सूरतगढ़। भाजपा विधायक रामप्रताप कासनिया और कांग्रेसी नेता हनुमान मिल के बीच हुआ ताजा वाद-विवाद सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बना हुआ है। मुद्दे की बात यह है कि क्या कांग्रेसी नेताओं द्वारा केवल इसीलिए विवाद खड़ा करने की कोशिश की गई कयोंकि ऑवरब्रिज आंदोलन की अगुवाई भाजपा से जुड़े कुछ कार्यकर्ता कर रहे थे ?
शायद ये सच नही है क्योंकि तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है। चूंकि ओवरब्रिज के मूल नक्शे में बदलाव भाजपा के नेताओं द्वारा ही करवाया गया था और जिस एजेंसी के अधीन कार्य किया जा रहा है वह भी केंद्र के अधीन ही आती है, लिहाजा यह धरना तो भाजपा और उन्ही के नेताओं की कारगुजारियों के खिलाफ ही है । यानी विरोध की राजनीति में कांग्रेस इस मामले में फ्रंट फुट पर होनी चाहिए थी । लेकिन फिर क्या वजह रही कि धरना स्थल पर ‘पॉलीटिकल माइलेज’ लेने की बजाय कांग्रेसी नेता हनुमान मील अपना आपा खो बैठे ? आखिर ऐसा कौन था जिसने कांग्रेस नेता को इस तरह का वक्तव्य देने के लिए उकसाया ? इस वाद विवाद से दोनों नेताओं की छवि को नुकसान पहुंचा है तो फिर कौन है जिसने इस पूरे घटनाक्रम से फायदा उठाया ?
सियासी तस्वीर को थोड़ा और साफ करते हैं । धरनास्थल पर हुए पूरे घटनाक्रम को अगर गौर से देखा जाए तो इन सारे सवालों का जवाब आसानी से मिल सकता हैं । जब भाजपा विधायक रामप्रताप कासनिया अपनी बात रख रहे थे, ठीक उसी समय नपा चेयरमैन ओमप्रकाश कालवा हनुमान मील के साथ धरना स्थल पर पहुंचे थे। रामप्रताप कासनिया के बाद आयोजकों ने हनुमान मील को अपनी बात रखने के लिए आमंत्रित किया था लेकिन मील ने अपनी बात रखने से इंंकार कर दिया। जिसका सीधा सा मतलब था कि विधायक कासनिया के वक्तव्य में ऐसा कुछ नहीं था जिससे कि कांग्रेसी नेता उनके खिलाफ बयान देते। हनुमान मील के इंकार के बाद आयोजकों ने चेयरमैन कालवा को बोलने के लिए आमंत्रित किया। मास्टर से चेयरमैन बने ओम कालवा बड़े चतुर सुजान हैं, सो उन्होंने शातिराना तरीके से बात रखते हुए नेशनल हाईवे पर बनाए जा रहे नाले के बहाने से विधायक रामप्रताप कासनिया को घेरना शुरू कर दिया। बोर्ड बैठक में विधायक को उचित सम्मान न देने वाले मास्टर जी इस दौरान बहुत ही चतुराई से माननीय विधायक, माननीय विधायक की रट लगाते रहे। साथ ही साथ खुद को वार्ड के लोगों का हमदर्द और सिविल इंजीनियरिंग विशेषज्ञ बताते हुए विधायक से वाद विवाद भी करते रहे। वैसे आपको बता दें कि चेयरमैन बनने केेेे बाद सेेे मास्टर जी को माइक को पकड़े रखने का चस्का लग गया है। मौका कोई भी हो मास्टरजी माइक को छोड़ते नहीं है। खैर मास्टर जी ने करीब बीस पच्चीस मिनट तक विधायक कासनिया को घेेरने के बाद मंच छोड़ा।
इसके बाद आयोजकों ने एक बार फिर हनुमान मील को बोलने के लिए आमंत्रित किया। परन्तु इस बार मंच पर पहुंचते ही हनुमान मील ने विधायक कासनिया पर आरोपों की झड़ी लगा दी और पूरे मामले ने तूल पकड़ लिया । जाहिर है कि मंच पर चेयरमैन कालवा और विधायक केे वाद विवाद ने ही कांग्रेस नेता हनुमान मील को उकसाया वरना इससे पहले वे खुद ही मंच पर वक्तव्य देने से मना कर चुके थे।
वास्तविकता यही है कि चेयरमैन कालवा ने अपने विधायक विरोधी वक्तव्य से आग में घी डालते हुए कांग्रेस नेता को उकसाया जिसकी परिणति ने पूरे विवाद को जन्म दिया। वैसे इस विवाद के बाद का घटनाक्रम भी चेयरमैन कालवा को कठघरे में खड़ा करता है। वाद- विवाद के बाद कांग्रेसी नेता मंच के पास ही एक कुर्सी पर अलग-थलग बैठे रहै। वहीं चेयरमैन कालवा ने एक बार फिर मंच संभाल लिया और माननीय विधायक की रट के साथ खुद की छवि पर पॉलिश करना शुरू कर दिया। वे यह भूल गए कि उनकी मौजूदगी में कांग्रेसी नेता की छवि को कितना नुकसान पहुंचा है ? करीब पौने घंटे तक हनुमान मील भीड़ मे उपेक्षित से बैठे रहे और मास्टर जी ने बड़ी सफाई से अपने आप को विवाद से अलग कर लिया। जबकि सही मायनेे में वाद विवाद की शुरूवात खुद उन्होंने की थी और सारा दोष कांग्रेस नेता के मत्थे मंंढ दिया गया।
खैर उम्मीद की जानी चाहिए कि युवा कांग्रेस नेता इस पूरे घटनाक्रम से सबक लेंगे और चाटुकारों – चापलूसों और षड्यंत्रकारी लोगों से दूरी बनाएंगे। बचपन में संस्कृत का एक श्लोक पढ़ा था ।
अहो दुर्जनसंसर्गात् मानहानि: पदे पदे । पावको लोहसंगेन मुद्गरैरभिताड्यते ॥
अर्थात दुर्जन की संगति में रहने से पग पग पर मान की हानि होती है ठीक उसी तरह जैसे लौहे का संग करने की वजह से आग क़ भी हथौड़े से पीटा जाता है। हालांकि यह श्लोक दूसरे संदर्भ में है, फिर भी सबक लिया जा सकता है।
–राजेंद्र पटावरी,उपाध्यक्ष – प्रेस क्लब,सूरतगढ़
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