प्रभावशाली लोगों के विरुद्ध कार्रवाई करने से डर रहा प्रशासन
एसडीएम मनोज मीणा कर रहे मामले की जांच

सूरतगढ़ में कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए धारा -144 की पालना को लेकर प्रशासन और पुलिस का दोहरा रवैया सामने आ गया है। धारा 144 का उल्लंघन यदि कोई आम आदमी करता है तो आनन फानन में ही मामला दर्ज कर लिया जाता है। लेकिन दूसरी ओर धारा 144 का मख़ौल किसी प्रभावशाली व्यक्ति द्वारा उड़ाया जाता है तो फिर पुलिस और प्रशासन को सांप सूंघ जाता है। सूरतगढ़ में लॉकडाउन के दौरान धारा 144 के उल्लंघन के दो मामलों में पुलिस और प्रशासन की अलग अलग कार्रवाई से इस बात को आसानी से समझा जा सकता है।
- सबसे पहले बात करते हैं गोपालसर गांव में एक व्याख्याता बीरबलराम रैगर के ग्रामीणों के साथ चर्चा करने के वीडियो के वायरल होने की। इस मामले में शिकायत के बाद वीडियो वायरल होने पर एसडीएम मनोज मीना ने नायब तहसीलदार को मामले की जांच कर रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया था । नायब तहसीलदार ने केवल 2 दिन में ही मामले की जांचकर रिपोर्ट पेश कर दी । बाद में इसी रिपोर्ट के आधार पर राजियासर थाना पुलिस ने 25 अप्रैल को व्याख्याता के विरुद्ध मामला दर्ज कर लिया ।

गोपालसर में व्याख्याता द्वारा धारा 144 तोड़ने के वायरल हुए फोटो

अब बात करते है दुसरे मामले की । यह मामला है सूरतगढ़ नगरपालिका में 31 मार्च को चेयरमैन ओम कालवा की मौजूदगी में ईओ लालचंद सांखला के विदाई समारोह का । इस विदाई समारोह मैं सैकड़ों लोगों को इकट्ठा कर लॉकडाउन की धज्जियां उड़ाई गई, जिसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई थी। सूरतगढ़ में जहां एसडीएम और पुलिस उपअधीक्षक जैसे पुलिस और प्रशासन के आला अधिकारी रहते हैं उन्ही की नाक के नीचे विदाई समारोह में सैकड़ों लोग इकट्ठा होकर धारा 144 की धज्जियां उड़ाते रहे, लेकिन अधिकारियों की आँखे नही खुली। इसके बाद किसी जागरूक व्यक्ति ने इस मामले की शिकायत एडीएम अशोक मीणा से की तो एडीएम ने शिकायत जांच के लिए एसडीएम मनोज मीणा को भेज दी। लेकिन करीब तीन सप्ताह से ज्यादा का समय गुजरने के बाद भी एसडीएम साहब की जांच पूरी नही हुई है । वैसे एसडीएम साहब को महाराणा प्रताप चौक पर प्रेस के लोगो के रुकने मात्र से लॉकडाउन का उलंघन का खतरा लगता है और साहब इसके लिए ट्रैफिक इंचार्ज को धमकाने से नही चूकते है । ऐसे में नगरपालिका सभागृह में सैंकड़ों लोगों की मौजूदगी में हुए विदाई समारोह से धारा 144 ओर लॉकडाउन की धज्जियां उड़ाने की वायरल फोटो और वीडियो पर अब तक एसडीएम साहब चुप्पी से कई सवाल खड़े होते है ?
प्रशासन की भूमिका पर खड़े हो रहे गंभीर सवाल ?
दोनों मामलों में प्रशासन की भूमिका को लेकर गंभीर सवाल खड़े होते हैं। पहला सवाल यह है कि व्याख्याता का मामला जहाँ सामान्य मानवीय भूल का प्रतीत होता है ।क्यूकि लॉकडाउन में मानवीय स्वभाव के चलते कोई भी व्यक्ति आमतौर पर अपने घर के बाहर बैठ जाता है और आस पास के लोगों से बात कर लेता है । इसका मतलब यह नही है कि वह जान बुझकर कानून तोड़ रहा है । फिर भी प्रशासन व्याख्याता के विरुद्ध यह मामला दर्ज़ करवाने में देर नही करता है । जबकि विदाई समारोह के मामले में ईओ लालचंद सांखला और चेयरमैन ओम कालवा जोकि खुद लोकसेवक है और जिन पर लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग की पालना करवाने की जिम्मेदारी थी , ने ही सत्ता के नशे में जानबूझकर सेंकडों लोगों को इकट्ठा कर धारा 144 व सोशल डिस्टेंसिंग के साथ साथ आपदा प्रबन्धन अधिनियम की धज्जियां उड़ाई । कार्यक्रम में चेयरमैन कालवा सहित अधिकांश लोगों ने मास्क भी नही पहन रखा था । ऐसे में सेंकडों लोगों की जान को संकट में डालने के दोषी इन लोकसेवकों के विरुद्द प्रशासन अब तक चुप क्यों है ? दूसरा सवाल है कि प्रशासन ने अपनी जांच में व्याख्याता के घर में बनी आटा चक्की के बाहरी दरवाजे के पास जहां पर वह वायरल वीडियो में बैठा दिखाई दे रहा है को सार्वजनिक स्थान माना है। जिस पर सवाल उठ सकता है। परंतु दूसरे मामले में नगरपालिका सभागार जहां पर ईओ सांखला का विदाई समारोह आयोजित हुआ, निर्विवाद रूप से सार्वजनिक स्थल है। फिर प्रशासन धारा 144 के उल्लंघन करने की रिपोर्ट क्यों नही कर रहा है ? तीसरा सवाल यह है कि व्याख्याता मामले में प्रशासन ,सात – आठ लोगों के इकट्ठे होने को आसानी से धारा 144 का उल्लंघन मान लेता है। जबकि उनमें से कुछ लोगों के सब्जी की दुकान पर खरीदारी के लिए भी आए होने की संभावना है। वहीं दूसरी और नगरपालिका सभागार में आयोजित कार्यक्रम, जहाँ सैकड़ों लोग निर्विवादित तौर पर विदाई समारोह में शामिल हुए को, धारा 144 का उल्लंघन स्वीकार करने में प्रशासन को पसीना क्यों आ रहा है ?
राजनीतिक रंजिश का औजार बना धारा -144 का उलन्घन
गोपालसर में व्याख्याता बीरबलराम रैगर पर धारा 144 तोड़ने का मामला प्रथम दृष्टया राजनीति से प्रेरित लगता है। क्योंकि व्याख्याता का परिवार बीजेपी की विचारधारा से प्रभावित बताया जाता है। व्याख्याता बीरबल राम की पत्नी ने सरपंच पद के लिए चुनाव लड़ा था । इस चुनाव में बीरबल राम की पत्नी कुछ वोटों से हार गई थी। ऐसे में इस बात की चर्चा भी है कि सत्ता पक्ष के दवाब में प्रशासन ने व्याख्याता मामले में तुरंत कार्रवाई कर दी । जबकि विदाई समारोह का मामला क्यूंकि चेयरमैन ओम कालवा से सीधा जुड़ा है जो की सत्तापक्ष की पार्टी कांग्रेस के है । सम्भवत यही वजह है कि प्रशासन लॉक डाउन के खुलेआम उलंघन के इस मामले की जांच दबाये बैठा है । इसके अलावा यह भी महत्वपूर्ण है कि जिन फोटोस और वीडियो के आधार पर यह मामला दर्ज किया गया है। उनको देखने से प्रतीत होता है कि मौके पर करीब आधा दर्जन से अधिक व्यक्ति मौजूद है। हालांकि 5 या 5 से अधिक व्यक्ति के इकट्ठा होने पर धारा 144 लागू होती है। लेकिन यह बात सभी जानते कि अगर इस पैमानेे को इसी सख्ती से अगर सूरतगढ़ में ही लागू किया जाए तो धारा 144 के उल्लंघन के मामलों का अंबार लग जाएगा। वैसे सूरतगढ़ में नेशनल हाईवे के पास रोजाना एक बड़े अधिकारी धारा 144 का मखौल उड़ाते देखे जा सकते हैं । लेकिन एसडीएम साहब वहां का रुख नही करते । शायद एसडीएम साहब को भी हिंदी की ये उक्ति याद होगी कि ‘ समरथ को नहीं दोष गोसांई’ ।
विधायक कासनिया और भाजपा नेताओं की चुप्पी से खड़े हो रहे सवाल
नगरपालिका के ईओ लालचंद सांखला के विदाई समारोह में लॉकडाउन के उल्लंघन के मामले में भाजपा नेता और खासकर विधायक रामप्रताप कासनिया की चुप्पी भी सवालोंं के घेरे में है। सभी को याद होगा कभी कासनिया ने विधानसभा मेंं ईओ लालचंद सांखला के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। लेकिन उसके बाद से लालचंद सांख्ला पर लगातार भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे पर विधायक कासनिया ने कभी आवाज नहीं उठाई।कुछ लोगों को लगता है कि शायद लालचंद सांखला विधायक कासानिया को साधने में सफल हो गए थे और इसी वजह से सांखला के लॉकडाउन तोड़ने के मामले में अब तक कासनिया ओर उनकी भाजपा ने कार्रवाई की मांग करने की जहमत नही उठाई है। बहरहाल गला फाड कर नगरपालिका के भ्रष्टाचार का रोना रोने वाले नेताओं की भ्रष्टाचार और जनता के मुद्दों पर चुप्पी निराश करती है । कासनिया जी को देखकर किसी शायर की यह पंक्तियां याद आती हैं।
” ये और बात है के उससे वफ़ा हो ना सकी…
पर जो उसने किये थे…वो वादे कमाल थे…”
राजनितिक दवाब में एसडीएम मनोज मीना
बहरहाल अब तक एसडीएम साहब, जिन पर जिला कलेक्टर के प्रतिनिधि के रूप में धारा 144 की पालना करवाने का दायित्व था ,उनकी कलम की स्याही प्रभावशाली लोगों के विरुद्ध रिपोर्ट करने में सूखती नजर आ रही हैं । फिर भी तमाम तरह की नाउम्मीदी के बावजूद उम्मीद की जानी चाहिए कि एसडीएम साहब ईओ के विदाई समारोह के मामले में लोकडाउन के उल्लंघन की रिपोर्ट पेश कर अपनी प्रशासनिक ईमानदारी का सबूत देंगे ?