बेशकीमती व्यवसायिक भूमि को आवासीय के रूप में बेचने की तैयारी !

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विपक्षी नेताओं व चुने हुए पार्षदों ने साधी चुप्पी

सूरतगढ़। सूरतगढ़ नगरपालिका द्वारा 21 सितम्बर से बीकानेर रोड पर पूर्व विधायक हरचंदसिंह सिद्धू के घर के सामने आवासीय भूखंडों की नीलामी होगी। शायद आपको मालूम न हो कि इस नीलामी के साथ एक चीज और भी नीलाम होगी। पहली नीलामी में व्यावसायिक भूखंडों को आवासीय भूखण्ड के रूप में बेचा जाएगा। जिन्हें खरीदने के लिए शहर के कुछ  धन्ना सेठ इस नीलामी में मौजूद रहेंगे। वहीं दूसरी नीलामी की खास बात यह होगी की इस नीलामी में खरीदार तो कोई नहीं होगा,परंतु तमाशबीन पूरा शहर होगा। क्योंकि इस नीलामी में शहर की नगरपालिका में आपके द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधियों की इज़्ज़त नीलाम होगी। आपको यह अफसोस भी होगा कि जिन जनप्रतिनिधियों को आपने आपके हक की आवाज उठाने के लिए वोट की ताकत से शूरवीर बनाकर भेजा था। उनकी हालत शिखंडीयों जैसी हो गयी है और अब ये जनप्रतिनिधी धर्म की बजाय अधर्म के साथ खड़े हैं। व्यावसायिक भूखंडों को आवासीय भूखंड के रूप में बेचने के इस प्रकरण को देखते हुए महाभारत का द्रौपदी के चीरहरण का प्रसंग याद आता है । महाभारत के प्रसंग में जिस तरह धूतक्रीडा में द्रौपदी को दांव पर लगा दिया गया था ठीक उसी प्रकार नीलामी के नाम पर की जा रही है इस कलयुगी धूतक्रीडा में सरकारी संपत्ति द्रौपदी की भूमिका में है। महाभारत में द्रोपदी की रक्षा का दायित्व जिस युधिष्ठिर यानी धर्मराज पर था उसी धर्मराज ने ही द्रौपदी को धूतक्रीड़ा में दाव पर लगा दिया था। ठीक उसी प्रकार से इस मामले में कलयुगी युधिष्ठिर यानि नगरपालिका चेयरमैन, जिन पर शहर की सरकारी संपत्ति की रक्षा की जिम्मेदारी थी ने द्रौपदी (सरकारी सम्पति) को दाव पर लगा दिया है। महाभारत के प्रसंग में द्रौपदी की इज्जत तार-तार करने की कोशिश हुई थी तो इस मामले में आपके चुने हुए जनप्रतिनिधियों की इज़्ज़त तार तार होने जा रही है । महाभारत की तरह जब नगरपालिका में बैठे दुशासन द्रौपदी के चीर खींचने की भांति ज्यूँ ज्यूँ भूखण्डों की बोली लगाएंगे। वैसे- वैसे आपके चुने हुए जनप्रतिनिधि नँगे होते जाएंगे। चीरहरण के समय तो लज्जावश द्रौपदी ने भले ही खूब विलाप किया हो पर आप अगर लज्जा आने की उम्मीद अपने चुने हुए जनप्रतिनिधियों से पाले बैठे हैं तो आप किसी गलतफहमी में हैं जो नीलामी के समय दूर हो जाएगी। दूसरी और महाभारत में भले ही भीष्म पितामह ,गुरु द्रोण हो या विदुर कोई भी हो द्रौपदी का चीरहरण होते देख कम से दुखी तो थे ,पर इस मामले में प्रशासन में बैठे अधिकारी और शहर में विपक्षी पार्टियों के नेता शर्म का चोला उठाकर कर द्रौपदी को नँगा करने यानि कि सरकारी संपत्ति को ओने पौने दामों में बेचने के इस तमाशे को देख रहे हैं। न्याय की बात करने वाले मुंह मे दही जमाये इस तमाशे को देखने को बेताब हैं ।महाभारत की तरह इस दौर में भी सत्ता केे शीर्ष पर धृतराष्ट्र् जैसे राजा भी मौजूद हैं। महाभारत में धृतराष्ट्र को पुत्र मोह था लेकिन मौजूदा समय के धृतराष्ट्र क्यों आंख मूंदे हुए हैं यह समझ से बाहर है ? सरकारी संपत्ति की नीलामी के इस प्रकरण की तुलना महाभारत के चीरहरण के प्रकरण से करें तो सबसे बड़े अफसोस की बात यह है कि महाभारत में तो वासुदेव थे जिन्होंने द्रोपदी की लाज बचा ली थी। लेकिन लगता नही है कि मौजूदा समय में कोई वासुदेव द्रौपदी (सरकारी संपत्ति ) को बचाने में कामयाब होगा। ठीक ऐसे ही हालातों के लिए शायद ये पंक्तियां लिखी गई है

छोड़ो मेहंदी खड़ग संभालो
खुद ही अपना चीर बचा लो
द्यूत बिछाए बैठे शकुनि,
… मस्तक सब बिक जाएंगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आएंगे |
कब तक आस लगाओगी तुम, बिक़े हुए अखबारों से,
कैसी रक्षा मांग रही हो दुशासन दरबारों से
स्वयं जो लज्जा हीन पड़े हैं
वे क्या लाज बचाएंगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आएंगे

कल तक केवल अंधा राजा, अब गूंगा-बहरा भी है
होंठ सिल दिए हैं जनता के, कानों पर पहरा भी है
तुम ही कहो ये अश्रु तुम्हारे,
किसको क्या समझाएंगे?
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आएंगे….

-राजेंद्र पटावरी (9928298484)

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