टीलावली के बहाव क्षेत्र के खसरा न.-14 पर विकसित हो रही है कॉलोनी

सूरतगढ़। अगर आप नेशनल हाईवे पर पिपेरण रेलवे स्टेशन के सामने काटी जा रही बालाजी सिटी में अपने सपनों का आशियाना खरीदने के बारे में सोच रहे हैं तो यह खबर आपके लिए हैं। जंगल में मंगल जैसे जुमलों के साथ बालाजी सिटी कॉलोनी को लेकर बड़ी-बड़ी बातें कर हाइप क्रिएट करने का प्रयास किया जा रहा हैं। इसके लिए पंजाबी गायक कंवर ग्रेवाल की नाइट के बहाने कॉलोनी में मजमा लगाया जा रहा है ताकि आने वाली भीड़ को बालाजी सिटी का सुनहरा मुखौटा दिखाया जा सके। ये और बात है कि इस मुखौटे के पीछे का मंजर बेहद खौफनाक भी हो सकता है। वैसे इस कॉलोनी के प्रमोटरों में से ही कुछ लोगों का इतिहास दागदार रहा है। ये वहीं लोग है जिन्होंने जोहड़ पायतन की भूमि पर आनंद विहार और बसंत विहार कॉलोनीया बसाई थी। इन कॉलोनियों में प्लॉट लेकर मकान बनाने में अपनी मेहनत की कमाई के लाखों रुपए खर्च करने वाले लोगों को पिछले एक दशक से अपने सपनो के आशियाने के उजड़ने का डर सोने नहीं दे रहा है। इसलिए अगर आपको भी बुरे सपनों से डर लगता है तो यह खबर आपको पूरी पढ़ लेनी चाहिए।
घग्घर बहाव क्षेत्र की भूमि पर बसाई गई है बालाजी सिटी ?

नेशनल हाईवे-62 पर पिपेरण रेलवे स्टेशन के सामने विकसित की जा रही बालाजी सिटी का रंगारंग उद्घाटन प्रसिद्ध पंजाबी गायक कंवर ग्रेवाल की नाइट के साथ रविवार यानी कल होने जा रहा है। लेकिन राजस्व रिकॉर्ड के सामने आ रहे दस्तावेजों से कॉलोनी विवादों में घिर गई है। राजस्व रिकॉर्ड के मुताबिक कॉलोनी के प्रथम और द्वितीय फेज को, दूसरे खसरो के साथ ही टिलावाली गांव के खसरा नंबर 14/4 व 14/5 की करीब 5 हेक्टर यानि 20 बीघा जमीन को शामिल करते हुए विकसित किया जा रहा है। घग्घर विभाग के दस्तावेजों के मुताबिक कॉलोनी की भूमि के खसरों में से खसरा नंबर -14 का सम्पूर्ण 134 बीघा रकबा घग्घर बहाव क्षेत्र के 12 नंबर डिप्रेशन का हिस्सा है। जिसे राज्य सरकार ने 5 अप्रैल 1967 के राजकीय गजट नोटिफिकेशन द्वारा अवाप्त किया था । नोटिफिकेशन के अनुसार घग्घर के 12 नंबर डिप्रेशन की खसरा नंबर -14 की सम्पूर्ण 134 बीघा भूमि अवाप्त की कर ली गई थी।
ऐसे में सवाल यह पैदा होता है कि खसरा नंबर-14/5 की जिस भूमि पर बालाजी सिटी का फर्स्ट फेज विकसित किया जा रहा है वह जगह कहां से आई ? दूसरा सवाल यह है कि जब सम्पूर्ण रकबा बहाव क्षेत्र के लिए आरक्षित हो गया था तो उस पर खातेदारी कैसे जारी कर दी गई ? साफ है कि राजस्व विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से इस खेल को अंजाम दिया गया है। अगर ऐसा है तो खातेदारी से लेकर कृषि भूमि के कन्वर्जन और कॉलोनी के काटने की संपूर्ण प्रक्रिया ही विवादित है। ऐसे में भविष्य में अगर मामले की जांच होती है तो कॉलोनी में प्लाट खरीदने वालों को आनंद और बसंत बिहार कॉलोनी में प्लाट खरीदने वालों की तरह मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।



राजस्व विभाग और जीएफसी की भूमिका में मामले में संदिग्ध
सूरतगढ़ में पैराफेरी क्षेत्र में पिछले कुछ सालों से चल रही बंदरबांट किसी से छुपी हुई नहीं है। राजस्व दस्तावेजों के मुताबिक बालाजीसिटी कॉलोनी का मामला भी कुछ ऐसा ही प्रतीत हो रहा है। इस पूरे मामले में राजस्व विभाग की तरह ही जीएफसी अधिकारीयों की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। क्योंकि सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब घग्घर बहाव क्षेत्र के लिए भूमि अवाप्त हो गई थी और अवाप्त भूमि के बदले काश्तकारों को तबादला दे दिया गया तो विभाग के अधिकारियों ने जमीन को अपने कब्जे में क्यों नहीं लिया ? दूसरा सवाल यह है कि जब राजस्व विभाग की मिलीभगत से खसरा नंबर-14 की भूमि की खातेदारी दी जा रही थी तो विभाग के अधिकारी क्यों मौन साधे रहे ? जमीन की खातेदारी देने से लेकर कॉलोनी काटने की प्रक्रिया के बीच विभाग के अधिकारी आखिर क्यों मूकदर्शक बने रहे और डिप्रेशनो की जमीन को बचाने के लिए एक बार भी आपत्ति क्यों नहीं दर्ज करवाई। कॉलोनी विकसित करने के नाम पर प्रभावशाली लोग शहर को बर्बाद होने से रोकने के लिए बहाव क्षेत्र में बनाए गए बंधों को खत्म कर पारिस्थितिकी को बिगड़ने में लगे हुए थे तब भी अपने कर्तव्य को भूल जीएफसी के अधिकारी क्यों गहरी तंद्रा में थे ? क्या यह मान लिया जाना चाहिए कि राजस्व विभाग की तरह जीएफसी के अधिकारी भी चांदी के सिक्कों की चमक से चोंधिया कर अपना कर्तव्य भूल गए थे या फिर प्रभावशाली लोगों के आगे रीढ विहीन अधिकारियों ने चुप रहना ही बेहतर समझा ?
अलग-अलग खसरों की जमीन के एक साथ आने पर सवाल ?

कॉलोनी के प्रमोटरों के अनुसार बालाजी सिटी के प्रथम फेज की कन्वर्जन प्रक्रिया पूरी कर ली गई है। करीब 19 बीघा भूमि पर विकसित किए गए प्रथम फेस में खसरा नंबर 9/1,10/3,14/5,163/10,164/10 और 361/161 की भूमि शामिल है। साफ है कि एक साथ छह अलग-अलग खसरों की भूमि पर कॉलोनी का प्रथम फेज विकसित किया गया है। लेकिन इसी के साथ सवाल पैदा होता है कि ये सभी खसरे एक साथ समीप कैसे आ गए ? एक साथ 6 खसरों की सीमाएं मिले संभव नहीं है लेकिन राजस्व विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से यह कारनामा कैसे किया गया है यह भी एक बड़ा सवाल है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि क्योंकि विकसित की जा रही कॉलोनी के आस की सैकड़ों बीघा भूमि उक्त कॉलोनाइजरों द्वारा खरीद ली गई है इसलिए कन्वर्जन सहित विभिन्न कारवाइयों के कॉलोनाइजर अपनी सुविधा अनुरूप दस्तावेजों का प्रयोग कर रहे हैं और कॉलोनी अपनी सुविधा के हिसाब से काट रहे हैं ?
आरटीआई अधिनियम के तहत नहीं मिल रही दस्तावेजों की नकल
इस कॉलोनी को लेकर राजस्व भूमि के दस्तावेजों में गड़बड़ी की सूचना के बाद कई लोगों ने कॉलोनी और उससे जुड़ी भूमि के बारे में तहसील, उपखंड और नगरपालिका कार्यालय में आरटीआई के तहत आवेदन किया था। लेकिन महीनो बीतने के बाद भी आवेदकों को सूचना ही नहीं दी जा रही। जिससे कहीं ना कहीं यह प्रतीत होता है कि दाल में कुछ ना कुछ काला है। वरना सूचना के अधिकार में दस्तावेजों को उपलब्ध कराने में क्या हर्ज़ है ?
कुल मिलाकर बालाजी सिटी की भूमि को लेकर कॉलोनी में प्लाट खरीदने की इच्छा रखने वालों को तमाम पहलुओं और कॉलोनी संबंधी दस्तावेजों को अच्छी तरह से लिख पढ़ लेना चाहिए। ताकि आपके खून पसीने की कमाई जोहड़ पायतन की भूमि पर प्लाट खरीदने वालों की तरह से खतरे में नहीं पड़ जाए।