9 दिन में 4.25 करोड़ की वित्तीय स्वीकृति,भ्रष्टाचार का आरोप

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आचार संहिता के दिन भी बांट डाले सवा करोड़

सूरतगढ। जब भी भ्रष्टाचार की बात होती है तब हमारा ध्यान नगरपालिका पर जाता है लेकिन भ्रष्टाचार के मामले में पंचायत समिति भी पीछे नहीं है। नगरपालिका इन दिनों सीवरेज में भ्रष्टाचार को लेकर चर्चा में है, वहीं सूरतगढ़ पंचायत समिति 9 दिन में करीब 4.25 करोड़ का बज़ट सेंकशन करने को लेकर चर्चा में है। इस मामले में समिति के अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा की गई जल्दबाज़ी से बड़े घोटाले की बू आ रही है। पूरे मामले की निष्पक्ष जांच हो तो कई ऐसे चेहरे बेनकाब हो सकते है जिन्होंने भ्रष्टाचार की बहती गंगा में हाथ धोए।

2 साल से पड़े फंड को कुछ ही दिनों में किया जारी

सूरतगढ़ पंचायत समिति के पास 14वें और 15 वें केंद्रीय वित्त आयोग और 5वें व छठे राज्य वित्त आयोग का करीब 7 से 8 करोड़ का फंड डेढ़ साल से पड़ा था। लेकिन प्रधान के चुनाव नहीं होने से यह फंड उपयोग में नहीं आ रहा था। क्यूंकि विकास कार्यों के लिए बज़ट आवंटन समिति की साधरण सभा की मीटिंग में प्रस्ताव लाकर ही सम्भव है। ऐसे में समिति के अधिकारियों की गिद्ध दृष्टि लंबे समय से इस फंड पर थी।

पूर्व बीडीओ अभिमन्यु चौधरी के एपीओ होने के बाद रामप्रताप गोदारा के कार्यभार संभालतें ही इस फंड की बंदरबांट की कोशिशें शुरू हो गई थी । आखिरकार अधिकारीयों नें मिलीभगत कर राज्य सरकार द्वारा जारी एक सर्कुलर की आड़ में इस फंड को ठिकाने लगाने का प्लान बना लिया गया। इस प्लान के तहत समिति के अधिकारियों और बाबुओं नें 8 अक्टूबर 21 को 94 लाख, 27 अक्टूबर 21 को करीब 3:25 करोड़ रुपए और 10 नवंबर 21 को करीब 2 करोड़ 40 लाख रुपए के निर्माण कार्यों के प्रस्ताव बनाकर बजट स्वीकृति की प्रक्रिया शुरू कर दी। क्योंकि प्रधान नहीं होने पर बजट स्वीकृति के लिए पहले जिला परिषद सीईओ से अनुमति लेनी पड़ती है। उसके बाद  प्रशासनिक, तकनीकी और  फिर वित्तीय स्वीकृति लेने के बाद ही बजट सैंक्शन किया जा सकता है। आमतौर पर इस प्रक्रिया में कम से कम 2 से 3 महीने का समय लगता है। लेकिन समिति के अधिकारीयों और बाबूओं नें ऑफिस में बैठकर की प्रशासनिक,तकनीकी और वित्तीय स्वीकृति जारी कर दी।

शनिवार को जारी की 17 कार्यों की वित्तीय स्वीकृति

इस मामले में समिति प्रशासन इतना उतावला था कि लगातार दो शनिवार यानि की 13 व 20 नवंबर 2021 को समिति कार्यालय को खोला। नतीजा ये रहा कि बाबुओं ने 16 नवंबर से 24 नंबर की 9 दिन की अवधि में कुल 4.25 करोड़ के 67 कार्यों की पत्रावली पूर्ण कर वित्तीय स्वीकृति जारी करते हुए प्रथम किस्त भी संबंधित पंचायतों के अकाउंट में ट्रांसफर कर दी। इसमें भी 20 नवंबर को 17 और  23 नवंबर को 16 कार्यों की वित्तीय स्वीकृति जारी की गई।

आचार संहिता के दिन भी जारी की 19 वित्तीय स्वीकृतियाँ

यूँ तो समिति के अधिकारियों और बाबू ने फंड की बंदरबांट के लिए दिन-रात एक किया हुआ था। लेकिन 24 नवंबर को चुनाव आयोग ने अचानक श्रीगंगानगर जिले में पंचायत चुनाव की घोषणा करते हुए आचार संहिता लगा दी। क्यूंकि आचार संहिता के दौरान विकास कार्यों की घोषणा व बजट की स्वीकृति पर रोक लग जाती है। ऐसे में अपनी योजना को फेल होते देख समिति के अधिकारियों ने आचार संहिता को धता बताते हुए इस दिन भी 19 वित्तीय स्वीकृति जारी कर दी। समिति से जुड़े सूत्रों की माने तो 24 नवंबर को आचार संहिता के  लगने के दिन भी रात 12:00 बजे तक समिति का कार्यालय खुला था।

ई-स्वराज और ई-पंचायत पोर्टल की जांच से हो सकता है खुलासा

पंचायती राज विभाग में विभिन्न योजनाओं में मिले फंड का ट्रांसफर दो  पोर्टलों  के माध्यम से किया जाता है। केंद्रीय वित्त आयोग से मिले फंड का भुगतान ही स्वराज पोर्टल से किया जाता है। वहीं राज्य वित्त आयोग से मिले फंड का ट्रांसफर ई पंचायत पोर्टल से होता है। यदि मामले में दोनों पोर्टल में 24 नवंबर को हुए ट्रांजैक्शन की जांच की जाए तो यह खुलासा हो सकता है कि आचार संहिता लगने पर शाम करीब चार-पांच बजे के बाद किस-किस पंचायत को कितने बजे और कितना फंड ट्रांसफर किया गया ?

आचार संहिता लगने के चलते कामयाब नहीं हुए मंसूबे

पंचायत समिति के सूत्रों की माने तो पंचायतों को विभिन्न विकास कार्यों के लिए धनराशि उपलब्ध कराने के बदले कमीशन का खेल खेला गया। इस कमीशन की राशि करीब 5% बताई जा रही है। कमीशन के इस खेल में समिति के अधिकारी और बाबू कामयाब होने ही वाले थे लेकिन अचानक लगी आचार संहिता ने इनके अरमानों पर पानी फेर दिया। तमाम कोशिशों के बावजूद आचार संहिता लगने के बाद तक समिति के अधिकारी केवल करीब 4:25 करोड़ रुपए की ही वित्तीय स्वीकृति जारी कर पाए। यदि एक दो दिन का समय और मिल जाता तो समिति के पास पड़े सारे फंड का आवंटन हो जाता।

सर्कुलर की आड़ में हुआ खेल

कोरोना से पंचायती राज चुनाव की प्रक्रिया पूर्ण नहीं होने के चलते सरकार ने पंचायती राज संस्थाओं में आवश्यक विकास कार्य बाधित ना हो इसके लिए एक सर्कुलर जारी किया था। इस सर्कुलर के तहत चुनाव नहीं होने तक पंचायत स्तर पर ग्राम विकास अधिकारी, पंचायत समिति स्तर पर बीडीओ और जिला परिषद स्तर पर सीईओ को प्रशासक नियुक्त करते हुए कुछ वित्तीय शक्तियां भी प्रदान की गई थी। पंचायत समिति में पड़े फंड की बंदरबांट करने के लिए सूरतगढ़ पंचायत समिति के अधिकारियों ने इसी सर्कुलर को हथियार बनाया। लेकिन हकीकत यह है कि यह सर्कुलर केवल आवश्यक कार्यों के लिए जारी किया गया था, ना कि फंड की बंदरबांट के लिए।

पूर्व बीडीओ की खिलाफत करने वाले सरपंचों पर मेहरबानी

इस पूरे प्रकरण की खास बात यह है कि पूर्व में जो सरपंच और सरपंच प्रतिनिधि BDO अभिमन्यु चौधरी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर उनकी खिलाफत कर रहे थे। उनसे जुड़ी पंचायतों पर वीडियो रामप्रताप गोदारा की खास मेहरबानी रही। नतीजा पंचायत समिति द्वारा जारी वित्तीय स्वीकृतियों में अच्छा खासा हिस्सा इन पंचायतों को मिला है।

नवनिर्वाचित प्रधान नें खोया एक मौका

पंचायत समिति के फंड की इस बंदरबांट से सबसे अधिक नुकसान कांग्रेस और उनके स्थानीय नेताओं को हुआ है। क्योंकि अगर बीडीओ रामप्रताप गोदारा अगर जल्दबाजी नहीं करते तो एक महीने बाद ही पंचायत समिति को नया प्रधान मिलना तय था। ऐसे में अगर नवनिर्वाचित प्रधान इस फंड का पंचायतों में वितरण करते तो विकास कार्यों का क्रेडिट नए प्रधान को मिलता और उनकी लोकप्रियता बढ़ती। लेकिन पंचायत समिति के चालाक अधिकारियों और बाबुओं ने उन्हें इस उपलब्धि से दूर कर दिया।

प्रधान हज़ारीराम मील और हनुमान मील करवाए जांच

नगरपालिका की तरह पंचायत समिति में जिस तरह से भ्रष्टाचार के मामले सामने आ रहे हैं। उससे  स्थानीय कांग्रेस नेताओं की छवि लगातार धूमिल हो रही है। ऐसे प्रधान हज़ारीराम मील और आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के संभावित दावेदार युवा हनुमान मील को इस और ध्यान देने की जरूरत है।

मामले का खुलासा करते सूचना के अधिकार में मिले दस्तावेज

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