‘मास्टरजी’ से राजनीति के ‘मास्टर’ बनते चेयरमैन कालवा

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विरोधियों पर फिलहाल भारी पड़ रहें मास्टरजी के राजनैतिक दाव

सूरतगढ़। क्रिकेट के खेल में स्पिन गेंदबाजी की एक कला है गुगली। यह ऐसी गेंद होती है जो लेग ब्रेक के एक्शन में की जाती है लेकिन वास्तव में ऑफ ब्रेक होती है। यूं भी कह सकते हैं कि यह बोल ठप्पा तो कहीं खाती है और निकलती किसी और दिशा में है। यही वजह है कि ये गेंद कब बल्लेबाज की गिल्लीयां उड़ा देती है उसे मालूम ही नहीं चलता। सूरतगढ़ नगरपालिका में करीब 3 साल के कार्यकाल में चैयरमेन ओमप्रकाश कालवा राजनीति की पीच पर गुगली कला के ‘मास्टर जी’ से मास्टर बनते दिख रहे है। राजनीति की पीच पर धुरंधर समझे जाने कई दिग्गजों को चेयरमैन कालवा ने अपनी गूगली से दिन में तारे दिखा दिए है।नगरपालिका में कांग्रेस के ही पार्षदों की बगावत से लेकर नंदीशाला के ताजा प्रकरण तक मीडिया की सुर्खियां बने ऐसे अनेक उदाहरण है जिनमे मास्टर जी ने धोबी पछाड़ का दाव चलकर राजनीतिक दुश्मनों को पटखनी दे दी। इनमें से कई मामलों में नगरपालिका की राजनीति में धुरंधर रहे कई राजनीतिक मठाधीशों को पता ही नहीं चल पाया कि मास्टर जी ने कब इनके पैरों की जमीन निकाल ली। नगरपालिका चेयरमैन के रूप में नंबरों के खेल के चलते अधिकतर चेयरमैनो का कार्यकाल पार्षदों की मान मनुहार में ही निकल जाता है। लेकिन सूबे में कांग्रेस की सरकार और पालिका बोर्ड में कांग्रेसी पार्षदों की पर्याप्त संख्या ने मास्टर जी को खुलकर खेलने का मौका दे दिया है।

यही वजह है कि मास्टरजी एक और धुआंधार बल्लेबाजी कर रहे हैं तो दूसरी ओर अपने विरुद्ध षड्यंत्र रचने वाले पार्षदों/ राजनीतिक प्रतिद्वंदियो की ढ़िबरी भी बखूबी टाइट कर रहे हैं। अपने आप को तीसमार खां समझने वाले कई खिलाड़ियों को मास्टर जी ने घुटनों के बल पर ला दिया है । कहते भी हैं कि जैसे जैसे आदमी की परीक्षा होती है वैसे वैसे उसकी प्रतिभा का भी विकास होता है। मास्टर जी का मामला भी कुछ ऐसा ही है। अपने एक डेढ़ साल के कार्यकाल में पालिका की राजनीति को करीब से समझने के बाद से मास्टर जी ने संभावित जयचंदो और शकुनियों के ताबीज बनाने का काम शुरू किया जो आज तलक जारी है। मास्टरजी के तेवरों को देख अपनी दाल नहीं गलती देख कई आवारा परिंदों ने पिंजरे से उड़ जाने की गीदड़ धमकी भी दी लेकिन सूझवान बहेलिए की तरह मास्टर जी ने इन आवारा परिंदों के न केवल पर काट दिए बल्कि पिंजरे में वापस आने के लिए मजबूर कर दिया। वैसे उड़ने की फितरत रखने वालों का इलाज भी यही है।

मास्टर जी के इस तरीके को लेकर आपकी और हमारी राय कुछ भी हो सकती हैं। लेकिन हाशिये पर रहने वाले कुछ ऐसे लोग भी हैं जो राजनीति में हमेशा ऊंचाइयों पर रहने वाले लोगों को गिरते हुए देख बहुत खुश हैं और इसके लिए वे मास्टर जी की मन ही मन तारीफ भी कर रहे है। वैसे भी राजनीति में अगर बने रहना है तो राजनीतिक षड्यंत्र को नाकाम करना जरूरी है, ऐसे में मास्टरजी ही क्यों, उनकी जगह कोई भी होता तो साम-दाम-दंड-अर्थ-भेद का सहारा लेकर अपने दुश्मनों को शिकस्त देने की कोशिश करता। लेकिन मास्टर जी इस मामले में दूसरों से एक कदम आगे है क्योंकि जिस तरह तमाम आलोचनाओं,दिक्कतों और खामियों के बाद भी मास्टरजी अपनी राजनीतिक पारी में नाबाद बने हुए हैं। उसने मास्टरजी को राजनीति में नौसीखिया समझने वाले राजनीतिक धुरंधरों का मोतियाबिंद जरूर झाड़ दिया है।

दूसरे राजनीतिज्ञों से इतर मास्टरजी चापलूसों से घिरे तो दिखाई देते हैं लेकिन उनसे प्रभावित नहीं है। यही वजह है कि गाहे-बगाहे मास्टरजी इन चापलूसों को भी अपनी औकात दिखा देते हैं। ऐसे में आने वाले दिनों में भी मास्टर साब अपने आप को धुरंधर समझने वाले कुछ और चाणक्यों को ‘अर्थशास्त्र’ का पाठ पढ़ा दें तो कोई आश्चर्य नहीं होगा ।

बहरहाल नंदीशाला प्रकरण में जिस तरह करीब आधा दर्ज़न पार्षदों की नाराजगी की अनदेखी कर मास्टर जी ने खुलाखेल अहमदाबादी खेला है उससे लगता है कि उन्हें अपने दुश्मनो की कमजोरी पता है। वैसे देखा जाये तो इस प्रकरण के बहाने वे अपने राजनीतिक विरोधियों को मानो किसी शायर के इस शेर की तरह सीधा सीधा ये संदेश दे रहें है कि

”तलवारे चलेंगी ना खंजर उठेंगे, ये बाजू मेरे आजमाये हुए है ‘

-राजेंद्र पटावरी,उपाध्यक्ष-प्रैस क्लब

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