सीवरेज के 1.46 करोड़ के भुगतान से बेनक़ाब हुए कई चेहरे,

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शिकायतकर्ताओं नें बेशर्मी से सेफ्टी टैंक को बना दिया सौक पिट

सूरतगढ़। सूरतगढ़ नगरपालिका पिछले कुछ दिनों से सीवरेज कंपनी मोंटीकार्लो को 1.46 करोड रुपए के भुगतान में भारी भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी है। वही भुगतान के लिए दिए गए सहमति पत्र ने शिकायतकर्ताओं के चेहरे से शराफत का नकाब खींच लिया है। इस मामले को लेकर कांग्रेस के ही ब्लॉक अध्यक्ष परसराम भाटिया व पूर्व नपा चेयरमैन बनवारीलाल मेघवाल मोर्चा खोले हुए हैं। दोनों नेता इसे नगरपालिका के इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला बता रहे हैं। इन नेताओं का कहना है कि पहली बार बिना काम करवाए हुए इतनी बड़ी राशि का भुगतान किया गया है। वह भी तब जब पिछले 3 सालों से अधिक समय से भुगतान पर रोक लगी हुई थी। दोनों नेता पिछले 15 दिनों से भुगतान संबंधी पत्रावली की नकल की मांग कर रहे हैं। लेकिन अब तक दोनों नेताओं को पालिका प्रशासन की ओर से प्रतिलिपि उपलब्ध नहीं कराई गई है। जबकि परसराम भाटिया स्वयं पार्षद है वहीं पूर्व चेयरमैन बनवारी लाल की पत्नी विमला मेघवाल भी पार्षद है। ऐसे में पालिका बोर्ड के सदस्यों को ही भुगतान संबंधित पत्रावली नहीं दिए जाने से भुगतान को लेकर उठ रहे आरोप अपने आप पुख्ता होते जा रहे हैं।

हालांकि परसराम भाटिया को धरने के बाद पत्रावली का अवलोकन करवाया गया था लेकिन पत्रावली की नकल के लिए भाटिया भी चक्कर काट रहे हैं। दोनों नेता इस प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच की मांग कर रहे हैं। देखना यह होगा कि पत्रावली की नकल मिलने पर दोनों नेता आगे क्या कदम उठाते हैं।

सेप्टिक टैंक की जगह सौक पिट के भुगतान पर सहमति, शिकायतकर्ताओं की नीयत पर सवाल ?

सीवरेज कंपनी को भुगतान के मामले ने जिस तरह से शिकायतकर्ताओं नें तीन साल बाद एकाएक सीवरेज कंपनी को रोका गया भुगतान करने के लिए सहमति दी है। उससे शिकायतकर्ताओं की नीयत पर सवाल खड़े हो रहे हैं ! शिकायत कर्ताओं के अचानक हृदय परिवर्तन से हर कोई हैरान है। इस मामले मे पूर्व वाइस चेयरमैन व ठेकेदार विनोद पटनी, कॉमरेड लक्ष्मण शर्मा और मदन ओझा,पार्षद सावित्री स्वामी, सामाजिक कार्यकर्ता विमल राजपूत ने 27 जून 2018 को मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर सीवरेज निर्माण में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था।

अपने पत्र में शिकायतकर्ताओं ने आरोप लगाया कि सीवरेज निर्माण के दौरान 4763 सेप्टिक टैंक (कुई) को खाली और  समतल करने के नाम पर पालिका के प्रशासनिक अधिकारियों के अभियंताओं ने 1 करोड़ 60 लाख 98 हजार 942 रुपए का भुगतान कर दिया है। जबकि माप पुस्तिका में कहीं पर भी सेप्टिक टैंक तोड़ने की कोई जगह दर्ज नहीं है और ना ही शहर में सेप्टिक टैंक और कुई खाली हुई है। शिकायत पत्र में सीवरेज निर्माण संबंधित 2  अन्य बिंदुओं पर भी शिकायत की गई थी। इस शिकायत के बाद राज्य सरकार के द्वारा निर्देश पर रूडसीको द्वारा गठित कमेटी ने मौके का निरीक्षण किया। हालांकि कमेटी ने मौके पर सेफ्टी टैंक तोड़ना नहीं पाया लेकिन इसके बावजूद कमेटी ने सीवरेज कंपनी को बचाने के लिए गोलमोल रिपोर्ट करते हुए निकाय को ही सत्यापन करने के बाद भुगतान करने की रिपोर्ट कर दी। जिसके बाद यह भुगतान लटक गया। कंपनी के भुगतान में पिछले 3 सालों से मुख्यमंत्री को की गई यह शिकायत रोड़ा बनी हुई थी।

लेकिन अब एकाएक 3 साल के बाद 5 शिकायतकर्ताओं में से ठेकेदार विनोद पटनी, कॉमरेड मदन ओझा व लक्ष्मण शर्मा का अचानक ह्रदय परिवर्तन हो गया है। तीनो शिकायतकर्ताओं ने गत दिनों सीवरेज कंपनी को भुगतान करने के लिए सहमति पत्र दे दिया। इस सहमति पत्र में  शिकायतकर्ताओं ने सीवरेज कंपनी को भुगतान के लिए अपनी ही शिकायत को झूठा साबित करते हुए जो तर्क दिए हैं वह हैरान करने वाले हैं।

सहमति पत्र में तीनों शिकायतकर्ताओं ने कहा है कि सीवरेज कंपनी द्वारा सेप्टिक टैंक तो तोड़कर समतल  नहीं किये लेकिन सोक पिट तोड़कर समतल किए हैं। । अब सोक पिट क्या बला है यह भी हम आपको  बता देते हैं, सेफ्टी टैंक की बदबू कम करने के लिए गली में बनाए जाने वाले गड्ढों को सोक पिट कहा जाता है। इन गड्डों में कच्ची नाली के जरिए सीवरेज का गंदा पानी छोड़ा जाता है। सहमति पत्र देने में शिकायतकर्तओं ने किस तरह से अपना जमीर सीवरेज कंपनी को गिरवी रख दिया इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि सहमति पत्र में शिकायतकर्ताओं ने लिखा है कि शहर में सेप्टिक टैंक की जगह सोक पिट बनाने का प्रचलन है और सीवरेज  कंपनी द्वारा इन्ही सोक पिट तोड़ कर समतल किया गया है। इसलिए अज्ञानतावश उन्होंने सेप्टिक टैंक नही तोड़ने और समतल करने की शिकायत कर दी। सहमति पत्र में शिकायतकर्ताओं ने लिखा है कि जिला कलेक्टर द्वारा गठित समिति द्वारा सौक पिट को तोड़ने व समतल करने के सत्यापन से सहमत हैं। इसलिए उनकी शिकायत को निरस्त कर सीवरेज कंपनी को रोका गया भुगतान किया जाता है तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।   

शिकायतकर्ताओं के सहमति पत्र से पालिका भी सवालों के घेरे में ?

सहमति पत्र पर गौर किया जाये तो सहमति पत्र पर शिकायतकर्ता विनोद पाटनी के हस्ताक्षर व मोहर तो सही प्रतीत होती है । लेकिन दूसरे शिकायतकर्ताओं कॉमरेड लक्ष्मण शर्मा व मदन ओझा के हस्ताक्षर को देखने से ऐसा लगता है कि दोनों के किसी अन्य पेज पर किए गए हस्ताक्षरों को स्केन कर या फिर सहमति पत्र पर रखकर फोटोकॉपी की गई है। जिसका अर्थ निकलता है कि दोनों नेताओं के सहमति पत्र पर कूट रचित हस्ताक्षर किए गए हैं। लेकिन यहीं से सवाल यह भी खड़ा होता है कि अगर दोनों नेताओं ने सहमति पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं तो आखिर में चुप क्यों हैं ? या फिर इन नेताओं ने भविष्य में होने वाली किसी परेशानी से बचने के लिए अप्रत्यक्ष सहमति देते हुए कूटरचित हस्ताक्षरों के इस्तेमाल की सहमति दे दी है ? पत्र सहमति पत्र पर दिनांक नहीं होना बड़े सवाल खड़े करता है। बहरहाल वजह जो भी रही हो इस पूरे प्रकरण नें शिकायतकर्ताओं को आम जनता की नजर में जरूर नंगा कर दिया है।

पांच की जगह तीन से ही क्यों लिया गया सहमति पत्र ?

इस पूरे प्रकरण में नगरपालिका प्रशासन की मंशा और कार्यप्रणाली पर इसलिए भी सवाल खड़े होते हैं क्योंकि मूल शिकायत 5 व्यक्तियों द्वारा की गई थी। जिनमें ठेकेदार विनोद पाटनी, कॉमरेड मदन ओझा व लक्ष्मण शर्मा के अलावा पूर्व पार्षद सावित्री स्वामी व सामाजिक कार्यकर्ता विमल राजपूत भी शामिल थे। लेकिन  नगरपालिका नें तीन शिकायतकर्ताओं का सहमति पत्र लेकर सीवरेज कंपनी को डेढ़ करोड़ का भुगतान कर दिया है। पालिका नें आखिर दो अन्य  व्यक्तियों की आपत्ति को क्यो नजरअंदाज कर दिया ? आखिर क्यों शेष दोनों शिकायतकर्ताओं  का सहमति पत्र लेने की जरूरत नहीं समझी गयी ? कुल मिलाकर इस पूरे प्रकरण में झोल ही झोल है ! जिसका खुलासा निष्पक्ष जांच से हो सकता है।

राजेंद्र पटावरी

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