नंबर 3 में हुंडई शोरूम के सामने स्थित है बेशकीमती भूमि
सूरतगढ़। शहर में पिछले कुछ दिनों से वार्ड नंबर-3 में खाली पड़ी बेशकीमती सरकारी भूमि के अचानक खातेदार पैदा होने से वहां रह रहे लोगों के सामने संकट पैदा हो गया है। सनसिटी रिसोर्ट के पीछे हुंडई कार शो रूम के सामने स्थित भूमि जो कल तक नगरपालिका की थी और जिस पर पालिका ने कुछ पट्टे भी जारी किये है अचानक किन्ही फलाने राम के पर बोलने लगी है। वार्ड न.-3 में स्थित इस बेशकीमती भूमि की अचानक 50 साल बाद खातेदारी बहाल होने को लेकर भी गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।
1972 में मंडी समिति ने की अवाप्त, 2005 में पालिका के नाम चढ़ चुका इंतकाल

जहां तक वार्ड न-3 मे स्थित इस जमीन की बात है राजस्व दस्तावेजों के मुताबिक खसरा नंबर 320 में स्थित यह करीब 2.3 हेक्टेयर (9 बीघा ) भूमि मल्लूराम पुत्र लाभू राम ब्राह्मण को आवंटित की गई थी। जिसका की खसरा नंबर 320/1 में 0.038 हेक्टेयर, 320/2 में 0.177 हेक्टेयर,320/3 में 0.478 हेक्टेयर और खसरा संख्या 320/4 में 1.607 हेक्टेयर रकबा था।
सन 1972 में मंडी समिति द्वारा जब कस्बे की सैकड़ों बीघा भूमि को भविष्य में शहर के विकास के मद्देनजर अवाप्त किया गया। जिसमे खसरा नंबर-320 की मल्लूराम को आवंटित करीब 9 बीघा(2.300 हेक्टेयर) भूमि भी शामिल थी। सन 2002 में मंडी समिति के विघटन के बाद यह भूमि नगरपालिका को स्थानांतरित कर दी गई। इसी कड़ी में 4 नवंबर 2005 को इंतकाल संख्या 257 के जरिए उक्त भूमि भी राजस्व रिकॉर्ड में नगरपालिका के नाम दर्ज कर दी गई। तब से लगातार यह भूमि पर नगरपालिका के अधिकार क्षेत्र में थी। इसी के चलते पालिका द्वारा इस भूमि पर कब्जा कर रह रहे लोगों को कई पट्टे भी जारी कर दिए गये। लेकिन अब एकाएक नगरपालिका के नाम दर्ज नामांतरण को रद्द कर मल्लू राम के वारिसों के नाम खातेदारी को बहाल कर दिया गया है।
50 साल बाद खातेदारी बहाल करने का अनूठा मामला
वार्ड नंबर- 3 में विवाद की शुरुवात अतिरिक्त जिला कलेक्टर के एक आदेश के बाद हुई है। इस आदेश में अतिरिक्त जिला कलेक्टर ने 50 साल से रिकॉर्ड में सरकारी रकबा के रूप में दर्ज़ इस जगह की खातेदारी बहाल कर दी है। एडीएम ने मूल आवंटी मल्लूराम के पुत्र ओम प्रकाश की ओर से धर्मपाल गोदारा नामक व्यक्ति द्वारा जरिए मुख्तियारआम के रूप में लगाई गई अपील पर यह निर्णय दिया गया है।
इस अपील में अपीलार्थियों ने मंडी समिति द्वारा उक्त खातेदारी भूमि की आवाप्ति के बदले मल्लूराम व उनके वारिसों को न तो मुआवजा या बदले में तबादला नहीं देने, मंडी समिति द्वारा आवप्ति के बावजूद भी जमीन का भौतिक कब्जा नहीं लेने और अपीलार्थियों कब्जा जमीन पर होने का तर्क दिया।

49 साल बाद अपील स्वीकार करने पर खड़े हो रहे सवाल ?
अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट ने जिन आधारों पर निर्णय दिया है उनमें से एक है कि उक्त रकबा की अवाप्ति के बदले मुआवजा या अन्यत्र तबादला नहीं दिया गया ? लेकिन अगर इस प्रकरण की पत्रावली पर गौर किया जाए तो अपीलार्थी ने खुद माना है कि अपीलांट के पति/पिता/दादा ने भू प्रबंधक अधिकारी एसीसी, आरसीपी के समक्ष इस रकबा के बदले मुआवजे की मांग की थी लेकिन भू प्रबंधन अधिकारी ने अवाप्ति अधिनियम के नियम 4 6 के नोटिफिकेशन का प्रकाशित नहीं होने का तर्क देते हुए आवेदन को खारिज कर दिया। इसका सीधा सा अर्थ है कि प्रार्थी भू प्रबंधन अधिकारी के निर्णय के विरुद्ध अवार्ड या तबादले के लिए अपील कर सकते थे लेकिन उन्होंने अपील नहीं की।
वहीं आवंटियों द्वारा जब पालिका के नाम 2005 में नामांतरण दर्ज हुआ उस समय भी इसके विरूद्ध अपील नहीं की गई । जिसका सीधा सा अर्थ है कि आबंटी भूमि अवाप्ति के निर्णय को स्वीकार कर चुके थे। ऐसे में 50 साल के वकफ़े के बाद मियाद गुजरने के बाद अपील स्वीकार योग्य ही नहीं थी ?
न्यायालय के निर्णय के हवाले से खातेदारी की बहाल
इस प्रकरण में दूसरा बिंदु जिसे अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट ने खातेदारी बहाल करने का आधार माना है वह है, बागअली बनाम राजस्थान सरकार के विवाद में राजस्थान उच्च न्यायालय, जोधपुर की रिट संख्या-3865/95 में न्यायालय का निर्णय। एडीएम ने अपने निर्णय में कहा है कि उक्त रीट पर 08/05/2002 को पारित अपने निर्णय में माननीय उच्च न्यायालय के 8/05/ 2002 को पारित निर्णय से धारा 4 व 6 के तहत भूमि अवाप्ति के नोटिफिकेशन 06/07/1998 से अपास्त हो गए थे ।
जहां तक बागअली बनाम राजस्थान (रिट संख्या-3865/95 ) में दिए गए निर्णय का सवाल है तो यह निर्णय मामले के पक्षकारों के लिए दिया गया था न कि भूमि अवाप्ति से प्रभावित सभी आवंटी काश्तकारों के लिए। क्योंकि अगर ऐसा होता तो निर्णय के अनुसार भूमि अवाप्ति की प्रक्रिया निरस्त हो जाने से भूमि अवाप्ति से प्रभावित सभी अन्य काश्तकारों की खातेदारी भूमि स्वत ही बहाल हो जानी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ तभी तो अब भी इलाके के दर्जनों काश्तकार भूमि अवाप्ति की प्रक्रिया के विरुद्ध अदालतों में केस लड़ रहे हैं। ऐसे में अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट द्वारा भूमि अवाप्ति के सैकड़ों पेंडिंग मामलों में बरसों बाद भी उक्त निर्णय को लागू नहीं कर एक प्रकरण विशेष में उक्त निर्णय को लागू करना भी अपने आप में सवाल खड़ा करता है।
यह भी गौरतलब है कि जब उच्च न्यायालय ने भूमि अवाप्ति के नोटिफिकेशन 4 6 की पालना नहीं होने पर समस्त भूमि अवाप्ति की कार्रवाई को निरस्त कर दिया था तो फिर मंडी समिति द्वारा किस अधिकार से 2005 में मल्लूराम के उक्त रकबे का मंडी समिति से नगरपालिका के नाम इंतकाल दर्ज करवा दिया गया।
कब्जा नहीं फिर भी माना कब्जा
एडीएम ने अपने आदेश में एक अन्य रीट संख्या-3676/1993 मुस्मात बिस्मिल्लाह बनाम राजस्थान सरकार में उच्च न्यायालय के आदेश का हवाला दिया है। एडीएम के अनुसार उच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार निर्णय पारित होने की दिनांक (06/07/1998) के 2 वर्ष के भीतर भूमि अवाप्ति अधिकारी द्वारा भूमि अवाप्ति की कार्यवाही कर कब्जा लिया जाना आवश्यक था लेकिन मंडी समिति ने उक्त भूमि का कब्जा नहीं लिया। साथ ही एडीएम ने अपीलर्थियों के भूमि का कब्जा अपने पास होने के दावे को भी स्वीकार कर लिया। अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट का यह तर्क स्वीकार करना इस मायने में ही गलत है कि उक्त भूमि का इंतकाल पहले मंडी समिति के नाम और सन 2005 में नगरपालिका के नाम दर्ज होना यह साबित करता है कि उक्त भूमि का कब्ज़ा मंडी समिति/नगरपालिका ने ले लिया था । दूसरे सरकारी राज रकबे पर तारबंदी या चारदीवारी कर ही फिजिकल कब्ज़ा नहीं लिया जाता। राजस्व रिकॉर्ड में इंतकाल दर्ज होना ही कब्जे या पजेशन का सबूत है। वास्तव में अपीलार्थियों का भूमि पर कब्जा नहीं था अगर वास्तव में कब्जा होता तो फिर मौके पर मौजूद दूसरे खातेदारो और मकान बनाकर रह रहे लोगों को जबरन हटाने की जरूरत नहीं पड़ती।
खातेदारी बहाल करने के निर्णय में महज इस बात पर कि ‘अपीलर्थियों ने उक्त रकबे पर अपना कब्जा होना अंकित किया है’ को बड़ी आसानी से स्वीकार कर लेना भी निर्णय पर सवाल खड़ा करता है। खातेदारी जारी करने के मामलों में राजस्व विभाग हमेशा ही पटवारी से मौके कब्ज़े और कम से कम 4 वर्ष की जमाबंदी की रिपोर्ट तलब करता है। लेकिन यहां पर एडीएम साहिबा ने बिना किसी रिपोर्ट के महज अपीलार्थी के कहने को कि अब तक अवाप्त रकबे पर उनका कब्जा चला आ रहा है को शाश्वत सत्य मान लिया और खातेदारी बहाल करने का निर्णय दे दिया। अधिकारियों ने यह भी नहीं सोचा कि इस भूमि पर मकान बनाकर रह रहे 2 दर्जन से अधिक परिवारों का क्या होगा?
मंडी समिति और नगरपालिका प्रशासन ने नहीं की ढंग से पैरवी
इस पूरे मामले में मंडी समिति और नगरपालिका की भूमिका भी संदेह के घेरे मे है । क्यूंकि पत्रावली में मंडी समिति और नगरपालिका द्वारा दिए गए जवाब से साफ है कि दोनों पक्षों द्वारा जानबूझकर गोलमाल जवाब पेश किये गये ।

प्रकरण में रेस्पोंडेंट संख्या दो के रूप में मंडी समिति प्रबंधन ने तो खुद स्वीकार कर लिया के बागअली बनाम राजस्थान सरकार के वाद में भूमि अवाप्ति की समस्त कार्रवाई को निरस्त कर दिया था। जबकि खुद मंडी समिति द्वारा ही उच्च न्यायालय के इस निर्णय के बाद भी 2005 में वार्ड नंबर 3 के उक्त रकबे का मंडी समिति से नगरपालिका के नाम इंतकाल दर्ज किया गया था। कहने का तात्पर्य है कि समिति द्वारा जानबूझकर गलत तथ्य को स्वीकार किया गया। यही नहीं मंडी समिति ने भूमि अवाप्ति संबंधी कोई रिकॉर्ड नहीं होने की बात भी अपने जवाब में कही। ऐसे में सवाल यह पैदा होता है कि आखिर भूमि अवाप्ति का रिकॉर्ड कहां गया ? अगर भूमि अवाप्ति का रिकॉर्ड गायब हुआ है तो उसके संबंध में अब तक कोई एफ आई आर क्यों नहीं दर्ज करवाई गई ? क्यों इस मामले में किसी दोषी अधिकारी के विरुद्ध कार्यवाही नहीं की गई ? रिकॉर्ड को फिर से बनाने की प्रक्रिया क्यों नहीं अपनाई गई ? मंडी समिति के विघटन के बाद उक्त रिकॉर्ड नगरपालिका को स्थानांतरित किया गया या नहीं! यदि नहीं किया गया तो क्यों ? यह सारे ऐसे सवाल हैं जो इस पूरे मामले में मंडी समिति की भूमिका पर सवाल खड़े करते हैं
मंडी समिति की तरह ही रेस्पांडेंट संख्या 3 के रूप में नगरपालिका ने भी इस मामले में केवल रिकॉर्ड नहीं उपलब्ध होने की बात कहकर पल्ला झाड़ दिया। यहीं नहीं इस मामले में नगरपालिका ने अपने जवाब में अपीलार्थी के कब्जे होने के दावे का विरोध खुलकर नहीं किया। नगरपालिका की ओर से नहीं कहा गया कि उक्त भूमि पर हमने लोगों को पट्टे भी जारी कर दिए हैं। जिसका सीधा सा अर्थ है कि नगरपालिका प्रशासन भी प्रभावशाली लोगों के दबाव में काम कर रहा था। जिसकी वजह से पट्टा लेने के बावजूद वार्ड 3 के लोगों के लिए संकट पैदा हो गया।
वार्ड-3 के 2 दर्जन से अधिक परिवारों संकट में फँसे
वार्ड नंबर-3 में 50 साल बाद एकाएक खातेदारी बहाल होने के निर्णय से वर्षों से यहां रह रहे लोगों के सामने संकट पैदा हो गया है। इन परिवारों में से कईयों के पास नगरपालिका द्वारा जारी किया गया पट्टा भी है लेकिन अब इन लोगों को यहां से निकलने की धमकी दी जा रही है। यहीं नहीं इन परिवारों में खौफ पैदा करने के लिए इनके घरों के साथ लगती दीवारों के नजदीक पानी भर दिया गया है ताकि इनके कच्चे मकान सीलन से क्षतिग्रस्त हो जाए वहीं इन घरों के आगे की नालियों को भी मिट्टी से भर कर रोक दिया गया है जिससे की ये लोग परेशान हो। ज्यादातर दिहाड़ी मजदूरी करने वाले इन लोगों को ना तो कानून की जानकारी है और ना ही कोई गाइड करने वाला है। भूमाफियाओं से मिलने वाली धमकी से डरे यह लोग अब उपखंड कार्यालय पर धरना दे रहे हैं। लेकिन चांदी के सिक्कों की चमक से अंधे होकर लिखे गए फरमान और प्रभावशाली लोगों के आगे फिलहाल अधिकारी भी नतमस्तक है।
राकेश बिश्नोई ने लगाए आरोप, कहा ‘एक भी परिवार उजड़ने नहीं देंगे ‘
किसान नेता राकेश बिश्नोई ने गत दिनों शहर में पैराफेरी क्षेत्र में हुए जमीनों की बंदरबांट को लेकर पर्दे के पीछे कांग्रेस के कुछ प्रभावशाली नेताओं की भूमिका होने का आरोप सोशल मीडिया में बयान जारी कर लगाया था। इस मामले को लेकर भी राकेश बिश्नोई पीड़ित लोगों के साथ हैं। उनका कहना है कि एक भी परिवार को उजड़ने नहीं दिया जाएगा।
आखिर कौन लोग हैं जो सरकारी भूमि की बंदरबांट में लगे हैं ?
शहर में न केवल वार्ड नंबर 3 में ही बल्कि नए हाउसिंग बोर्ड क्षेत्र से सटे खसरा संख्या 355 / 6 में नगरपालिका के नाम इंतकाल दर्ज भूमि और सदर थाने के सामने सिविल कोर्ट के लिए कभी आवंटन के लिए प्रस्तावित भूमि के भी खातेदार पैदा हो गए हैं। ऐसे में शहर के पैराफेरी क्षेत्र में जमीनों की बंदरबांट के आरोपों की आंच कांग्रेस नेताओं तक पहुंच रही हैं। आज से कुछ माह पूर्व जब शिल्प व माटी कला बोर्ड का उपाध्यक्ष मनोनीत होने पर पुरानी धान मंडी में डूंगरराम गेदर के स्वागत में सभा की गई थी। उस समय कांग्रेस के एक बड़े नेता ने कहा था कि उनके व उनके परिवार के नाम पर 1 इंच जमीन का कब्जा करने का आरोप नहीं है। इसलिए अब सत्ता में भागीदार होने के चलते कांग्रेस नेताओं की जिम्मेदारी है कि इन जमीनों की लूट के खेल को रोककर अपने पाक साफ होने का सबूत पेश करें। आखिर जनता को यह जानने का हक है कि इस खेल के पीछे आखिर कौन है ? वरना पब्लिक है सब जानती है गाना अभी भी लोगों को पसंद है।
–राजेन्द्र पटावरी,उपाध्यक्ष-प्रेस क्लब,सूरतगढ़
बहुत बहुत आभार आपकी कलम को ..सैल्यूट आपको
राजेंद्र पटावरी पत्रकार महोदय ने ईमानदारी का परिचय दिया है तथा नैतिकता के आधार पर एक सच्ची न्यूज़ को प्रकाशित किया इसके लिए तहे दिल से शुक्रिया धन्यवाद इससे गरीब लोगों का भला अवश्य होगा गरीबों की दुआएं आपके साथ हैं