैठक में कांग्रेस की वार्ड-40 से पार्षद कमला बेनीवाल और तुलसी आसवानी भी तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद डटी रही। बुजुर्ग महिला पार्षद कमला बेनीवाल की तो इस दौरान लगातार चेयरमैन कालवा और दूसरे पार्षदों से तीखी नोंक झोंक भी हुई। अध्यक्ष कालवा नें महिला पार्षद के पुत्रों को नियमों से इतर पट्टे देने का दावा कर दबाव भी बनाने की भी कोशिश की, लेकिन महिला पार्षद ने जमीन नहीं छोड़ी और लगातार प्रस्ताव का विरोध किया।

पार्षद तुलसी आसवानी को भी भाजपा की एक महिला पार्षद नें पति पर गंभीर आरोप लगाकर टारगेट किया गया। लेकिन अंतिम फैसले तक महिला पार्षद नें मैदान नहीं छोड़ा।

निर्दलीय परमेश्वरी राजपुरोहित और विमला मेघवाल नें दिखाई मर्दानगी

बोर्ड बैठक से पहले ही ज़ब राष्ट्रीय पार्टियों और निर्दलीय के रूप में जीते पुरुष पार्षद लालच और सत्ता के दबाव में झुककर मर्दाना ताकत गवा बैठे थे, उस समय सदन में निर्दलीय परमेश्वरी राजपुरोहित और विमला मेघवाल नें अपनी रीड की हड्डी को सीधा रखा। इसके लिए इन दोनों महिलाओं के पति जनता मोर्चा के संयोजक ओम राजपुरोहित और पूर्व पालिकाध्यक्ष बनवारी लाल मेघवाल भी धन्यवाद के पात्र हैं जिन्होंने प्रस्ताव के मामले में राजनीति की मंडी में अपने जमीर का सौदा नहीं किया। दोनों पार्षदों नें सदन में बिना किसी हील हुज़्ज़त के गरिमामयी तरीके से प्रस्ताव का विरोध कर इतिहास के पन्ने में नाम दर्ज करवा दिया।

प्रस्ताव के समर्थन नें उतारा कई चेहरों से नकाब 

विवेकानंद स्कूल के प्रस्ताव को पास करवाने के षड्यंत्र में शहर के कुल 45 पार्षदों में से 38 पार्षद शामिल रहें। प्रस्ताव का समर्थन करने वाले पार्षदों की बात करें तो शहर के गद्दारों में समाज के मठाधीश भी शामिल रहे। चापलूसी कर सत्ता का मिठास लेनें की इन ठेकेदारों की चाहत के आगे शहर के भावनाएं आखिर कहाँ ठहरती। वहीं सदन में राजनीति में लंबी पारी खेलने वाले लोगों की हड्डियों में भी पानी भरा दिखा। दूसरी और सार्वजनिक रूप से भ्रष्टाचार की चिंता करने वाले कई पार्षद भी इस प्रस्ताव पर बेनकाब हो गए। पार्टी और नेताओं की गुलामी नें साफ छवि बनाने की कोशिश में जुटे इन पार्षदों के पोत भी चौड़े कर दिए।

कांग्रेस से जुड़ी एक पार्षद के पति पर जब राष्ट्रवादी पार्टी की एक महिला पार्षद ने पंप हाउस पट्टे को लेकर इल्जाम लगाए तो लगे हाथ कांग्रेस के वरिष्ठ पार्षद ने पार्षद के पति पर आंगनबाड़ी की भूमि पर कब्ज़ा करने के आरोप लगाकर पोल खोल दी। वैसे आपको हैरानी नहीं होनी चाहिए कि प्रस्ताव का समर्थन करने वाले राष्ट्रवादी पार्टी से जुड़े कई लोगों का गुजारा ही दलाली से होता है। इन्हें इस शहर से क्या लेना है, मतलब बस दलाली से है तो इन्होने भी रिश्तेदार नुमाईंदो के जरिए प्रस्ताव के समर्थन में हल्ला मचाकर दलाली का कर्ज चुका डाला। 

                   प्रस्ताव का समर्थन करने वाले विपक्षी पार्षदों की बात करें तो इनमें से ज्यादातर अपने पूरे कार्यकाल मे सरकारी भूमि पर कब्जा और ठगी पंजी को लेकर चर्चा में रहे हैं। ऐसे लोगों से तो उम्मीद करना ही बेमानी था। बताया जा रहा है कि कुछ पार्षद चांदी के सिक्कों के चमक में बहक गए। तो वहीं कुछ ठेकेदार कम पार्षदों नें बकाया भुगतान के आश्वासन पर शहर की बेशकीमती जमीन की लूट को खुला समर्थन दे दिया। वैसे प्रस्ताव के समर्थन की डील कितनी बड़ी थी इसका अंदाजा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि डील से कई हाजियों और हज़ का सपना देखने वालों का भी ईमान डोल गया।

बहाना कर मीटिंग का बायकॉट करने वाले शहर के सबसे बड़े दुश्मन 

इस प्रस्ताव को लेकर चल रही सौदेबाजी की चर्चा बोर्ड बैठक से पहले आम हो चुकी थी। इसलिये कुछ शातिर राजनीतिज्ञ लोगों ने दूसरों पर लेनदेन के आरोप लगाकर मीटिंग का बायकोट कर दिया। अगर सही मायनों में देखा जाए तो इस मामले में प्रस्ताव को पास करने का क्रेडिट ऐसे ही लोगों को जाता है। क्यूंकि किसी व्यक्ति विशेष को टारगेट कर पार्टी और शहर के प्रति अपनी जिम्मेदारी से भागकर यह लोग जयचंद होने के तमगे से नहीं बच सकते।

सच बात यह है कि इन लोगों ने पर्दे के पीछे रह कर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के सौदे कर लिए। बताया जाता है कि प्रमुख विपक्षी पार्टी के एक गुट से जुड़े ये तमाम पार्षद पूरी बोर्ड बैठक के दौरान भाजपा नेता संदीप कासनिया के एक ठिकाने पर मौजूद थे। दूसरी और कांग्रेस के एक पार्षद नें तो दूसरे पार्षद से पर्सनल रंजिश का बहाना कर पार्टी और शहर की जनता को धोखा देने का काम किया।

                  इस पूरे मामले में कम्युनिस्ट होने का दावा करने वाले नेताजी का भी असली चेहरा जनता के सामने आ गया। शहर की जनभावनाओं से जुड़े इस प्रस्ताव पर चल रही लड़ाई से खुद को दूर रखकर नेताजी नें साबित कर दिया वे कम्युनिज्म का चोला ओढ़े शेर की खाल में गीदड़ ही है। राजनीति के जरिये सौदेबाजी ही इनका मूल मंत्र है। बहरहाल जन्नत का सपना देखने वाले हाजियों और ज़मीर का सौदा करने वाले ऐसे जनप्रतिनिधियों से किसी शायर के शब्दों में बस इतना ही कहना है।

काबा किस मुंह से जाओगे ग़ालिब। शर्म तुमको मगर नहीं आती।। 

 

2 thoughts on “कांग्रेस के जयचंदों नें पास कराया प्रस्ताव, संस्कारी भी नहीं रहे पीछे, भाटिया सहित 7 पार्षदों नें निभाया धर्म

  1. Pichhale 5year me only 2meghwal parsdo ki jung me suratgarh ke dovelpent ka batthha bath gaya h

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