सूरतगढ़ नगरपालिका में आपत्ति सूचना के नाम पर खुलेआम लूट

CURRUPTION

नगरपालिका के मनमाने नियम,पत्रकार भी बेबस

क्या हनुमान मील और चेयरमैन कालवा कसेंगे लगाम ?

सूरतगढ़ । सूरतगढ़ नगरपालिका में कर्मचारियों द्वारा आपत्ति सूचना के नाम पर प्रतिमाह लाखों रुपए की खुलेआम लूट की जा रही है। पूर्व विधायक राजेंद्र भादू के कार्यकाल में शुरू हुआ यह खेल युवा कांग्रेसी हनुमान मील के दौर में भी जारी है। खेल कुछ इस तरह से है कि जब भी कोई आम व्यक्ति नगरपालिका में नामांतरण, खांचा भूमि के आवंटन , मृत्यु प्रमाणपत्र जारी कराने जैसे किसी भी कार्य के लिए आवेदन करता है तो प्रक्रिया के तहत पालिका प्रशासन द्वारा आपत्ति सूचना का प्रकाशन स्थानीय अखबारों में करवाया जाता है | नियम यह है कि आपति आवेदक को दी जाती है जिसे आवेदक अपनी पसंद या सुविधा के समाचार पत्र में प्रकाशित करवाता है | लेकिन सूरतगढ़ में अंधेर नगरी चौपट राजा की तर्ज पर सत्ताधारियों ने अधिकारियों और अधिकारियों ने कर्मचारियों को लूट की खुली छूट दे दी है | इसका नतीजा यह है कि अब आपत्ती सूचना संबंधित शाखा के कर्मचारी खुद ही समाचार पत्रों को देते हैं। आपत्ति सूचना के लिए कर्मचारी आवेदक से सोलह सौ रुपये वसूलते हैं और बाद में अखबार वालों को 300 से 500 रुपये में यह आपत्ति छापने के लिए दे देते हैं । इस तरह से प्रत्येक आपत्ति में 1000 -1100 रुपए नगरपालिका के संबंधित शाखा के कर्मचारी डकार जाते हैं |अगर कोई जागरूक व्यक्ति आपत्ती सूचना को खुद ही प्रकाशित करने के लिए कहता है तो पहले तो ये कर्मचारी उसे देते ही नहीं है और अगर वह किसी तरह से आपत्ती लेकर खुद ही प्रकाशन करवा भी देता है तो कर्मचारी उसके काम को लटका देते हैं या फिर उसे चक्कर पर चक्कर कटवाते हैं । इसी वजह से आम लोग असुविधा से बचने के लिए सुविधा शुल्क देने में ही अपनी भलाई समझते हैं।

पुराने नियमों में बदलाव से राजकोष को भी हो रहा घाटा

आपको यह भी बता दे की ऐसा नहीं है कि हमेशा से ही ऐसा होता था । पूर्व में आपत्ति सूचना आवेदक को दे दी जाती थी जिसे वह अपनी सहूलियत के अनुसार किसी भी समाचार पत्र में प्रकाशित करवा देता था।  परंतु पूर्व अधिशासी अधिकारी प्रियंका बुडानिया के समय नगरपालिका की आय बढ़ाने के नाम पर आपत्ति सूचना के प्रकाशन का कार्य नगरपालिका ने खुद अपने जिम्मे ले लिया और आपत्ति सूचना के प्रकाशन की फीस 2500 रुपये कर दी गई थी। उस दौरान नगरपालिका के कर्मचारी विभिन्न समाचार पत्रों को उनके विज्ञापन के सरकारी रेट के मुताबिक आपत्ति सूचना के प्रकाशन के लिए भुगतान करते थे। ऐसा नहीं है कि उस दौर में भी यह कर्मचारी सुखा चंदन  घिसते थे ? बस होता यह था कि कर्मचारियों ने अखबार के पत्रकारों और मालिको से सेटिंग कर अपना कमीशन तय कर लिया था। जो कमीशन ज्यादा देता था, ये कर्मचारी उसी को आपत्ती सूचना भेज दिया करते थे। लेकिन फिर भी उस समय आपति सूचना के नाम पर आम आदमी से वसूले गए धन का कुछ ना कुछ हिस्सा सरकारी खजाने में तो पहुंचता था। परंतु बाद में अधिकारियों ने अपने मातहत कर्मचारियों को लूट की छूट देने के लिए पिछले सिस्टम को बंद कर दिया और संबंधित शाखाओं के कर्मचारियों को ही आपत्ती सूचना के प्रकाशन का सर्वे सर्वा बना दिया। इस नयी व्यवस्था के चलते आम आदमी का शोषण होने के साथ ही सरकारी खजाने को होने वाली आय का नुकसान हो रहा है । 

पत्रकारों का हो रहा शोषण, दवाब में ख़बरें छपने से बचते हे पत्रकार

आपत्ति सूचना के इस खेल ने नगरपालिका के तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कई बाबुओं को अफसर सी पावर दे दी है । जिसके कारण पत्रकार दिनभर इन बाबुओं की डयोढ़ी पर हाज़री भरते नज़र आते हैं। संबंधित शाखाओं के बाबू अपने संबंधों और  कमीशन को ध्यान में रखकर अपनी मर्जी के अखबारों को आपति सूचना देते हैं। इस अवैध वसूली के पूरे अध्याय का एक पक्ष यह भी है कि आपत्ती सूचना प्रकाशन के इस तरीके की वजह से पत्रकारों पर भी एक दवाब रहता है । जिसकी वजह से वे नगरपालिका के काले कारनामो को छापने से बचते हैं । क्या आपको नहीं लगता कि पत्रकार जो किसी के भी साथ होने वाले अन्याय व शोषण के खिलाफ आवाज उठाते हैं,उनके खुद के नगरपालिका में होने वाले शोषण की आवाज उठाने वाला कोई नहीं है ?ना तो स्वंयभू पत्रकार, ना उनके संगठन और न ही जनता के नुमाइंदे !

गूंगे-बहरे पार्षदों की जुबान को मारा लकवा

आपने ओर हमने जिन जनप्रतिनिधियों को हमारी आवाज़ उठाने के लिए नगरपालिका में भेजा है वे  शायद गूंगे और बहरे हो चुके हैं। जनता से बड़े-बड़े दावे कर जीतने वाले पार्षदों की जुबान को नगरपालिका में पहुंचते ही लकवा मार गया है। जनता से जुड़े मुद्दों पर भी अब उनकी जुबान नहीं खुलती है। अफसोस ये है कि शहर के 45 पार्षदों में सेे कोई  इतना भी ईमानदार और समझदार नहीं है जो कम से कम आम आदमी से हो रही लूट को बंद करने के लिए आवाज़ उठाएं ? पहली बार जीत कर आए युवा पार्षदों को तो छोड़ ही दीजिए 2 से ज्यादा बार जीत चुके अनुभवी पार्षद भी मुंह में दही जमाये बैठे हैं।

युवा हनुमान मील और चेयरमैन कालवा रोक पाएंगे यह गोरखधंधा ?

राजनीति में अपने भविष्य को तलाश रहे युवा काँग्रेसी नेता हनुमान मील नगरपालिका में चल रही इस लूट को खत्म करने के लिए आगे आना चाहिए। ऐसा करके वे विधानसभा के उन 58 हज़ार लोगों के भरोसे को सही साबित कर सकते है जिन्होंने उन पर अपना विश्वास जताया था। वैसे भी राजनीति में कामयाबी जनता का विश्वास जीतने से ही मिलती हैं। वही दूसरी ओर ओम कालवा अच्छे शिक्षक साबित हुए या नही ! इस बारे में तो पुख्ता तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। परन्तु नगरपालिका चेयरमैन के रूप में अब तक फिसड्डी ही साबित हुए हैं। इसमें शायद ही किसी को शक होगा। वैसे नगरपालिका में आम जनता के साथ हो रही इस लूट को खत्म कर गुरुजी अपनी खत्म होती गरिमा को बचा सकते हैं।

अंत में……

शहर के आम आदमी से हो रही इस लूट के विरुद्ध आवाज उठाने की हिम्मत अगर अब भी आप के चुने हुए पार्षद, चेयरमैन या फिर सत्ता का सुख भोग रहे नेता नहीं करते हैं तो शहर की जनता को यह समझ लेना चाहिए कि नगरपालिका में बंट रही भ्रष्टाचार की भांग का नशा इन पर चढ़ चुका है। ऐसे में जनता को नगरपालिका में  चुनकर भेजे गए वीरों के शिखण्डी बनने के तमाशे को देखकर ही अगले पांच साल इंतज़ार तक करना होगा ।

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