पंचायत चुनाव में दोनों नेताओं की साख दाव पर

सूरतगढ़। राजनीतिक जीवन जीने वाले व्यक्तियों के लिए चुनाव जीवन के सफर का वह महत्वपूर्ण पड़ाव है जो उनके भावी राजनीतिक जीवन की दिशा तय करता है । सूरतगढ़ में पंचायत समिति सदस्यों के लिए तीसरे चरण में 18 दिसंबर को मतदान होने जा रहा है। हालांकि डायरेक्टर पद ज्यादा महत्व का नहीं है सिवाय इसके कि गांवों की सरकार के मुखिया यानी कि प्रधान का चुनाव डायरेक्टर द्वारा किया जाता है। इसलिए सूरतगढ़ पंचायत समिति में गांवों की सरकार के मुखिया यानि कि प्रधान के पद पर कौन सी पार्टी कब्जा करती है राजनीतिक हलकों में फिलहाल ये बड़ा सवाल है। लेकिन पिछले चुनावों से इतर इस बार के चुनाव कुछ अलग है, अलग इसलिए है क्योंकि इस चुनाव में एक और भाजपा के दिग्गज नेता व वर्तमान विधायक रामप्रताप कासनिया तो दूसरी ओर इलाकेे में फिलहाल कांग्रेस का पर्याय कहे जाने मील परिवार का राजनीतिक भविष्य बहुत कुछ इस चुनाव के परिणामों पर निर्भर रहने वाला है।
इसकी वजह भी है पहले बात मील परिवार की करें तो साफ है कि पिछले दो विधानसभा चुनावों में लगातार मिली हार से राजनीतिक हलकों मेंं यह संदेश गया है जमीनी स्तर पर आम लोगों के बीच मील परिवार की पकड़़ कमजोर है। ऐसे में यह चुनाव मील परिवार के लिए खुद को साबित करने का चुनाव है। उनकी राजनीतिक साख इस चुनाव मेंं दांव पर लगी हुई। यदि यह चुनाव मील परिवार नहीं जीत पाता है तो 2023 के विधानसभा चुनाव में सूरतगढ़ विधानसभा क्षेत्र से उनकी दावेदारी भी लगभग खत्म हो जाएगी । क्योंकि आलाकमान लगातार हार के बाद शायद ही मील परिवार को चौथी बार टिकट देने का जोखिम लेगा । वैसे भी स्थानीय कांग्रेस में मील परिवार के विरोधियों की कोई कमी नहीं है। टिकट के दावेदार पार्टी के इन नेताओं को आगामी विधानसभा चुनाव में आलाकमान के सामने खुद को विकल्प केेे रूप में रखने का रास्ता इन चुनावों में मील परिवार की हार में दिख रहा है । ऐसे में यह तय है कि टिकट के दावेदार ये नेता कभी नहीं चाहेंगेे कि मील परिवार जीत हासिल करें। इस बात को मील परिवार भी समझ रहा है । यही वजह हैै कि मील परिवार ने इस चुनाव को अग्निपथ मानतेे हुए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है । मील परिवार इन चुनाावों के लिए कितना गंभीर है इस बात का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि रविवार को जब जिले के प्रभारी मंत्री गोविंद राम मेघवाल विधानसभा क्षेत्र के कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं की बैठक ले रहे थे, तब न तो गंगाजल मील और नहीं ही हनुमान मील उपस्थित थे । बात साफ है मील परिवार का इस समय मुख्य उद्देश्य इन चुनावों में किसी भी कीमत पर जीत हासिल कर अपनी राजनीतिक जमीन बचाना है।
अब बात भाजपा के दिग्गज नेता और विधायक रामप्रताप कासनिया की। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में जीत के बाद रामप्रताप कासनिया बड़े राजनीति के दिग्गज खिलाड़ी के रूप में उभरे थे। लेकिन उसके बाद से उनके समर्थकों और भाजपा कार्यकर्ताओंं में उनकी छवि लगातार कमजोर हुई है । ये सही है कि राज्य में कांग्रेेेस की सरकार होने के चलते प्रशासन पर विधायक रामप्रताप कासनिया की उतनी पकड़ नहीं है जितनी कि सत्ता पक्ष के एक विधायक के होती हैं । फिर भी क्योंकि वे चुने हुए विधायक हैं तो लाजमी है समर्थकों व कार्यकर्ताओं ने विधायक जी से काफी उम्मीदेंं लगा ली। अब पार्टी कार्यकर्ता और समर्थक इस बात को लेकर निराश है कि जिन उम्मीदों को लेकर उन्होंने कासनिया को जिताने के लिए दिन रात एक कर दिए थे वे अब उनकी उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाए हैं। राजनीतिक हलकों और भाजपा केेे आम कार्यकर्ताओं मे विधायक रामप्रताप कासनिया का यह डायलॉग ‘ मैंं के करू मेरी सुणे कोनी,म्हारी सरकार कोनी’ बेहद चर्चित हो चुका है। हालांकि खुद विधायक रामप्रताप कासनिया इस बात को लेकर सफाई दे चुके हैंं कि उन्होंने यह बात कभी नहींं कहीं। लेकिन इस एक डायलॉग ने विधायक रामप्रताप कासनिया का बहुत राजनीतिक नुकसान कर दिया है। इसके अलावा पालिका चुनाव में पार्टी की हार और उसके बाद भाजपा के ही 1 चुने हुए पार्षद द्वारा पालिकाध्यक्ष के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के समर्थन मेंं वोट करने से भी यह मैसेज निकल कर आया कि कासनिया की पार्टी पार्षदों पर पकड़ नहींं है । तमाम घोटालों और सत्ता पक्ष के सरंक्षण में भूमाफिया द्वारा खुलेआम सरकारी भूमि को हड़पने के बीच विपक्ष का फर्ज निभाने की जगह कासनिया ने चुप्पी साध ली तो उन्हीं की पार्टी केे पार्षद तमाशबीन बने रहे और विपक्षी कांग्रेस के समर्थन में खड़े नजर आए। इसकी वजह क्या रही यह तो वे जाने। लेकिन इन तमाम परिस्थितियों ने भाजपा के इस राजनीतिक दिग्गज के कद को आमजन खासकर शहरी क्षेत्र की नजर मे बौना कर दिया है। ऐसे हालात में रामप्रताप कासनिया के लिए यह जरूरी है कि वह गांव की सरकार भाजपा की बनाकर अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को मुंहतोड़ जवाब दे। अगर कासनिया इसमें कामयाब रहते हैं तो इस बात में कोई संदेह नहीं है कि 2023 में भी वे पार्टी टिकट के प्रबल दावेदार होंगे।
कुल मिलाकर इन चुनावों की हार दोनो राजनीतिक पार्टियों के इन बड़े नेताओं के लिए राजनीतिक जीवन में ताबूत की आखिरी कील साबित हो सकती है। जिस भी पार्टी को हार मिलेगी उसके सबसेेेे बड़े नेता का राजनीतिक भविष्य चौपट हो जाएगा है। वहीं जीतने वाली पार्टी के नेता को राजनीतिक ऑक्सीजन भी इस चुनाव से मिलेगी। सीधे तौर पर हमारा मानना है यह चुनाव कांग्रेस में मील परिवार और भाजपा के दिग्गज रामप्रताप कासनिया केेे राजनीतिक भविष्य तय करने जा रहा है।
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