नगरपालिका में बदलाव पर टिका कांग्रेस का भविष्य ! बौने बरगद को हटाने की तैयारी ?

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नगरपालिका में बदलाव पर टिका कांग्रेस का भविष्य ! बौने बरगद को हटाने की तैयारी ?

सूरतगढ़ नगरपालिका में बदलाव की चर्चा

सूरतगढ़। परिवर्तन सृष्टि का शास्वत नियम है। नए साल की शुरुआत में विजयनगर नगरपालिका में परिवर्तन की शुरुआत हो चुकी है। सूरतगढ़ नगरपालिका में भी पिछले कुछ समय से ऐसे ही परिवर्तन की उम्मीद जगी है। विजयनगर की तरह ही सूरतगढ़ में वर्तमान चेयरमैन मास्टर ओम कालवा की कार्यप्रणाली से भाजपा व निर्दलीय ही नहीं कांग्रेस के भी अधिकांश पार्षदों में नाराजगी है। स्थानीय कांग्रेस नेतृत्व भी मास्टरजी से कुछ ख़ास खुश नहीं हूं तो मास्टर कालवा के तानाशाह रवैये और षड्यंत्रकारी सोच के चलते पालिका के कर्मचारियों, प्रेस और आम जनता में भी भारी नाराजगी है। मास्टरजी के कुंठित दिमाग़ ,अहंकार और अधिनायकवादी रवैये ने शहर में कांग्रेस की अर्थी तैयार कर दी है। कांग्रेस की अंतिम यात्रा की तैयारी में प्रधानमंत्री मोदी की तरह मास्टरजी भी दिन रात एक किए हुए हैं। 3 साल के मास्टरजी के कार्यकाल की कोई ऐसी उपलब्ध नहीं है जिसे कांग्रेस नेता जनता की अदालत में बता सके। हां मास्टरजी के धतकर्मों की फेहरिस्त इतनी लंबी जरूर है कि जनता की अदालत में एक बार फिर कांग्रेस नेताओं शर्मसार होना पड़े तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। मास्टरजी के राज में पट्टों, नामांतरण और निर्माण स्वीकृति सहित विभिन्न कार्यों के लिए जिस तरह जनता की चप्पले घिसवा दी गई उसे लोग भूलने वाले नहीं है। सरकार द्वारा आमजन को पट्टा देने के लिए चलाए गए प्रशासन शहरों के संग अभियान में मास्टरजी ने पट्टों के लिए शहर के आम ही नहीं खास लोगों की भी नाक रगडवा दी। अंदाजा आप इस उदाहरण से लगा सकते हैं कि चेयरमैन का चुनाव जीतने के बाद मास्टरजी का कांग्रेस के जिस नेता ने अपने घर पर सबसे पहले स्वागत किया था मास्टरजी उन्हें भी महीनों से पट्टे के लिए चक्कर कटवा रहे हैं। वह भी तब जबकि नेताजी मील परिवार के नजदीकी होने के साथ ही समाज के सम्मानित व्यक्ति और प्रतिष्ठित व्यापारी भी है। वैसे मास्टरजी के राज में पट्टा पीड़ितों की सूची में पूर्व पालिका चेयरमैन सोहनलाल रांका, गौरी शंकर सोनगरा के साथ साथ कई पत्रकार भी शामिल है। कहने का मतलब यह है ‘ऐसा कोई सगा नहीं जिसको हमने ठगा नहीं’ की तर्ज़ पर कि शहर में ऐसा कोई भी नहीं है जिसको मास्टरजी के राज में आराम से पट्टा मिल गया हो।

वैसे मास्टरजी के ऐसा करने की असली वजह भी आपको आज बता ही देते हैं। बात दरअसल यह है कि बचपन से ही मास्टरजी मनुवाद के बारे में पढ़ते रहे हैं। दलितों पर सवर्णों के अत्याचार के इतिहास की कहानियां मास्टरजी अंतर्मन में गहरे पैठ बना चुकी है। मास्टरजी के अंतर्मन में बैठा शख्स अब उस इतिहास को बदल देना चाहता है। यही वजह है कि खास वर्ग के सम्मानित व्यक्तियों की नाक रगड़वाई में इस शख्स को बहुत आत्मिक खुशी मिलती है। अपनी इसी मानसिकता के चलते मास्टरजी ने पालिका के विभिन्न विभागों में अधिकांश प्रमुख पदों पर योग्यता और अनुभव की अनदेखी कर मनुविरोधियों को वरीयता दी। परंतु चेयरमैन कालवा नहीं जानते कि ऐसा कर वे कहीं ना कहीं दोनों वर्गो के बीच एक दूसरे के सम्मान को कम कर दूरियां ही बढ़ा रहे है। वैसे जब किसी व्यक्ति को सामने वाले को परेशान करने में खुशी मिले है तो अपने पद की वजह से विशाल दिखने वाले बौने बरगद की मानसिकता का अंदाजा सहज ही आप लगा सकते है।

मास्टरजी की इसी कुंठित सोच का एक शिकार वार्ड-31 के कांग्रेस के पार्षद बसंत बोहरा भी है। बसंत बोहरा पिछले 3 साल से पुरानी आबादी स्कूल चौराहे पर ब्रेकर लगाने की मांग कर रहे हैं। स्कूल होने के चलते चौराहे पर बच्चों का जमावड़ा लगा रहता है जिससे चौराहे पर तेज़ गति से चल रहे वाहनों से हर समय हादसों की आशंका बनी रहती है। मास्टरजी की बेशर्मी का आलम यह है कि पार्षद बोहरा ने अपनी इस मांग के लिए पालिका कार्यालय में टीन कनस्तर भी पीटे पर कया मजाल है मास्टरजी पर रत्ती भर भी फर्क पड़ जाए। मजे की बात है कि यह सब तब है जबकि इसी स्कूल में मास्टर जी ने बरसों तक शिक्षक के रूप में अपनी सेवाएं दी हैं।

मास्टरजी के राज में शहर की सफाई व्यवस्था और सड़कों-चौराहों-पार्को की हालत के बारे में तो शायद कुछ बताने की जरूरत नहीं है। तो अवैध अतिक्रमण और भ्रष्टाचार के मामले में भी मास्टरजी नए प्रतिमान स्थापित कर चुके है। इन सबके अलावा पालिका की बैठकों में लगातार विपक्ष के विधायक को अपमानित और पार्षदों के साथ मिलकर विरोध करने वाले पार्षदों के साथ जिस तरह का दुर्व्यवहार मास्टरजी ने किया है उससे शिक्षित व्यक्ति के सुसंस्कृत होने का शहरवासियों का भरम दूर हो चुका है।

    कुल मिलाकर मास्टरजी के तीन साल का कार्यकाल विकास और विश्वास की जगह नगरपालिका में अव्यवस्था,अतिक्रमणों और अनावश्यक विवादों का कार्यकाल बनकर रहा गया है। लेकिन ‘पूत के पांव पालने में ही नजर आ जाते हैं’ कहावत से अनजान कांग्रेस नेताओं का बहुत देर से मास्टरजी के विकास पुरुष होने का भरम खत्म हुआ है। कांग्रेस के युवा नेताओं ने अब 3 साल बाद नगरपालिका में फैली गंदगी की सफाई शुरू की है। परन्तु मील परिवार के एक बुजुर्ग नेताजी का यह जानते हुए भी कि ‘प्रेम दुखों का कारण है’ अभी भी इस बौने बरगद के प्रति सॉफ्ट कार्नर है। बुजुर्ग नेता के इस प्रेम को देखकर एक पुरानी कहावत याद आती है ‘हँसा थे सो उड़ गये कागा भये दीवान’

बहरहाल कांग्रेस के युवा नेताओं की इस सारी कवायद का कोई फायदा चेयरमैन ओम कालवा के पद पर रहते हुए स्थानीय कांग्रेस को मिलता दिखाई नहीं दे रहा। क्यूंकि आम जनता अभी तक इस कवायद को मील परिवार का खुद को चेयरमैन कालवा के कामों से अलग बताने का राजनीतिक स्टंट मान रही है। इसलिए मील परिवार को अगर वास्तव अपने राजनीतिक भविष्य की जरा सी भी फ़िक्र है बिना देर किये नगरपालिका से इस बोने बरगद को हटाकर नये वट वृक्ष के बीज बोने चाहिए। वरना इतिहास गवाह है बौनो के बसाए  ‘लिलीपुट’ शहर आग की भेंट ही चढ़े है। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह इतिहास न दोहराया जाये। वैसे भी परिवर्तन सृष्टि का शाश्वत नियम है और विजयनगर से परिवर्तन की शुरुआत हो चुकी हैं।

राजेंद्र पटावरी, उपाध्यक्ष-प्रेस क्लब, सूरतगढ़।

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