नगरपालिका की बैठक में 145 करोड रुपए का बजट पारित

POLIITICS

145 करोड़ के बजट पर 15 मिनट भी चर्चा नहीं कर पाए पार्षद

सूरतगढ़। शहर के विकास के लिए 145 करोड का बजट। लेकिन इस बजट पर 45 मिनट तो क्या 45 सेकंड भी बहस नहीं। ये है सूरतगढ़ नगरपालिका के नवनिर्वाचित बोर्ड की पहली बजट बैठक का हाल। भेड़ों की एक खासियत होती है कि एक भेड जिस ओर चल पड़े बाकी भेड़ें भी उसी ओर चल पड़ती हैं। चाहे वह भेड उन्हें खड्डे में लेकर गिर पड़े। नगरपालिका की वार्षिक बजट बैठक में नवनिर्वाचित पार्षदों का रवैया कुछ-कुछ भेडों ही जैसा था । चेयरमैन ओम कलवा के बजट प्रस्ताव पढ़ने पर ईओ लालचंद सांखला ने ज्यों ही बजट प्रस्ताव पर सदन की सहमति मांगी। सत्ता पक्ष के निर्दलीय पार्षद जिन्होंने शायद पहले से ही तय किया हुआ था कि बजट पर चर्चा नहीं होनी चाहिए। बजट प्रस्ताव को पारित करने के लिए मेज थपथपा दी। बस फिर क्या था ? भेडों की तरह पार्षद भी लगे मेज थपथपाने।  एक महिला पार्षद ने आपत्ति उठाने की कोशिश की तो सत्ता पक्ष के वही निर्दलीय पार्षद उनके गले पड़ गए। वजह भी थी आखिर उनकी योजना में खलल जो पड़ रहा था। परंतु अफसोस की बात है कि महिला पार्षद के पक्ष में यूं तो सभी जागरूक पार्षदों को चाहे वह किसी भी पार्टी के हो आवाज उठानी चाहिए थी। लेकिन सत्ता पक्ष तो छोड़िए एक पार्षद के अलावा भाजपा सहित विपक्ष के किसी भी पार्षद ने विरोध का नैतिक साहस नहीं दिखाया । खैर बात करते हैं बजट बैठक की । इस बैठक में पार्षद हंसराज स्वामी ने वार्ड में तारबंदी की आड में अतिक्रमण का खेल चलने, पार्षद राजीव चौहान ने पानी की लाइन बिछाने , सबसे युवा पार्षद प्रियंका कल्याणा ने वार्ड की समस्या मीटिंग में उठाई। वही पार्षद विमला मेघवाल ने आईडीएसएमटी योजना में खाली पड़े भूखंडों पर कब्जे का मामला उठाया तो ईओ लालचंद सांखला ने योजना पर हाईकोर्ट के स्टे का सफेद झूठ बोलकर पल्ला झाड़ लिया। सफेद झूठ इसलिए क्योंकि हाई कोर्ट के स्टे की कोई बात है तो वह आवंटन में गड़बड़ी की शिकायत के बाद रद्द किए गए भूखंडोंं के मामले में है। जो भूखंड लॉटरी में निकाले ही नहीं गए उन पर कोई भी विवाद है ही नहीं तो हाईकोर्ट का स्टे होने का प्रश्न ही नहीं उठता। इससे साफ है कि नगरपालिका प्रशासन की शह पर ही योजना के खाली पड़े भूखंडों पर कब्जा कर अवैध निर्माण करवाया जा रहा है । अब जबकि मामला सुर्खियों में है तो सवालो के घेरे में आए ईओ और चेयरमैन ने मामला उठाने वाली महिला पार्षद को अपने फर्जी तर्क से गुमराह कर दिया। अफसोस की बात यह है कि मामले को उठाने वाली पार्षद तो नई है। उन्हें तो शायद मामले में नियमों की पूर्णत जानकारी ना हो इसलिए वेे तो संतुष्ट हो गई। परंतु मीटिंग में मौजूद और नगरपालिका के भ्रष्टाचार को लेकर पिछले लंबे समय से मुखर रहने वाले भाजपा विधायक रामप्रताप कासनिया का ईओ के तर्क से संतुष्ट हो जाना बेहद निराश करने वाला था। क्या राजनीति में धुरंधर माने जाने वाले विधायक कासनिया को इतनी भी सामान्य समझ नहीं है ? या फिर विपक्ष में होने चलते वह भी नगरपालिका के भ्रष्टाचार को शिष्टाचार के रूप में स्वीकार कर चुके है ? वैसे नगरपालिका की बैठकों में  पार्षदोंं के चुप रहने की एक और वजह भी है। वो ये है कि नगरपालिका की बोर्ड मीटिंग के एजेंडे की कॉपी आमतौर पर पार्षदों को मीटिंग से दो-चार दिन पहले देने की बजाय मीटिंग के समय ही दी जाती हैं।  ऐसे में पार्षद बजट व अन्य प्रस्तावों को समझ नही पाते हैं। जिसकी वजह से वह मीटिंग में चुपचाप बैठे रहते हैं।बहरहाल इस बैठक में एक पार्षद ने बोर्ड बैठक से पूर्व प्रस्ताव की कॉपी दिए जाने की मांग की है। लेकिन देखना यह है कि आगामी बजट बैठक से पूर्व पार्षदों को एजेंडे की कॉपी देने की परंपरा गुरुजी शुरू करेंगे या फिर अंधेर नगरी की परंपरा जारी रहेगी ।

                                       

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