थर्मल प्लांट की सातवीं क्रिटिकल इकाई के सीओडी की तैयारी

CURRUPTION

कर्मचारी यूनियन इंटक ने मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर की जांच की मांग

पूर्ण क्षमता से चलाएं बिना सीओडी करने का आरोप।

सूरतगढ़। सूरतगढ़ सुपरक्रिटिकल थर्मल पावर प्लांट (सातवीं और आठवीं इकाई ) के निर्माण में देरी के लिए आलोचना झेल रही भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड यानी भेल ने अब जल्द ही सातवीं क्रिटिकल इकाई की COD यानि व्यवसायिक उत्पादन तिथि तय करने जा रही है। लेकिन प्लांट प्रबंधन द्वारा व्यवसायिक उत्पादन तिथि की घोषणा से पूर्व ही इसका विरोध शुरू हो गया है। राजस्थान विद्युत उत्पादन कर्मचारी यूनियन इंटक के अध्यक्ष श्याम सुंदर शर्मा ने इकाई के पूर्ण क्षमता से काम नहीं करने के बावजूद आनन-फानन में सीओडी करने का आरोप लगाया है। उन्होंने मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजकर सातवीं इकाई की जांच करवाने की मांग की है। ज्ञापन में बताया गया है कि सातवीं इकाई से करीब 1 वर्ष पूर्व विद्युत उत्पादन शुरू किया गया था। लेकिन परीक्षण के दौरान अभी तक तकनीकी खामियों के चलते इकाई को पूर्ण क्षमता यानी 660 मेगा वाट पर चलाया नहीं जा सका है। इसके अलावा परिचालन के दौरान वायलर ट्यूबों में लीकेज के चलते  बार-बार इकाई को बंद करना पड़ा है। शर्मा ने ज्ञापन में आरोप लगाया कि इकाई से संबंधित सीएचपी का वैगन टिप्लर ओर रेलवे यार्ड का काम भी अभी पूरा नही हो सका है । इसके बावजूद सातवीं इकाई के सीओडी की तैयारी की जा रही है। ज्ञापन में सातवीं इकाई को पूरे एक माह तक फुल क्षमता से साथ चलाने के उपरांत सीओडी करने की मांग की है। इसके साथ ही उन्होंने इकाई की गहन जांच विशेषज्ञों की टीम से कराए जाने की मांग की है।

    गौरतलब है कि सूरतगढ़ थर्मल पावर प्लांट से वर्ष 2016 में ही व्यावसायिक उत्पादन का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन इकाई के निर्माण में 4 साल की  देरी होने के बावजूद भी अभी तक इकाई का निर्माण पूरा नहीं हो पाया है। ऐसे में निर्माण में देरी को लेकर आलोचना झेल रही सरकारी निर्माण कंपनी भारत हैवी इलेक्ट्रिकल लिमिटेड यानी भेल इकाई से व्यवसायिक उत्पादन जल्द से जल्द शुरू करवाना चाहती हैं। लेकिन निर्माण में खामियों के चलते इकाई के ट्रायल के दौरान आ रही दिक्कतों की वजह से इकाई से व्यवसायिक उत्पादन शुरू नहीं हो पा रहा है। गौरतलब है कि सूरतगढ़ थर्मल पावर प्लांट की छठी इकाई से भी निर्माण के दौरान हुए भ्रष्टाचार और तकनीकी खामियों के चलते कई वर्षों तक व्यवसायिक उत्पादन शुरू नहीं हो पाया था। बाद में इकाई को बिना किसी विधिवत कार्यक्रम के ही शुरू कर दिया गया था ।

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