सूरतगढ़। कहते हैं कि मूर्ख मित्र से होशियार दुश्मन ठीक होता है। शिक्षक से चेयरमैन बनने के अहंकार में मास्टर ओमप्रकाश कालवा ये बात भूल चुके हैं। मूर्ख मित्रों की सलाह पर काम करने की वजह से चेयरमैन कालवा जो कल तक राजनीति की पिच पर अपनी गुगली से धड़ाधड़ दुश्मनों के विकेट उड़ा रहे थे अब उनका हर एक दांव उल्टा पड़ रहा है। चेयरमैन बनने के बाद से ढाई साल में मास्टर कालवा की उतनी किरकिरी नहीं हुई जितना मान मर्दन पिछले कुछ महीनों में हो चुका है। इसकी एकमात्र वजह है चेयरमैन कालवा की टोली में लगातार बढ़ रहा मूर्खों का जमावड़ा।
मूर्ख मित्रों की सलाह पर चेयरमैन कालवा ने राजनीति में अनेक दुश्मन बना लिये हैं, वही अब प्रेस से भी दुश्मनी ले ली है। बताया जा रहा है कि व्यापारी सफाईकर्मी विवाद में मनोरोगी बताने संबंधी बयान से आहत चेयरमैन कालवा ने पार्षद पर मानहानि का दावा करने का फैसला लिया था। लेकिन उभरते मीडियाकर्मियों से कुंठा के चलते मुर्ख मित्रों ने कालवा को यूट्यूब मीडियाकर्मियों को भी इस दावे में लपेटने की सलाह दे डाली। अफसोस की बात है कि चतुर सुजान माने जाने वाले चेयरमैन कालवा की बुद्धि हवा ले गई और उन्होंने यूट्यूबर को भी मामले में लपेटने की सहमति दे दी। मास्टरजी के ये कथित शुभचिंतक मास्टरजी की मिट्टी पलीद करवाने के लिए इसे मास्टर स्ट्रोक की तरह प्रसारित कर रहे हैं जबकि पूरे शहर में मास्टरजी की थू-थू हो रही है।
प्रेस क्लब को यूट्यूबर पर दावे से क्यों है एतराज ?
इस मामले में जब पूरे संभाग की पत्रकारों की एकमात्र रजिस्टर्ड संस्था प्रेस क्लब ने यूट्यूब मीडियाकर्मियों को समर्थन देते हुए चेयरमैन कालवा की निंदा की तो मास्टरजी के कथित शुभचिंतकों की छाती पर सांप लोटने लगे। जिसके बाद मास्टरजी के मूर्ख मित्रों की टोली के अंडरमैट्रिक के समकक्ष योग्यता रखने वाले एक श्रीमानजी ने अपनी अज्ञानता का रायता फैलाना शुरू कर दिया है। इन श्रीमानजी का सवाल है कि यूट्यूबर मीडियाकर्मी नहीं है तो चेयरमैन कालवा के मानहानि का दावा करने पर प्रेस क्लब के पेट में दर्द क्यों हो रहा है ?

वैसे तो कीचड़ में पत्थर फेंकना अच्छी बात नहीं है। लेकिन फिर भी इन श्रीमानजी को हम बता दें कि हमारे पेट में तो उस समय भी दर्द हुआ था जब श्रीमानजी के लाउडस्पीकर के जरिए अखबार बेच रहे रिक्शे को पुलिस वालों ने जब्त कर लिया था, उस समय इसी प्रेस क्लब के साथियों ने श्रीमानजी के लिए पुलिस-प्रशासन और राजनेताओं से लड़ाई लड़ी थी! श्रीमान जी को शायद याद नहीं होगा कि जब एक प्रतिद्वंदी अखबार श्रीमानजी के लाउडस्पीकर पर बलात्कार-बलात्कार चिल्लाकर अख़बार बेचने पर आपत्ति जताते हुए श्रीमानजी को सड़क पर सबक सिखाने की मुहिम चला रहा था और डर के मारे श्रीमानजी की पॉटी सूख गई थी उस समय भी यही पत्रकार और प्रेस क्लब से जुड़े साथी श्रीमान जी के साथ खड़े थे।
कुछ माह पूर्व बार संघ के अध्यक्ष के खिलाफ समाचार छापने पर जब बार संघ ने पतलकारजी के खिलाफ मोर्चा खोला था, तब भी इसी प्रेस क्लब के साथ साथ दूसरे अन्य पत्रकार और यही यूट्यूबर आनंद बागोटिया भी आपके लिए पुलिस थाने पहुंचा था,जिसे आप मीडियाकर्मी नहीं मानते। उस समय प्रेस क्लब सहित प्रेस के लोगों ने वकीलों से अपने संबंधों का हवाला देते हुए मामला शांत करवाया था। स्वभाव से नाशुकरे और खुद को वीर समझने वाले इन श्रीमानजी को वह दिन भी नहीं भूलना चाहिए,जब गलत खबर छापने पर एक कबाड़ व्यवसाई ने श्रीमानजी की फिटनेस करने के लिए सहयोगियों के साथ पालिका कार्यालय पर डेरा लगा दिया था। और पतलकारिता के इस वीर ने खुद को अकाउंटेंट के चेंबर में बंद कर लिया था। यह बातें सार्वजनिक रूप से बताने की नहीं है लेकिन जब चेयरमैन कालवा की झूठन पर पलने वाले श्रीमानजी अपनी सीमाएं लाँघ रहे हैं तो उन्हें याद दिलाया जाना जरूरी हो जाता है।
श्रीमानजी का कहना है कि यूट्यूबर मीडियाकर्मियों के समर्थन में दिए गए प्रेस क्लब के वक्तव्य में धमकी थी। तो श्रीमान जी और चेयरमैन कालवा सहित सब लोग यह जान और समझ ले कि बात यूट्यूब मीडियाकर्मियों की नहीं है, अगर अभिव्यक्ति की आजादी पर किसी भी तरह का हमला होगा तो प्रेस क्लब हर हमले का जवाब ईट की बजाय पत्थर से देगा।
शोभा नही देता भाषा और शब्दों की शालीनता का ज्ञान
चेयरमैन कालवा के सिपहसालार बने ये श्रीमानजी प्रेस क्लब और पत्रकारों को भाषा और शब्दों का ज्ञान बांट रहे हैं। लेकिन वे भूल जाते हैं कि ऊपर दिए गए सारे मामले भाषा और शब्दों की शालीनता भूलने की वजह से ही हुए थे।
श्रीमानजी कहते हैं कि भ्रामक समाचारों से ब्लैकमेल करने और किसी की प्रतिष्ठा धूमिल करने को पहले पीत पत्रकारिता कहा जाता था। वैसे श्रीमानजी को तो मालूम ही होगा कि पत्रकारों पर ब्लैक मेलिंग के आरोप सामान्य है। लेकिन उन्हें ये भी ज्ञान होगा शुतुरमुर्ग की तरह जमीन में सर दबाने से सच्चाई नहीं बदल जाती। उन्हें खुद मालूम होगा कि शहर में पीत पत्रकारिता के लिए वे खुद भी कितने कुख्यात है। श्रीमानजी अगर चाहे तो शहर में गुप्त सर्वे करवाकर अपना मुगालता दूर कर सकते हैं।
ये श्रीमानजी प्रेस क्लब के सदस्यों द्वारा मीटिंग में उपस्थित नहीं होने के बावजूद जारी किए गए बयान के विरोध का स्क्रीनशॉट वायरल कर यह बताना चाहते हैं कि यूट्यूबर मीडियाकर्मियों के मामले में प्रेस क्लब में 2 फाड़ है। लेकिन श्रीमानजी अगर स्क्रीनशॉट को ध्यान से पढ़ लेते तो उन्हें मालूम हो जाता कि मीडियाकर्मियों पर दावे की घटना को उस प्रेस क्लब सदस्य ने भी निंदनीय ही बताया है।
पत्रकारिता की एबीसीडी सीखने की जरूरत
‘मेंढकी को जुकाम हो गया’ आपने यह कहावत जरूर सुनी होगी। चेयरमैन ओमप्रकाश कालवा की जूठन चाटने के लिए लमलेट हुए इन श्रीमानजी की हालत भी कुछ ऐसी ही है। श्रीमानजी खुद को पत्रकारिता का स्वयंभू प्रोफेसर और ‘अलजजीरा’ का सीईओ समझ बैठे हैं। यही वजह है कि श्रीमानजी जब लोगों के सामने प्रेस काउंसिल और आरएनआई जैसे शब्द बोलते है तो इनको पत्रकारिता का पितामह होने की फीलिंग आने लगती है। लेकिन जैसा कि आप जानते हैं कि श्रीमानजी महज अंडर मैट्रिक है तो इनको क्या मालूम की यूट्यूब भी डिजिटल मीडिया का हिस्सा है। वैसे श्रीमानजी को अपने संकीर्ण सोच का दायरा बढ़ा लेना चाहिए जो अभी अखबारों से ऊपर नहीं जा पाया है। अब जमाना इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया,जिसमें यूट्यूब भी शामिल है, का है। श्रीमानजी जिस आरएनआई की बात करते हैं वह केवल अखबारों के पंजीयन का काम करती है।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया को रेगुलेट करने के लिए सरकार ने पिछले साल ही The Information Technology (Intermediary Guidelines and Digital Media Ethics Code) Rules, 2021 अधिनियम पारित किया है। इस एक्ट श्रीमानजी को पढ़ लेना चाहिए ताकि उन्हें यह ज्ञान हो जाये की यूट्यूब भी मीडिया का एक हिस्सा है उसको शुरू करने के लिए किसी लाइसेंस की जरूरत नहीं है। लेकिन उनके न्यूज कंटेंट को प्रेस इनफॉरमेशन ब्यूरो यानि PIB द्वारा निर्धारित नियमों को फॉलो करना होगा। क्यूंकि एक्ट को पढ़ने और समझने के लिए एक न्यूनतम बौद्धिक स्तर आवश्यक है तो चेयरमैन कालवा चाहे तो एक्ट को पढ़कर खुद और श्रीमानजी को भी समझा सकते हैं। वैसे खुद को पत्रकारिता का एकमात्र झंडाबरदार मानने की जगह श्रीमानजी युवा मीडियाकर्मियों की हौसला अफजाई करते तो बेहतर होता।
क्या मानहानि का दावा करना चेयरमैन कालवा का अधिकार है!
पतलकारजी का कहना है कि पार्षद के साथ यूट्यूबर पर मानहानि का दावा करना चेयरमैन कालवा का अधिकार है। बिल्कुल हम इस बात से सहमत हैं लेकिन चेयरमैन कालवा जब युवा मीडिया कर्मियों का व्यक्तिगत रंजिश के चलते हरासमेंट करने की नियत से ऐसा करते हैं तो यह ठीक नहीं है। इस मामले में चेयरमैन कालवा को पता है कि यूट्यूबर ने पार्षद के बयान को बिना एडिट किए हुबहू प्रसारित किया जो यह बताता है कि मीडियाकर्मियों का आशय (मंशा) चेयरमैन की मानहानि की नहीं था । ऐसे में अगर चेयरमैन कालवा मानहानि का दावा भी करते हैं तो वे यूट्यूबर के गलत आशय को साबित नहीं कर सकेंगे। इसलिए इस मामले में केवल और केवल अपने जगहंसाई करवाने के अलावा चेयरमैन कालवा को कुछ हासिल नहीं होगा।
चेयरमैन कालवा के लिए मंथन का वक्त
मूर्ख मित्रों की सलाह पर काम कर रहे चेयरमैन कालवा के लिए यह मंथन का वक्त है। उन्हें यह सोचना होगा कि आखिर अचानक उनका हर एक दाव उल्टा क्यों पड़ रहा है ! मूर्ख मित्रों की जगह अगर वे होशियार दुश्मनो को भी चुनते हैं तो उन्हें इतना नुकसान नहीं होगा। वैसे संस्कृत का एक श्लोक याद आ रहा है जो चेयरमैन ओमप्रकाश कालवा का मार्गदर्शन कर सकता है।
लोके दुर्जन संसगार्त मानहानि पदे पदे।
पावको लौह संगेन मुदगरे रभिहंते।।
इस श्लोक का भावार्थ है कि संसार में दुर्जन की संगति रखने पर मान की पग पग पर हानि उसी प्रकार होती है जिस प्रकार लोहे का संग करने आग को भी हथौड़े से पीटा जाता है। सद्बुद्धि लौटने की उम्मीद में…..
– राजेंद्र पटावरी,उपाध्यक्ष-प्रेस क्लब,सूरतगढ़