सूरतगढ़। नगरपालिका चेयरमैन मास्टर ओमप्रकाश कालवा के बारे में खबर पॉलिटिक्स में हमने पहले भी बताया है कि वे राजनीति की पिच के माहिर खिलाड़ी हैं। सूरतगढ़ नगरपालिका बोर्ड की बैठक में एक बार फिर चेयरमैन कालवा नें यह साबित कर दिया। कांग्रेसी नेताओं के सलाहकार खुद को कितना भी धुरंधर मान रहे हो लेकिन उनके पास फिलहाल चेयरमैन कालवा का तोड़ नहीं है। कांग्रेस बोर्ड के बहुमत के चलते बैठक में कांग्रेस द्वारा तैयार किए गए एजेंडों का पास होना तय ही था। बैठक की शुरुआत में ही पार्षद बसंत बोहरा ने सभी 22 प्रस्तावों को बहुमत से पारित करने की घोषणा कर एक तरह से कांग्रेस की जीत फाइनल कर दी थी। लेकिन तभी चेयरमैन कालवा ने प्रस्तावों पर चर्चा करवाने की गुगली कांग्रेस टीम की और से कप्तानी कर रहे नेताओं की और उछाल दी। बस फिर क्या था कांग्रेसी टीम चेयरमैन कालवा के ट्रेप में फंस गई और गूगली को खेलने की फिराक में कांग्रेसी पार्षद हिट विकेट हो गए। चेयरमैन कालवा चाहते थे कि प्रस्ताव संख्या-19 बिना चर्चा के पास नहीं हो और आखिरकार वही हुआ जो चेयरमैन कालवा चाहते थे।
प्रस्ताव संख्या -19 जो प्रिंटिंग स्टेशनरी सप्लाई एजेंसी के कार्यादेश की राशि 50% बढ़ाने से जुड़ा था पर जब चर्चा शुरू हुई तो चेयरमैन कालवा ने यह कहकर विरोध किया कि यह प्रस्ताव व्यक्तिगत ठेकेदार को लाभ पहुंचाने के लिए लाया गया है। इस मुद्दे पर कांग्रेस पार्षदों के प्रस्ताव का पक्ष लेने को मुद्दा बनाते हुए चेयरमैन कालवा ने कांग्रेसी पार्षदों को भ्रष्टाचार की पैरवी नहीं करने की अपील कर डाली। चेयरमैन कालवा का सहयोग देते हुए पार्षद राजीव चौहान, हरीश दाधीच और हंसराज स्वामी ने भी इस प्रस्ताव का जमकर विरोध किया। वही विधायक रामप्रताप कासनिया ने भी प्रस्ताव का खुलकर विरोध किया। हालांकि प्रस्ताव के समर्थन में कांग्रेस के पार्षदों ने भी पूरी ताकत लगाई। लेकिन इसका उल्टा असर ये पड़ा कि भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे चेयरमैन ओमप्रकाश कालवा को यह कहने का मौका मिल गया कि कांग्रेस के लोग उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं लेकिन वे खुद भ्रष्टाचारियों की पैरवी कर रहे है। इस मामले में चेयरमैन कालवा ने करीब 10 मिनट तक लगातार बयानबाजी की। क्योंकि का चेयरमैन कालवा को मालूम था कि उनके पास बहुमत नहीं है सो उन्होंने आखरी दम तक प्रस्ताव का विरोध करने की मंशा को व्यक्त करते हुए प्रस्ताव पर वोटिंग कराने का मांग कर डाली। जिसके बाद प्रस्ताव पर वोटिंग हुई। हालांकि वोटिंग में प्रस्ताव 16 के मुकाबले 27 वोटों से पास हो गया। लेकिन पूरे मामले को भ्रष्टाचार से जोड़कर चेयरमैन कालवा ने कांग्रेसी पार्षदों को कठघरे में खड़ा कर दिया। चेयरमैन कालवा पर भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर हमलावर कांग्रेस इस स्थिति से बच सकती थी। अगर कांग्रेस के पार्षद सभी एजेंडों को बहुमत के पास होने की घोषणा पर अडिग रहते जिसे चेयरमैन कालवा स्वीकार भी कर चुके थे। कांग्रेस पार्षदों के पास एक विकल्प यह भी था कि प्रस्ताव पास कराने के बाद वार्ड वाइज प्रत्येक पार्षद अपनी समस्याएं सदन में व्यक्त करता। लेकिन सदन में कांग्रेस के अगवा नेताओं का प्रस्तावों पर चर्चा करवाने का निर्णय कांग्रेस पर भारी पड़ गया।
इस पूरे प्रकरण की एक और खास बात यह रही कि प्रस्तावों पर बहस के दौरान पार्षदों को लगातार बैठक छोड़ने के मैसेज आ रहे थे। कांग्रेस के वाइस चेयरमैन सलीम कुरेशी ने कांग्रेस नेताओं का मैसेज बार बार पार्षद नेताओं तक पहुंचाया और मीटिंग छोड़ने की बात कही। उधर कहा यह भी जा रहा है कि कांग्रेस के एक नेता सभागार से जुड़े स्टोर में खड़े होकर कांग्रेसी पार्षदों से मीटिंग छोड़ने के लगातार इशारे कर रहे थे। लेकिन पार्षद नेताओं ने उनके इशारों को भी अनदेखा कर दिया। कुल मिलाकर पार्षद नेताओं का प्रस्तावों पर चर्चा में शामिल होने का निर्णय कांग्रेस के लिए किरकिरी का सबब बन गया।
कहा जा सकता है कि शनिवार की बोर्ड बैठक में कांग्रेस पार्टी भले ही सभी 22 प्रस्तावों को पास करवाने में सफल हो गई। लेकिन चेयरमैन कालवा नें भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस पार्षदों को कटघरे में खड़ा कर एक बार फिर अपनी राजनीतिक कुशलता का परिचय दे दिया।
बैठक में फ्रेंडली मैच खेलते नजर आए कांग्रेसी पार्षद
शनिवार को हुई नगरपालिका बोर्ड की बैठक में चेयरमैन ओमप्रकाश कालवा बहुमत नहीं होने के बावजूद मजबूत नजर आए। क्यूंकि शुक्रवार की बैठक में जो पार्षद विरोध दर्ज कर रहे थे वे शनिवार को खामोश थे। रात रात में ऐसा क्या हो गया कि इन पार्षदों का स्टैंड बदल गया। पूरी मीटिंग पर अगर गौर किया जाए तो साफ नजर आएगा कि कांग्रेस के चुनिंदा पार्षद ही बयानबाजी या विरोध दर्ज करवा रहे थे। वहीं विरोध कर रहे पार्षदों की गतिविधियों को भी नोट किया जाए तो कुछ पार्षद चेयरमैन कालवा के साथ फ्रेंडली मैच खेलते दिख रहे थे। हर एक मुद्दे पर मुखर रहने वाले पार्षद भी चेयरमैन कालवा के इशारों पर अपने स्टैंड को बदलते दिख रहे थे। जो इस बात पर मोहर लगाती है कांग्रेस के कई पार्षद अंदरूनी तौर पर चेयरमैन कालवा के साथ खड़े हैं।
यही वजह है जिससे कांग्रेस पार्षदों द्वारा चेयरमैन कालवा के एजेंडों पर चर्चा के प्रस्ताव को स्वीकार करने के निर्णय पर सवाल खड़े होते हैं। क्योंकि जिस तरह का फ्रेंडली मैच चेयरमैन कालवा और कुछ कांग्रेसी पार्षदों के बीच खेला जा रहा था। उससे इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि संभवत प्रस्ताव संख्या-19 के बहाने कांग्रेस को घेरने का मौका देने के गेम प्लान के मुताबिक ही कांग्रेसी पार्षदों ने प्रस्ताव पर चर्चा करना स्वीकार किया हो। वरना बहस में शामिल होने से पहले तो कांग्रेस बाज़ी जीत ही चुकी थी। कुल मिलाकर कांग्रेस नेताओं को चेयरमैन कालवा से लड़ाई लड़ने से पहले जरूरी है कि वह ऐसे लोगों की पहचान कर ले।
– राजेंद्र पटावरी,उपाध्यक्ष- प्रेस क्लब,सूरतगढ़।