मास्टरजी नें आख़री सियाशी पारी में दिया साफ संदेश : हम नहीं सुधरेंगे !

HOME OPENION

शहर की सफाई व्यवस्था,विकास कार्य हुए ठप्प, नहीं बंटे पट्टे

सूरतगढ़। किसी जमाने में एक फिल्म आई थी ‘हम नहीं सुधरेंगे’। नगरपालिका चेयरमैन ओम कालवा की कार्यप्रणाली को देखकर यह टाइटल बरबस ही याद आ जाता है। एक बार कुर्सी हाथ से जाने के बाद बहुत कम लोग होते हैं जिन्हें फिर से सत्ता नसीब होती है। मास्टरजी इस मामले में खुशनसीब रहे हैं कि उन्हें तीसरी बार जनता की सेवा का मौका मिला है। ये और बात है कि मास्टरजी अपने कार्यकाल का अधिकांश हिस्सा राजनीतिक षडयंत्र रचने में बर्बाद कर चुके हैं। इस काम में उन्हें कामयाबी जरूर मिली है लेकिन जनता की नजरों में मास्टरजी का ग्राफ लगातार गिर रहा है। 

           ऐसा नहीं है कि मास्टरजी को ये पता नहीं है। लेकिन तमाम आलोचनाओं के बावजूद शायद मास्टरजी नहीं सुधरने की कसम खा चुके हैं। यही वजह है कि अपने तीसरे कार्यकाल में भी मास्टरजी विकास के एजेंडे पर चलते नहीं दिख रहे हैं। मास्टरजी के तीसरी बार चेयरमैन बने हुए 20 दिन हो चुके हैं। लेकिन इन 20 दिनों में मास्टरजी की हालत ‘9 दिन चले अढ़ाई कोस’ जैसी ही है। 

मास्टरजी के राज में सफाई व्यवस्था को लगा पलीता 

मास्टरजी नें ज़ब तीसरी बार कार्यभार ग्रहण किया था तो उम्मीद जगी थी कि वे सफाई व्यवस्था पर ध्यान देंगे। कार्यभार ग्रहण करने के साथ ही मास्टरजी ने सफाईकर्मियों की मीटिंग लेने और वार्डों के निरिक्षण सहित कई नौटंकियों भी की, जिससे एक बारगी लगा कि शायद हालात बदलेंगे। लेकिन असल में जो लोग मास्टरजी को जानते है उन्हें ये पता था कि मास्टरजी इन मीटिंगों का मकसद सफाई व्यवस्था में कोई सुधार नहीं लाना नहीं था। बल्कि ये मीटिंगें सफाईकर्मियों पर मास्टरजी द्वारा वापस चेयरमैन बनने के दम्भ का प्रदर्शन मात्र थी। 

                यहां यह बात कहने में कोई गुरेज नहीं है कि ईओ शर्मा के नाकारापन के चलते शहर की सफाई व्यवस्था पहले से ही बेपटरी थी। उस पर पिछले दिनों हुई बारिश नें हालात बद से बदतर कर दिए है। शहर में जगह-जगह कूड़े के ढेर लगे हैं तो वार्डों में नालियों की नियमित रूप से सफाई भी नहीं हो रही। शहर के मुख्य बाजार सहित विभिन्न इलाकों से गुजर रहे बड़े नालों के हालात तो और भी खराब है। ये बड़े नाले कचरे और गंदगी से अटे पड़े हैं। 

             यह हालात तब है ज़ब पालिका में स्थाई और संविदा मिलाकर करीब 400 सफाई कर्मचारी है। मास्टरजी चाहे तो एक हफ्ते में शहर के हालात बदल देते। लेकिन मास्टरजी को राजनीतिक प्रपंचों से ही फुर्सत नहीं है तो सफाई व्यवस्था का ख्याल कौन रखे ? शहर की सफाई व्यवस्था से जुड़ी एक तल्ख़ सच्चाई यह भी है कि मास्टरजी की अगुवाई वाले इस बोर्ड में सफाई व्यवस्था के जो हालात रहे हैं ऐसे हालात शहर के इतिहास में कभी नहीं रहें। वैसे इसकी सबसे बड़ी वजह भी खुद मास्टरजी ही है। जिन्होंने चेयरमैन बनते ही शहर में सफाईकर्मियों से सफाई कार्य नहीं करवाकर उनका प्रयोग अपने राजनीतिक दुश्मनों को निपटाने में किया। नतीजा ये है कि सफाईकर्मियों के साथ ही पूरी व्यवस्था बेलगाम हो चुकी है।

निर्माण कार्य रुकने से विकास अवरुद्ध, अधूरे पड़े कई निर्माण

सफाई के साथ ही विकास कार्यों की बात करें तो फिलहाल शहर में निर्माण कार्य करीब-करीब ठप या अधूरे पड़े हैं। इनमें पुरातन महत्व का शहर का प्रमुख भग्गुवाला चौक भी शामिल है, जिसे सौंदर्यकरण के नाम पर बर्बाद किया जा चुका है। ठेकेदार नें चौक का निर्माण कार्य भी आधा अधूरा छोड़ दिया है। हालांकि निर्माण नहीं होने के पीछे सरकार द्वारा बजट के आभाव में निर्माण कार्यों पर रोक लगाना भी एक वजह रही है। इसके बावजूद डेढ़ सौ करोड़ के बजट वाली नगरपालिका के पास इतना पैसा तो है कि वह इस चौक का अधूरा निर्माण पूरा करवा सके। लेकिन सवाल यहां फिर पालिका के कर्णधारों की इच्छा शक्ति का है। 

             उधर धानमंडी से इंदिरा सर्किल तक बीकानेर रोड की बात करें तो हालात किसी से छुपे हुए नहीं है। पिछले दिनों हुई बरसात के बाद सड़क के हालात को लेकर लगातार मीडिया में खबरें आई। लेकिन ईओ पूजा शर्मा नें एयर कंडीशन ऑफिस से बाहर कदम तक नहीं रखा। लेकिन इससे भी ज्यादा अफ़सोस की बात रही कि इस रास्ते से रोजाना गुजरने वाले मास्टरजी को भी सड़क के हालात देखकर जरा भी लाज नहीं आई। उन्होंने एक बार भी सड़क से पानी निकासी करवाने का प्रयास नहीं किया। बिना बरसात कागजों में फर्जी पंप सेट चलाकर लूट मचाने वाले अधिकारीयों के साथ मास्टरजी को एक बार भी सड़क से गुजरने वाली आम जनता का ख्याल नहीं आया। वरना सड़क का निर्माण भले ही तत्काल सम्भव न हो पम्प सेट लगाकर पानी तो खाली कराया जा सकता था। लेकिन जैसा की हमने कहा मास्टरजी को षडयंत्रों से ही फुर्सत नहीं है। 

           वैसे मास्टरजी का आम जनता विरोधी चरित्र तो आज से 3 साल पहले ही सामने आ चुका था ज़ब वार्ड-31 में स्कूल के पास महज ब्रेकर बनाने के लिए वरिष्ठ पार्षद को पीपा बजाना पड़ा था।

प्रशासन शहरों संघ अभियान को किया फेल, लोग काट रहे चककर 

सफाई व्यवस्था और विकास कार्यों के अलावा पट्टों का मामला भी मास्टरजी के नाशुक्रेपन की पोल खोलता है। मास्टरजी ने जब दूसरी बार कार्यभार ग्रहण किया था तब पूर्व विधायक रामप्रताप कासनिया और खुद मास्टरजी ने बिना भ्रष्टाचार और भेदभाव के पट्टे बनाने की बात कही थी। उसके बाद से दूसरी बार मास्टरजी के कुर्सी पर आसीन हुए 20 दिन से ज्यादा हो  गए हैं। लेकिन मास्टरजी प्रशासन शहरों के संग अभियान के तहत लंबित पट्टे अभी तक नहीं बाँट पाए है। 

          इस मामले में ईओ और चेयरमैन कालवा की बेशर्मी की हद ये है कि सरकार के अभियान में आये पट्टों के आवेदनो (जिनमें नियमन राशि जमा नहीं हो पायी) के 10 अगस्त तक निस्तारण के आदेश की पालना में एक भी आवेदन का निस्तारण नहीं किया गया। यदि ईओ और चेयरमैन चाहते तो ऐसे बहुत से लोगों को पट्टा दे सकते थे जो वर्तमान दर से भी नियमन राशि जमा करने को तैयार थे। लेकिन वर्तमान नियमों से आम जनता को लाभ देने की तो बात ही छोड़िये मास्टरजी के राज में आज तलक वे व्यक्ति भी पट्टों के लिए चक्कर काट रहे हैं जो 4 से 5 महीने पहले नियमन राशि जमा करवा चुके है। कच्ची और पक्की बस्तियों के ऐसे पट्टों की संख्या करीब 4 से 5 दर्जन है। 

                   लगे हाथों आप यह भी जान ले कि मास्टरजी की राजनीति के चलते पिछले दो साल से भी ज्यादा समय से वार्ड नंबर-3 और 26 के आम लोग (जिनमें भाजपा के कुछ कर्मठ कार्यकर्ता भी शामिल है) भी पट्टों के लिए भटक रहे हैं। दरअसल वार्ड-3 और 26 के भूखंडों की कीमत बहुत ज्यादा हो चुकी है इस वजह से इन पट्टों पर कुछ दलालों की नज़र हैं जो नहीं चाहते हैं कि ये पट्टे बिना किसी लेनदेन के जारी हो। इसीलिये कुछ खसरों पर स्टे का बहाना कर ना तो मास्टरजी के पहले कार्यकाल में पट्टे नहीं दिए गए और ना ही अब पट्टे दिए जा रहें। जबकि पूर्व चेयरमैन परसराम भाटिया नें स्टे की बात को नकारते हुए इन वार्डो में कई पट्टे जारी किये थे। वैसे सूत्रों के मुताबिक इसी वर्ष मार्च माह में इन वार्डो के कई पट्टे खुद मास्टरजी के साईन से जारी हो चुके है। मतलब साफ है कि दलालों के जरिये जिन भूखंडों की जीएसटी पहुंचती है वहां स्टे टूट जाता है।

                     वैसे वार्ड -3 और 26 के पट्टों के संबंध में एक चर्चा यह भी है गत दिनों मास्टरजी के चेयरमैन बनते ही कुछ खास कारिंदो नें इन वार्डों के बड़े बड़े नोहरों और आरों के भूखंडो के पट्टे बनाने का षड्यंत्र रचा। इसके लिए इन भूखंडो की खारिज फाइलों पर पुरानी नोट शीट फाड़कर नई नोटसीट लगा ईओ के सामने पेश कर दी। क्योंकि इन पट्टों के बदले दलालों के जरिये मोटी रकम लेने की चर्चा पहले से थी तो ईओ ने पट्टे बनाने से हाथ खडे कर दिए।

कहा जा रहा है कि ईओ के इंकार से मास्टरजी के रिकवरी अभियान को बड़ा झटका लगा है। इसलिये मास्टरजी अब पात्र लोगों को पट्टा देने की बजाय रिकवरी के नए प्लान पर काम कर रहे हैं। ऐसे में मास्टरजी के कार्यकाल में पात्र लोगों के पट्टे का सपना बस सपना ही रहने वाला है।

पूर्व चेयरमैन परसराम भाटिया से सीख लेने की जरूरत 

चेयरमैन कालवा नें अपने पुरे कार्यकाल में शहर की जनता को निराश किया है। मास्टरजी के पास अब महज दो महीने का समय शेष है। 2 महीने ज्यादातर नहीं होते, लेकिन मास्टरजी चाहे तो पूर्व चेयरमैन परसराम भाटिया की कार्य शैली से प्रेरणा ले सकते हैं। जिन्होंने केवल एक डेढ़ महीने के कार्यकाल (विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लगने से पहले) में अपनी कार्यशैली से पुरे शहर को प्रभावित कर दिया।

हालांकि इस दौर में भाटिया पर भी पट्टों और टेंडर में भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे है। लेकिन डेढ़ महीने के कार्यकाल में उन्होंने करीब 1000 से अधिक पट्टे बांट दिए। दो-पांच-दस पट्टों में संभव है कि भ्रष्टाचार हुआ हो लेकिन कौन इनकार करेगा कि सैंकड़ो पट्टे आम आदमी को बिना किसी भ्रष्टाचार के मिले। भाटिया के कार्यकाल में नगरपालिका में जाने वाले लोगों का भले ही काम नहीं हुआ हो पर उनकी सुनवाई हुई। जबकि मास्टरजी के कार्यकाल में हालात ये है कि कर्मचारियों की तो छोड़िए खुद मास्टरजी भी अहंकार की पोटली बांधे नज़र आते हैं। 

             इतना ही नहीं भाटिया नें छोटे से कार्यकाल में 20 से 30 करोड़ के टेंडर जारी कर शहर में विकास की मुहिम को पंख लगा दिए। ये ठीक है कि अब पालिका के पास फंड नहीं है। लेकिन छोटी मोटी टूट-फूट,मरम्मत और तत्काल जरूरी कार्य तो मास्टरजी भी करवा सकते हैं। 

                      बहरहाल चेयरमैन कालवा अपनी कार्यशैली में बदलाव करेंगे इस बात की गुंजाइश तो कम है। फिर भी कहते है ना कि उम्मीद पर दुनिया कायम है। अब चेयरमैन कालवा को यह तय करना है कि वे शहर के इतिहास में विकास पुरुष या विनाश पुरुष में से कौनसी पदवी का वरण करना पसंद करेंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.